अक्षय तृतीया का पर्व दान दिवस के रूप में मनाया गया

संपूर्ण जैन समाज के धर्मावलंबियों द्वारा आज अक्षय तृतीया का पर्व दान दिवस के रूप में मनाया गया। समाज के युवा नेता कमल गंगवाल ने बताया की निर्यापक मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज के मुखारविंद से ससंघ के सानिध्य में ऑनलाइन टीवी चैनल के माध्यम से आशीर्वाद प्राप्त कर इस पर्व को धर्म ध्यान के साथ मनाया गया।जैन समाज आज के दिन इसे दान दिवस के रूप में मनाते हैं देश में चल रहे लोकडाउन के मध्य नजर अपने अपने घरों में सामाजिक दूरी का ध्यान रखते हुए पाठ पूजा इत्यादि कर रहे हैं जिनमें आदिनाथ भगवान की पूजा और भक्तामर विधान करके धर्म लाभ प्राप्त कर रहे हैं साथ ही देश और विदेश में फैली भयंकर महामारी कोरोना वायरस से मुक्ति दिलाने के लिए भी प्रार्थना की गई ।अक्षय तृतीया के दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान ने 13 महीने की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात गन्ने के रस से पारना किया । उसके बाद से ही जैन धर्मावलंबी आज के दिन सबसे पहले गन्ने का रस पीना भी पुण्य मानते हैं।जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बंधनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग किया और सत्य अहिंसा का प्रचार करते करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर के गजपुर पधारे जहां इनके पुत्र सोमेश का शासन था प्रभु का आगमन सुनकर संपूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा सौम प्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांश ने प्रभु को देखकर आदिनाथ को पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया जिससे आदिनाथ भगवान ने व्रत का पारना किया जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं। इस कारण यह दिन अक्षय तृतीया एवं इक्षु तृतीया के नाम से विख्यात हो गया। देश विदेश के साथ आज अजमेर में भी संपूर्ण जैन धर्मावलंबियों द्वारा अपने अपने घरों में पूजा पाठ और विधान के कार्यक्रम किए गए इसी कड़ी में मोहिनी विला में सामाजिक दूरी को ध्यान में रखते हुए आदिनाथ भगवान की पूजा और भक्तामर विधान किया गया जिसमें मोहिनी देवी गंगवाल, सुनील गंगवाल ,कमल गंगवाल पंकज गंगवाल ,सरला जैन, रूबी जैन कनिका जैन ,सुरभि, संयम, देवर्ष जैन, ऐसनाजैन , भविक गंगवाल आदि उपस्थित थे।
अक्षय तृतीया का महत्व
भारतीय संस्कृति में पर्व, त्याहारों और व्रतों का अपना एक अलग महत्व है। ये हमें हमारी सांस्कृतिक परंपरा से जहां जोड़ते हैं वहीं हमारे आत्मकल्याण में भी कार्यकारी होते हैं। वैशाख शुक्ला तृतीया को अक्षय तृतीया पर्व मनाया जाता है। इस दिन जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ ) ने राजा श्रेयांस के यहां इक्षु रस का आहार लिया था, जिस दिन तीर्थंकर ऋषभदेव का आहार हुआ था, उस दिन वैशाख शुक्ला तृतीया थी।जैनधर्म के अनुसार भरत क्षेत्र में इसी दिन से आहार दान की परम्परा शुरू हुई। ऐसी मान्यता है कि मुनि का आहार देने वाला इसी पर्याय से या तीसरी पर्याय से मोक्ष प्राप्त करता है। राजा श्रेयांस ने भगवान आदिनाथ को आहारदान देकर अक्षय पुण्य प्राप्त किया था। अतः यह तिथि अक्षय तृतीया के रूप में मानी जाती है। यह दिन बहुत ही शुभ होता है, इस दिन बिना मुर्हूत निकाले शुभ कार्य संपन्न होते हैं।

कमल गंगवाल
अध्यक्ष
महावीर इंटरनेशनल अजमेर।
मोबाइल: 9829007484

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