अजमेर में राजस्थान साहित्य अकादमी की कहानी लेखन कार्यशाला सम्पन्न

लेखक का कहानी से भावनात्मक संबंध होना जरूरी है-नंद भारद्वाज
अजमेर/किसी भी कहानी की रचना के लिए बेहतर कथ्य हमारे परिवेश से मिलता है। भाषा उसे समझने में सहयोगी होती है। कथा की भाषा सरल और समयानुकूल और पात्रों के व्यवहार के अनुरूप् होनी चाहिए। दृश्य कहानी को विकसित करते हैं। अच्छा रचनाकार वही है जो कथ्य के चरित्रों को ठीक प्रकार से समझकर उसी के अनुरूप आचरण, व्यवहार और भाषा का निर्धारण करता है। लेखक का कहानी से भावनात्मक संबंध होना भी जरूरी है। ये बात वरिष्ठ साहित्यकार और दूरदर्शन के पूर्व निदेशक नन्द भारद्वाज ने कही। वे राजस्थान साहित्य अकादमी एवं ‘नाट्यवृंद‘ द्वारा सोमवार 14 अक्टूबर को सोफिया कॉलेज में महाविद्यालय स्तरीय ‘कहानी लेखन कार्यशाला‘ में मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि कला व साहित्य अच्छे मनुष्य का निर्माण करते हैं। स्मृति, कल्पनाशीलता और भविष्य की दृष्टि मनुष्य के विशेष गुण हैं इनके प्रयोग से श्रेष्ठ कहानियों की रचना होती है। कहानी के माध्यम से जीवन के पहलुओं को समझना, सीखना सहज होता है।
प्रथम सत्र में कहानी लेखन का प्रशिक्षण देते हुए डॉ अनन्त भटनागर ने प्रेमचन्द की लोकप्रिय कहानियों की चर्चा करते हुए कहा कि कहानी लिखने के लिए अपने आस-पास की स्थितियों और घटनाओं को ध्यान से देखने, समझने और महसूस करने का अभ्यास करना चाहिए। कहानी जीवन के मूल्यों को विकसित करती है, केवल घटना का विवरण कहानी नहीं होता। उन्होंने अच्छा लिखने के लिए अधिक पढ़ने का भी सुझाव दिया। डॉ पूनम पाण्डे ने कथा लेखन की अपनी प्रक्रिया बताते हुए कहा कि जीवन के अनुभवों की अभिव्यक्ति कथा को प्रभावी बनाती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्या डॉ सिस्टर पर्ल ने व्यक्तित्व निर्माण के लिए छात्राओं से अपनी भावनाओं को साहित्यिक विधाओं में अभिव्यक्त करने की बात कही। प्रारंभ में संयोजक उमेश कुमार चौरसिया कार्यशाला की रूपरेखा बताते हुए कहा कि कहानी लिखने के लिए संवेदना और अवलोकन की दृष्टि का होना आवश्यक है। द्वितीय सत्र में आरजे अजय ने कहानी सुनाने की कला की जानकारी देते हुए विविध प्रसंगों और किस्सों को रोचक स्वर विन्यास के साथ सुनाया। छात्रा शीना पाराशर ने मर्मस्पर्शी कहानी ‘पिता‘ की प्रस्तुति दी। कार्यशाला में महाविद्यालय की 68 छात्राओं ने सहभागिता की और कहानियों का लेखन किया, जिसमें रश्मि नवानी की कहानी ‘मेरे बाबा और वो दिन‘ को प्रथम, मेघना पांडे की ‘कारवां जारी रखो‘ को द्वितीय, अर्पिता मेहरा की ‘नई शुरूआत‘ को तृतीय और शगुफ्ता नाज़ की ‘वह मंदिर की जमीन का फैसला‘ को प्रोत्साहन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। समन्वयक हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ सुनीता सियाल ने प्रभावी संचालन किया तथा डॉ अनिता सकलेचा, रिया लांस, श्वेता शर्मा, डॉ कुसुम शर्मा, रेबेका लाल ने विशेष सहयोग किया।

उमेश कुमार चौरसिया
संयोजक
संपर्क-9829482601

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