कांग्रेस अब भी तुष्टीकरण की नीति पर -देवनानी

– 1947 की भूल का सुधार है नागरिकता संशोधन बिल
-सिंधी व सिक्ख सहित लाखों शरणार्थियों को मिला न्याय।

प्रो. वासुदेव देवनानी
जयपुर/अजमेर, 12 दिसम्बर। नागरिकता संशोधन बिल को लेकर पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री एवं विधायक अजमेर उत्तर वासुदेव देवनानी ने कांग्रेस को आडे. हाथों लिया है। देवनानी ने कहा कि धर्म के आधार पर भारत का विभाजन कराने वाली कांग्रेस अब भी तुष्टीकरण की नीति पर कदमताल कर रही है। नया भारत कांगे्रस के तुष्टीकरण चेहरे को देख चुका है जिसका परिणाम कांगे्रस को भविष्य में भुगतना पडेगा।
देवनानी ने कहा कि 1947 में कांग्रेस ने धर्म के आधार पर विभाजन कराने की जो भूल की थी उसे मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन बिल के माध्यम से सुधारने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि पड़ौसी इस्लामिक देशों के सिन्धी, सिक्ख, बौद्ध व अन्य हिन्दू अल्पसंख्यकों का शरणस्थली देश एकमात्र भारत है। भारत सरकार ने अपनी सनातन परम्परा का निवर्हन करते हुए नागरिकता संशोधन बिल पारित किया है इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह का बहुत बहुत अभिनंदन है। इस बिल से विशेषकर सिंधी व सिख शरणार्थियों को न्याय मिला है तथा उनके वर्षो पुराने घावों पर महरम लगा है। जबकि किसी भी भारतीय मुसलमान के हित से कोई भी छेडछाड नहीं की गई है फिर भी कांग्रेस द्वारा इस बिल पर तुष्टीकरण की जा रही है जिसे तुरन्त बंद करें नहीं तो इसके दुष्परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे।
देवनानी ने कहा कि विश्व के किसी भी देश ने हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए अपने दरवाजे नहीं खोल रखे हैं। हिन्दू धर्मावलंभी किसी भी देश में शरण का पात्र नहीं है जिससे हमारे पडोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में मुस्लिम धर्म को विशेष महत्व दिये जाने के कारण यहां हिन्दू, बौद्ध, सिख धर्मवलंबियों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है। इन देशों में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की बेटियों के साथ बलात्कार, अपहरण व जबरन धर्म परिवर्तन करा विवाह करने आदि की घटनाएं आए दिन घटित होती रहती है। इन देशों में सुनियोजित पडताडना के कारण हिन्दु अल्पसंख्यकों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। आजादी के समय पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या 23 प्रतिशत थी जो अब घटकर 1.3 प्रतिशत रह गई है। यही हालात बांग्लादेश में है। यहां आजादी के वक्त 14 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे जो 7 प्रतिशत रह गए है जबकि भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति इसके विपरित है। यहां अल्पसंख्यकों की संख्या में काफी बढोत्तरी हुई है। आजादी के समय भारत में 9 प्रतिशत अल्पसंख्यकों थे जो अब बढकर 14 प्रतिशत हो गई है।

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