सरकार संगीन मामलों में अपनों को बचाना चाहती है, इसीलिए कोड आॅफ क्रिमिनल प्रोसिजर बिल जल्दबाजी में लाई-देवनानी
-सरकार की मंशा में खोट, सरकार का कदम केंद्र की व्यवस्था को डी-ग्रेड करने वाला
-क्या सरकार कांग्रेस विधायक द्वारा अधिकारी को गालियां देने वाले वीडियो की जांच कराएगी
-सरकार विधि विज्ञान प्रयोगशाला और फिंगर प्रिंट लैब की संख्या बढ़ाए, खाली पदों को भरे
शुक्रवार को इस विधेयक पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए देवनानी ने कहा कि दिखने में यह विधेयक एक वाक्य का है, लेकिन इसके पीछे सरकार की मंशा दूषित लगती है, क्योंकि सरकार के पास जो साधन-संसाधन हैं, उनमें से वह क्रिमिनल मामलों को निपटा नहीं पा रही है। उन्होंने कहा कि जो केंद्र सरकार के पाॅवर में है, उसमें निदेशक, संयुक्त निदेशक, उप निदेशक आदि स्तर के अधिकारी ही जांच कर सकते हैं। लेकिन राज्य सरकार का कदम केंद्र सरकार की व्यवस्था को डी-ग्रेड करने वाला है। आखिर राज्य सरकार केंद्र सरकार की व्यवस्थाओं को डी-ग्रेड करते-करते कहां तक ले जाएगी। इससे जाहिर होता है कि राज्य सरकार की मंशा एफएसएल रिपोर्ट से लेकर संगीन मामलों की जांचों को अपने लोगों द्वारा प्रभावित कर अपनों को बचाने की है।
देवनानी ने कहा कि जिस तरह कांग्रेस के एक विधायक ने सरकारी अधिकारी को गालियां बकीं, क्या उसकी वीडियो रिकाॅर्डिंग के आधार पर सरकार जांच कराएगी। लेकिन उन्हें लगता है कि सरकार इसकी जांच नहीं कराएगी। इससे सरकार की नीयत में कहीं ना कहीं खोट दिखाई देती है। यदि सरकार में स्पष्टता होती, तो वह यह विधेयक लाने की बजाय नई विधि विज्ञान प्रयोगशालाएं बनवाती, मौजूदा प्रयोगशालाओं में खाली पदों को भरती। पेंडिंग जांचों को निपटाने के लिए माॅनिटरिंग की व्यवस्था करती, लेकिन सरकार ने आज तक ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया है। प्रदेश में आठ हजार से अधिक जांच के मामले पेंडिंग हैं, जिससे जेलों में बंद सैकड़ों लोग सजा भुगत रहे हैं, जिससे मानवाधिकारों का हनन हो रहा है और मानव अधिकार संगठन आवाज उठा रहे हैं।
देवनानी ने कहा कि फिंगर प्रिंट लैब में भी पद खाली हैं, जिससे फिंगर प्रिंट संबंधी जांचों का निपटारा नहीं हो पा रहा है। यदि सरकार की मंशा साफ है, तो वह विधि विज्ञान प्रयोगशाला और फिंगर प्रिंट लैब की संख्या बढ़ाए और खाली पदों को भरे। जांचों में नीचे के लोगों को नहीं लगाया जाए, ताकि संगीन मामलों में भी निष्पक्ष जांचें हो सकें।