संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने पर्युषण पर्व के तीसरे दिन पोरशी एवम तेला दिवस के अवसर पर अंतगढ़दशांगसूत्र का वाचन करते हुए फरमाया कि मुनि गजसुखमाल ऐसे महापुरुष थे,जिन्होंने कुछ हटकर कार्य करने का प्रयास किया। सुबह राजा बने, दोपहर में संयमी ,और रात्रि में परिनिर्वाण को प्राप्त कर लिया।
दूसरे दिन श्री कृष्ण महाराज, भगवान अरिष्ठनेमी व भाई मुनिराज को प्रथम रात्रि का अनुभव पूछने की भावना के साथ राजमार्ग से गुजर रहे थे, वहां पर एक वृद्ध बहुत बड़े ईटों के ढेर में से 1_1 ईट अंदर रख रहा था ।श्री कृष्ण महाराज को उस पर दया आ गई ,उन्होंने एक ईट उठाकर अंदर रखी ।जैसा राजा करेगा वैसा ही प्रजा करेगी ।उनके साथ सभी लोगों ने एक एक ईट उठाकर अंदर रखी जब तक सारी ईट अंदर रख दी गई ।शायद उसकी तो मजबूरी थी, मगर मुनि श्री फरमाते हैं आपकी क्या मजबूरी है ?जो 70_ 80 साल की उम्र में भी दुकान पर जाते हैं ?आपकी मौत और निर्वति में कोई फासला है या नहीं ?
श्रावक का बारवा व्रत है अतिथि संविभाग।याद रखो बांटकर खाओगे ,तो भी जाओगे तो खाली हाथ ,और नहीं ,तो भी जाओगे खाली हाथ ही ।
आज आप शादी विवाह में अपने खाने के नाम पर, दिखावे के नाम पर करोड़ों खर्च कर देते हैं मगर स्वधर्मी को देने की बात आए तो आप बहाना बना लेते हैं ।आप अपने सम्यक दर्शन को संभालने का प्रयास करें ।श्री कृष्ण महाराज सम्यक दृष्टि थे उन्होंने कहा कुछ नहीं, मगर जैसा राजा वैसी प्रजा, सारी प्रजा के लोगों ने एक-एक ईट उठाकर अंदर रखी और उसका सारा दुख दूर हो गया।
श्री कृष्ण महाराज भगवान अरिष्ठनेमी के पास पहुंचे, दर्शन वंदन किए । गजसुकमाल मुनि के बारे में पूछा ,तो भगवान ने फरमाया कि उन्होंने अपनी आत्मा के अर्थ को प्राप्त कर लिया है ।श्री कृष्ण ने पूछा, कैसे ?तो भगवान ने फरमाया कल उन्होंने भिक्षु की बारवी प्रतिमा को स्वीकार किया और अपने अनेक भव के संचित कर्मों की निर्जरा सोमिल ब्राह्मण की सहायता से की। श्री कृष्ण द्वारा पूछे जाने पर भगवान ने फरमाया कि उनके सिर पर सोमिल ब्राह्मण द्वारा अंगारे डाले गए ,मगर उन्होंने उस महान पीड़ा को भी समभाव से सहन किया। हम भी उनके पावन जीवन से प्रेरणा लेकर कर्मों के उदय काल में अपनी समता को बनाए रखें। परवाधीराज पर्युषण पर्व के दिवसो में पूर्ण उत्साह व लगन के साथ श्रावक श्राविकाएं धार्मिक अनुष्ठानों में संलग्न है । तेला तप की आराधना भी काफी हो रही है ।
पदम चंद खटोड़ ने बताया की कल का दिवस निवी दिवस के रूप में मनाया जाएगा ,जिसके अंतर्गत खाने में पांच ही विगय घी,तेल, दूध ,दही ,मीठा को छोड़कर भोजन करना रहेगा।
श्री संघ द्वारा सभी नीवि करने वालो की भोजन व्यवस्था रखी गई है।
धर्म सभा को पूज्य श्री सौम्यदर्शन जी एवं पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया ।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा एवं हंसराज नाबेड़ा ने किया।
पदम चंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*