एक ओर जहां भाजपा के ज्ञान सारस्वत, जे के षर्मा, आनंद सिंह राजावत व सुभाश काबरा की पार्टी में वापसी नहीं हो पाई, पूर्व निर्दलीय विधायक सुरेष टाक की वापसी के बावजूद पहले जैसी तवज्जो नहीं मिल पाई, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ श्रीगोपाल बाहेती की न केवल वापसी हुई, अपितु मुख्य धारा में वैसे ही घुल मिल गए हैं, जैसे पहले थे। असल में उन्होंने जज्बात में आ कर पुश्कर में निर्दलीय रूप से चुनाव तो लड लिया, मगर सदाषयी व सरल व्यक्तित्व को बरकरार रखने में कामयाब रहे। वे निर्दलीय लडे जरूर, मगर वैचारिक रूप से कांग्रेस के खिलाफ नहीं गए। आया राम गया राम की परंपरा में उनके लौटने पर किसी को अचरज नहीं हुआ। सच तो यह है कि सभी मान रहे थे कि लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी वापसी हो जाएगी। कांग्रेस में वापसी के बाद उनका स्थानीय कांग्रेसियों ने वैसा ही इस्तकबाल किया, जैसा पहले किया करते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि वे कहीं गए ही नहीं थे। उनकी अपनी फेन फॉलोइंग भी है। किसी ने भी उन्हें हिकारत की नजर से नहीं देखा। बैठकों में मंचों पर पूर्व विधायक के नाते उनका स्थान सुरक्षित रहा। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान लगातार सक्रिय रहे। जाहिर तौर पर इसका कांग्रेस को लाभ भी हुआ ही होगा। बेषक वे अषोक गहलोत खेमे में गिने जाते हैं, मगर इसके चलते उन्होंने स्थानीय स्तर पर कट्टर गुटबाजी में हिस्सा नहीं लिया। वरिश्ठता के नाते सब उनका सम्मान करते हैं। लब्बोलुआब, अजमेर में कांग्रेस की पहचान रहे डॉ बाहेती की पहचान कायम रह गई है। देखते हैं कि भविश्य में पार्टी उनको कौन सी जिम्मेदारी देती है?