*छोड़ने में सुख और छुटने में दुख की अनुभूति होती है: गुरुदेव श्री प्रियदर्शन सौम्यदर्शन मुनि*

संघनायकगुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया की जिसको नशा रहता है,उसको और कुछ नजर नहीं आता है। और हमें भी प्रभु महावीर की जीवन गाथा को सुनने का एक नशा छाया हुआ है।
हम भी महावीर प्रभु की जीवन गाथा में सुन रहे हैं कि महावीर प्रभु संयम जीवन ग्रहण करके वन की ओर बढ़ जाते हैं।वहां पर पीछे से आकर एक गरीब ब्राह्मण याचना करने आया तो शकेंद्र महाराज द्वारा कंधे पर रखे देवदुष्य वस्त्र को आधा फाड़ कर दे दिया, और आधा वस्त्र जब झाड़ियां में उलझ कर लटक गया तो वह ब्राह्मण उसको रफू करा कर राजा नंदीवर्दन को देता है ,तब राजा ने एक लाख स्वर्ण मुद्राएं में उसे खरीद लिया। उस ब्राह्मण का सारा दरिद्र दूर हो गया।
एक बार भगवान कुमार्व गांव में पधारे। वहां पर ग्वाले के उपसर्ग पर शकेंद्र महाराज ने सेवा में रहने की अनुमति मांगी। तब भगवान ने कहा कि तीर्थंकर भगवान स्वयं अपने पुरषार्थ से ही कर्मों का क्षय करते हैं। भगवान के प्रथम पारने का अवसर बहुल सेठ को प्राप्त होता है। देवता आकर अपार धन राशि की वृष्टि करते हुए अहोदानम की घोषणा करते हैं।
गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि दसवेकालिक सूत्र के दूसरे अध्ययन की पहली गाथा में इंद्रियों का गुलाम नहीं,बल्कि इंद्रियों के मालिक बनने की प्रेरणा प्रदान की गई है।
वास्तविक त्यागी का स्वरूप बताते हुए बताया गया है कि प्राप्त सुलभ भोगों को भी जो स्वाधीनता पूर्वक त्याग देता है, वही सच्चा त्यागी कहलाता है। याद रखें छोड़ने में सुख प्राप्त होता है, और छुटने में दुख होता है। मृत्यु के आने पर सारे साधन वगैरा स्वत:ही छूट जाएंगे.और जीवन में धर्म नहीं करने का पश्चाताप रह जाएगा।
इसी के साथ ममत्व भाव घटाने के लिए एक प्यारा सा सूत्र संजीवनी बूटी के समान फरमाया कि”वह मेरा नहीं है और मैं भी उसका नहीं हूं” प्रभु महावीर ने तो अपने शरीर को भी अपना नहीं माना। स्वयं भी शरीर और आत्मा के मध्य भेद विज्ञान किया,और हमें भी ऐसा भेद विज्ञान करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। हमारा लगाव और जुड़ाव ही हमारे दुख का मुख्य कारण है।अत्: दुखों से मुक्त होने के लिए मैं और मेरेपन के लेवल का त्याग करें। अगर ऐसा प्रयास और पुरषार्थ रहा, तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
धर्म सभा में आज विजयनगर महिला मंडल की श्राविकाओ द्वारा गुरुदेव श्री के आगामी चातुर्मास की विनती की गई।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा व हंसराज नाबेड़ा ने किया।
पदमचंद जैन

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