एक बार रविदास जी अपने भक्तों और अनुयायियों को उपदेश दे रहे थे तब नगर का एक धनी सेठ भी वहाँ उनके उपदेश को सुनने आ गया । गुरु जी ने सभी को प्रसाद के रुप में अपने मिट्टी के बर्तन से पवित्र पानी दिया। लोगों ने उसे ग्रहण किया और पीना शुरु किया हालांकि धनी सेठ ने उस पानी को गंदा समझ कर अपने पीछे फेंक दिया जो बराबर रूप से उसके पैरों और जमीन पर गिर गया। वो अपने घर गया और उस कपड़े को कुष्ठ रोग से पीड़ित एक गरीब आदमी को दे दिया। उस कपड़े को पहनते ही उस आदमी के पूरे शरीर को आराम महसूस होने लगा एवं शीघ्र ही कुष्ठ रोगी ठीक हो गया। कुछ समय बाद धनी सेठ को कुष्ठ रोग हो गया जो कि महँगे उपचार और अनुभवी और योग्य वैद्य द्वारा भी ठीक नहीं हो सका।अंत मे वो गुरु जी के पास माफी माँगने के लिए गया और जख्मों को ठीक करने के लिये गुरु जी से वो पवित्र जल प्राप्त किया जिससे वो कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया ।
अनेकों लोग मानते हैं कि गुरु रविदास को अद्भुत सिद्धियां प्राप्त थीं। कुछ मान्यताओं के मुताबिक बचपन में एक बार उनके एक प्रिय मित्र की मृत्यु हो गई थी। सब लोग इसका शोक मना रहे थे। लेकिन जैसे ही रामदास ने करुण हृदय से दोस्त को पुकारा तो वह जीवित होकर उठ बैठा।