*शर्म बिना आंख बेकार, संस्कार बिना वाणी बेकार सौम्य दर्शन*

गुरुदेव श्री सौम्य दर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि जिस प्रकार मनभर दूध में थोड़ी सी खटाई डाल देने पर दूध फट जाता है , गर्म दूध में नींबू की रस की कुछ बूंदों को भी डाल दो तो भी दूध फट जाता है, और बेकार हो जाता है। बिना नीव के मकान बेकार है, बिना विद्यार्थी स्कूल बेकार है, और बिना ब्रेक गाड़ी बेकार है ,उसी प्रकार बिना शर्म के आंखों का होना बेकार है ।आंखों में शर्म होने को आवश्यक बताया है क्योंकि व्यक्ति में शर्म होने की स्थिति में सुधार की गुंजाइश रहती है ,उसमें बदलाव हो पाना आसान रहता है .लेकिन जिसमें गलती करने के बाद भी कोई पश्चाताप नहीं ,कोई गलती का एहसास नहीं, या कोई शर्म नहीं तो उसका सुधार पाना आसान नहीं होता है। हमारे यहां कहा जाता है कि “लाज सुधारे काज” यानी लज्जा में एक ऐसा गुण है जो बिगड़े से बिगड़े काम को भी सुधार देती है ।और इसी के विपरीत जहां लज्जा नहीं होती वह सुधरे हुए काम भी बिगड़ जाने की संभावना रहती है ।और लज्जा को नारी का आभूषण भी कहा जाता है ।लज्जा के कारण बहुत से प्रसंगों में उनकी सुरक्षा हो जाती है। इसीलिए शर्म बिना आंख बेकार बताया, और बिना संस्कारों के जीभ को बेकार बताया है यानी वाणी का संस्कारित होना भी परम आवश्यक है, एक वाणी किसी के लिए अमृत का काम कर सकती है, मधुर वचन सभी को अच्छे और प्यारे लगते हैं ।जबकि कठोर और कड़वे वचनों को कोई भी सुनना नहीं चाहते हैं ।एक बार तो व्यक्ति बिना मन के भी कुत्ते की, गधे की या कोए की आवाज को सुनकर फिर भी सहन कर सकता है मगर किसी की कठोर वाणी को अपशब्दों को सहन कर पाना बहुत ज्यादा कठिन कार्य होता है। इसीलिए कहा जाता है कि तीर से लगा घाव फिर भी भर जाता है लेकिन वाणी के द्वारा जो घाव दिल पर लग जाता है उसका भर पाना मुश्किल होता है। व्यक्ति विचार करें कि पशु पक्षियों आदि को अपने विचारों को व्यक्त करने की तो शक्ति नहीं मिली है जो मानव को मिली है, तो मैं मानव होकर भी अगर सभ्यता में युक्त संस्कारित वचनों का प्रयोग नहीं कर पाता हूं तो मेरे में और उन में अंतर ही क्या रह जाएगा ।मानव हो तो मानव के हिसाब से शालीन शिष्ट और संस्कारित वाणी को बोलने का प्रयास होना चाहिए। अगर ऐसा प्रयास और पुरुषार्थ रह पाया तो यह जिव्हा का मिल पाना सार्थक हो सकेगा ।
धर्म सभा को पूज्य श्री विराग दर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया ।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाडा ने किया ।
पदम चंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*

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