मरीज की मुस्कान देती है काम की संतुष्टि—डॉ पूजा रावत

16, अक्टूबर 2020 विश्व निश्चेतना दिवस पर विशेष—
अजमेर, 15 अक्टूबर()। कोविड—19 काल में मानवजाति के लिए स्वास्थ्य संरक्षक बनकर डटे एनेस्थीसियोलॉजिस्ट को लेकर जनमानस की धारणा बदल गई है। एनेस्थेटिस्ट सिर्फ आॅपरेशन के दौरान मरीजों को बेहोश करने और दर्दरहित दवा के लिए ही याद नहीं किए जाते, सच्चाई यह है कि वे अपनी जान जोखिम में डाल कर मरीज की मुस्कान में ही अब अपने काम की संतुष्टि तलाशते हैं।
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 20 विश्व निश्चेतना दिवस के अवसर पर ”कोविड—19 का दौर और निश्चेतना विशेषज्ञ की भूमिका” विषय पर आयोजित परिचर्चा में जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय एवं चिकित्सालय की एनेस्थीसियोलॉजिस्ट प्रो. डॉ. पूजा (रावत) माथुर ने कुछ इस तरह अपने मन की बात रखी। डॉ पूजा ने कहा कि एक एनेस्थेटिस्ट का कार्यक्षेत्र जनमानस की धारणा से कहीं अधिक व्यापक है। वस्तुतः एनेस्थेटिस्ट का कार्य रोगी के अस्पताल में भर्ती होने से शुरू होकर जब तक वह पूर्णतः स्वास्थ्य लाभ नहीं कर लेता तब तक होता है। आॅपरेशन के दौरान भी और उसके बाद भी। हॉस्पिटल में भर्ती गंभीर मरीजों को आॅक्सीजन थैरेपी देनी हो या साँस की नली डाल कर वेंटीलेटर सपोर्ट पहुंचाना हो रोगियों के जीवनरक्षण की जिम्मेदारी एनेस्थीसियोलॉजिस्ट जैसे गुमनाम योद्धाओं की होती है। एनेस्थेटिस्ट न केवल मरीज को दर्द रहित रखता है अपितु मरीज के महत्वपूर्ण पैरामीटर जैसे रक्त चाप, दिल की धड़कन, शरीर का तापमान, रक्त में आॅक्सीजन की मात्रा आदि पर पैनी नजर रखते हुए उनको नियंत्रण में रखता है।
कोविड महामारी के चलते दिनोंदिन हॉस्पिटल में बढ़ते एडमीशन एवं वेन्टिलेटर पर निर्भर रोगियों की संख्या को देखते हुए एनेस्थेटिस्ट के कार्य का दायरा और कोविड मैनेजमेंट में उनकी भूमिका पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि आवश्यकता और अपेक्षा के अनुसार संसाधनों में कमी सदैव रहती ही है, सभी को समझना यह है कि उपलब्ध संसाधनों का व्यापकता से अधिकाधिक लोगों को जरूरत होने पर लाभ पहुंचाया जा सके। मरीजों का दर्द दूर करने व दर्द रहित शल्य क्रिया व डिलिवरी कराने में गम्भीर रूप से बीमार रोगियों को ठीक होते देखने से जो सन्तुष्टि मिलती है वह किसी भी आर्थिक पैमाने पर नहीं मापी जा सकती।

रोगी का मनोबल हर हाल में बना रहे— डॉ राजीव पाण्डे
मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर अजमेर के एनेस्थीसियोलॉजिस्ट डॉ राजीव पाण्डे ने कोविड—19 के दौर में उपचार के लिए पहुंचने वाले कोरोना संदिग्ध और नॉन कॉविड रोगियों पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आज महत्वपूर्ण यह हो गया है कि रोगी का मनोबल हर स्थिति में उच्च बना रहे। उसे यह कतई महसूस नहीं हो कि उसके साथ किसी तरह का पक्षपात किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि रोगी तो हरहाल में रोगी ही होता है, वह कोविड और नॉन कोविड के आधार पर अलग—अलग नहीं किया जा सकता है। डॉ पाण्डे ने कहा कि वे यह जानते हुए कि रोगी कोविड है अपनी जान और अपने परिवारजनों का ख्याल मन से निकाल कर पूरी गाइडलाइन की पालना करते हुए रोगी को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के लिए अंतिम सांस तक जुट जाते हैं। डॉ पांडे ने संदेश दिया कि कोविड से डरें नहीं गाइडलाइन का पालन करें।

