सियासी चौसर पर ममता ने मोदी-शाह को दी मात

चुनाव परिणामों ने दिखाया 2024 का आईना, केंद्र सरकार ने खोया जनता का विश्वास, अब मोदी के भरोसे नहीं रहे भाजपा

सुमित सारस्वत
दो मई को आए चुनाव परिणाम भाजपा और आरएसएस के लिए चौंकाने वाले हो सकते हैं मगर देश की जनता को इस परिणाम की पूरी उम्मीद थी। सब जानते थे कि देश के वर्तमान हालातों के मद्देनजर भाजपा पर भरोसा करना मुश्किल है। अब नफरत की राजनीति स्वीकार नहीं होगी। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने यह बता दिया कि केंद्र सरकार ने जनता का विश्वास खो दिया है। साथ ही 2024 में होने वाले आम चुनाव के लिए भी आईना दिखा दिया। यह साबित कर दिया कि भारत में मोदी लहर अब खत्म हो गई है।
वैसे तो चुनाव केरल, असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी, पांच राज्यों में हुए मगर पूरे देश की निगाहें बंगाल के नतीजों पर टिकी थीं। यहां सीधी टक्कर एक महिला और दो दिग्गजों के बीच थी। राजनीति की चौसर में देश के बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। राज्य की सत्ता में राज कर रही अकेली महिला को हराने के लिए केंद्र सरकार के साथ सर्वोच्च संगठनों ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी। एक तरफ तृणमूल कांग्रेस थी और दूसरी तरफ भाजपा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बनाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह।
बंगाल में हार की चर्चा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां सत्ता परिवर्तन के लिए भाजपा और संघ ने पूरी ताकत लगा रही थी। रिपोर्ट के मुताबिक, बंगाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 18 और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह व अन्य स्टार प्रचारकों ने 80 से अधिक रैलियां की। देशभर से प्रचार के लिए पहुंचे 15 हजार से ज्यादा बीजेपी और आरएसएस कार्यकर्ता, करीब 800 विधायक-सांसद, सौ से ज्यादा केंद्रीय और राज्य के मंत्री, करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भाजपा एक महिला से बंगाल की सत्ता हथियाने में कामयाब नहीं हो पाई। न राम का नाम काम आया और न ही विकास के खोखले दावे। न कोई चेहरा काम आया और न ही कोई चाल। सियासी लड़ाई में सबका चाल, चरित्र और चेहरा जरूर सामने आ गया। बंगाल में भाजपा के तमाम दावे ध्वस्त हो गए। दोहरे शतक के साथ ममता दीदी ने सत्ता की तीसरी हेट्रिक लगाई। प्रचंड बहुमत से सत्ता में आकर विरोधियों का सूपड़ा साफ कर दिया। अकेली महिला ने दुनिया के दमदार नेताओं को सियासी दंगल में पटखनी दे दी। शायद यही वजह है कि दीदी की इस जीत पर करारी हार का मुंह देखने वाली कांग्रेस भी खुशी मना रही है।
बंगाल में भाजपा की हार के बाद अब पार्टी एकजुट होकर मंथन करे। भारत को भगवामय बनाने की रणनीति रचने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी चिंतन करना चाहिए। सोचना चाहिए कि आखिर राष्ट्र जन-जन का भरोसा जीतने वालों के खिलाफ क्यों हो गया? ऐसी क्या वजह रही कि महज सात साल में ही लहर खत्म हो गई? आखिर क्यों सरकार के खिलाफ देशवासियों की नाराजगी बढ़ती जा रही है? अगर संघ समर्थित संगठन को 2024 में होने वाले सियासी संग्राम में विजयी होना है तो इन तमाम सवालों का जवाब जानना बेहद जरूरी होगा। बढ़ते जनाक्रोश को शांत करना होगा। नफरत में तब्दील हो रही नीतियों को बदलना होगा। साजिश के सहारे लोकतंत्र को कुचलने की बजाय जनता के फैसलों का सम्मान करना होगा।
सुमित सारस्वत
(लेखक 16 वर्ष से स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं।)

error: Content is protected !!