‘‘घर में दुबके लोग जंग जीतने की ओर बढ़ रहे हैं‘‘-अजात शत्रु

‘राष्ट्रीय ऑनलाइन कवि चौपाल‘ में खूब जमा कविता का रंग
‘नाट्यवृंद‘ संस्था का अनूठा प्रयोग सफल रहा
भयपूर्ण माहौल में आनंदित किया काव्य रस ने

कला एवं साहित्य के प्रति समर्पित संस्था ‘नाट्यवृंद‘ ने रविवार 22 मार्च को अपराह्न 3 से साढ़े चार बजे तक ‘राष्ट्रीय ऑनलाइन कवि चौपाल‘ का अनूठा आयोजन किया। संयोजक उमेष कुमार चौरसिया ने बताया कि जनता कर्फ्यू के दौरान खाली समय का रचनात्मक उपयोग करने की दृष्टि से व्हाट्सएप समूह के द्वारा यह आयोजन हुआ, जिसमें देषभर से प्रख्यात कवियों ने अपने घरों से ही रूचिपूर्वक भाग लिया। चौपाल में बही काव्य की रसधार ने भयपूर्ण माहौल में सुकून का संचार किया। उदयपुर से लोकप्रिय कवि अजातषत्रु ने ‘घर में दुबके लोग आष्वस्त करते हैं कि वे एक जंग जीतने की ओर बढ़ रहे हैं‘ प्रस्तुत कर वर्तमान स्थिति में नागरिकों की भूमिका की महत्ता उजागर की, वहीं प्रसिद्ध मंचीय कवि जयपुर से सुरेन्द्र शर्मा ने कोरोना के प्रति सावचेत करते ‘हम सब मिलजुलकर करें कोरोना पर वार, निकलें घर से हम नहीं सोचें करें विचार‘ जैसे दोहे और मधुर गीत ‘इंद्रियां रहती नहीं तुम से नियंत्रित, देह को ही कर दिया तुमने है यंत्रित‘ सुनाकर खूब दाद बटोरी। दिल्ली से मषहूर गज़लगो अनिल वर्मा ‘मीत‘ की ‘आहों का पहरा होता है दर्द जहाँ गहरा होता है‘ गजल ने सबके मन को छू लिया। बांसवाड़ा से लेखक व रंगकर्मी सतीष आचार्य ने ‘अपने अपने महाभारत होते हैं फिर भी हम क्यों रोते हैं‘ रचना से कलयुग का चित्रण किया।
डॉ बृजेष माथुर ने मीठी गज़ल ‘ख्वाहिष थी पौधे की जल्दी पेड़ बने, लेकिन आंधी धूप सही तो सहम गया‘ पेष की और ‘ब्रज शैली के युवा गीतकार गौरव दुबे ने सरस गीत ‘होंगे कितने दुःख के सागर जिनको कहना ही ना आया‘ प्रस्तुत कर कविमन के द्वन्द्व को उकेरा। कवि-साहित्यकार उमेष कुमार चौरसिया ने मानवीय व्यवहार में आए परिवर्तन को इंगित करती गज़ल ‘घर की हर उलझन के भाई मिल जाते घर में ही हल थे, मंद मंद मुस्काते पल थे‘ पटल पर रखी। भोपाल से कविचित्रि डॉ लता अग्रवाल ने ‘तुम्हारे शब्दभेदी बाणों की पीड़ा सहती रही‘, डॉ शमा खान ने ‘बहुत हुआ यह नंगा नाच उठो अब हुंकार भरो‘ और डॉ दीप्ति सिंह ने ‘कहाँ मिलोगे कहो तो‘ रचनाओं के माध्यम से स्त्री मन को अभिव्यक्त किया। बाल साहित्यकार गोविन्द भारद्वाज ने भी महिलाओं की मनःस्थित पर केन्द्रित गज़ल ‘कितनी लाचार अब नारी है‘ प्रस्तुत की। डॉ पूनम पाण्डे ने ‘फूल की महक को अब महसूस नहीं करते‘ कविता से संवेदनषून्यता को दर्षाया। व्यंग्यकार प्रदीप गुप्ता ने ‘मैं विधायक हूँ‘ रचना से राजनीति पर कटाक्ष किया। डॉ पूनम पाण्डे पौराणिक विषयों के लेखक देवदत्त शर्मा ने ‘पानी है अनमोल‘ तथा चित्तौड़ से रमेष शर्मा ने गीत ‘गये न मौसम जस के तस फिर आते हैं‘ प्रस्तुत किया।

-उमेश कुमार चौरसिया
संपर्क-9829482601

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