भारत में एनेस्थीसियोलॉजिस्ट की है भारी कमी :—
इंडियन सोसायटी आॅफ एनेस्थीसियोलॉजिस्ट के अनुसार देश में मात्र 55 हजार एनेस्थीसियोलॉजिस्ट विभिन्न चिकित्सालयों में कार्यरत है। जबकि आवश्यकता 2 लाख एनेस्थीसियोलॉजिस्ट की है। कोविड — 19 काल में एनेस्थीसियोलॉजिस्ट की उपयोगिता को आंकड़ों की दृष्टि से समझना हो तो वर्तमान में कोविड के कारण जान गंवा चुके तकरीबन 1 लाख लोगों को याद किया जा सकता है। देश में वर्तमान में 9 लाख 1 हजार 541 एक्टिव कोविड रोगी हैं। यह आंकड़ा कुल 68 लाख 35 हजार 100 कोविड रोगियों में से है। राजस्थान की बात करें तो अभी 21 हजार 351 एक्टिव रोगी हैं और इनमें से करीब 1 हजार 500 लोग कोरोना के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं। स्वास्थ्य संस्थाओं में संसाधनों की कमी के उपरांत भी एनेस्थीसियोलॉजिस्ट ज्यादा से ज्यादा गम्भीर रोगियों के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर उन्हें सेवाएं दे रहे हैं।

जेएलएन में बढ़ सकती है एनेस्थीसिया में पीजी सीट—
एक अनुमान के अनसार पूरे देश में एक साल में करीब 4 हजार 500 विद्यार्थी एनेस्थीसिया में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस संख्या में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में भी गत दस वर्ष पहले जहाँ चार विद्यार्थी ही हर वर्ष प्रशिक्षित होते वहीं यह संख्या आज बढ़ कर 16 प्रतिवर्ष हो गई है। और आगे चलकर आवश्यकता को देखते हुए जल्द ही 22 किए जाने की सम्भावना है।

विदेशों में मरीज खुद करता है अपने एनेस्थीसिया विशेषज्ञ का चयन:—
विकसित देशों जैसे अमेरीका और अन्य कई देशों में तो मरीज खुद अपने निश्चेन विशेषज्ञ का चयन कर सकते हैं जैसे वह अन्य चिकित्सकों या सर्जन का करते हैं । परन्तु भारत में इस प्रकार की मान्यता एवं जानकारी जनता को एनेस्थेटिस्ट के विषय में नहीं है। जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को उदाहरण के तौर पर लिया जाए तो यहां चौदह आॅपरेशन थियेटर हैं। जहां प्रतिदिन 50-60 छोटे बड़े आॅपरेशन होते हैं जिन्हें करवाने के लिए 15 एनेस्थिसिया विशेषज्ञ और 45 एनेस्थिसिया के रेजिडेंट डाॅक्टर उपलब्ध हैं। जो कि अब कोविड रोगियों की देखभाल का कार्य भी निरन्तर नियमित रूप से कर रहे हैं।
एक एनेस्थीसिया रेजिडेंट के अनुसार ‘जिन्दगी और मौत से लड़ते हुए मरीजों को सीपीआर की प्रक्रिया द्वारा पुनर्जीवन देने सहित उन्हें गहन चिकित्सा इकाई में मरीज की श्वास नली में ट्यूब डालकर वेन्टीलेटर पर रखने, बड़ी शिराओं में कैथेटर डालने एवं अन्य जीवन रक्षक कार्योंं के लिये बुलाया जाता है।’

संतोष गुप्ता
प्रबंधक जनसम्पर्क

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