सिलेंडर की राहत डीजल ने छीनी

रोजमर्रा की चीजों के दामों में लगातार हो रही वृद्धि से हलकान आम आदमी पर सरकार ने महंगाई का बड़ा बोझ डालने का इंतजाम कर दिया है। सरकार ने तेल कंपनियों को डीजल की कीमत में हर महीने 50 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी करने की इजाजत दे दी है। कंपनियां जल्द ही इसका एलान करेंगी। साथ ही रेलवे, मॉल, मोबाइल टावर, रेलवे सहित तमाम थोक ग्राहकों को अब बाजार कीमत पर डीजल खरीदना होगा। इससे आने वाले दिनों में न सिर्फ रेल व ट्रक-बस के किराये-भाड़े बढ़ेंगे, बल्कि रोजमर्रा की वस्तुएं भी महंगी हो जाएंगी।

साल में डीजल को छह रुपये महंगा करने का रास्ता साफ करने के फैसले का विरोध कम करने के लिए ही सरकार ने सस्ते रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या भी सालाना छह से बढ़ाकर नौ की है। ये सभी फैसले गुरुवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में लिए गए।

अगले वित्ता वर्ष यानी अप्रैल के बाद से हर परिवार को साल में नौ सब्सिडी वाले सिलेंडर मिलेंगे। चालू वित्ता वर्ष के बाकी बचे महीनों में कनेक्शनधारक दो और सस्ते गैस सिलेंडर ले सकेंगे। इस तरह से हर एलपीजी ग्राहक को चालू वित्ता ंवर्ष के दौरान आठ सस्ते सिलेंडर की आपूर्ति होगी। सस्ते सिलेंडर की फौरी राहत के एहसास को बढ़ाने के लिए तेल कंपनियों ने भी पेट्रोल को पच्चीस पैसे प्रति लीटर सस्ता करने का फैसला किया है।

सरकारी सूत्रों ने देर रात बताया कि तेल कंपनियां को हर महीने डीजल की खुदरा कीमत में पचास पैसे प्रति लीटर की वृद्धि करने की इजाजत दी गई है। इस तरह से साल में डीजल छह रुपये प्रति लीटर तक महंगा हो जाएगा। इससे डीजल बिक्री पर तेल कंपनियों के 9.60 रुपये प्रति लीटर के मौजूदा घाटे को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। अगले वित्ता वर्ष के दौरान डीजल पर सब्सिडी का बोझ मौजूदा 94 हजार करोड़ रुपये से घटकर एक लाख 35 हजार करोड़ रुपये रह जाएगा। यह बोझ सरकार व तेल कंपनियां संयुक्त तौर पर उठा लेंगी।

थोक ग्राहकों को बाजार मूल्य पर डीजल देने के फैसले से सरकार के साथ तेल कंपनियों को भी राहत मिलेगी। देश में कुल डीजल की 22 फीसद खपत रेलवे, सेना, मोबाइल टावर, मॉल और अन्य थोक ग्राहक करते हैं। डीजल का लागत मूल्य इस समय 57 रुपये है, जबकि दिल्ली में इसकी कीमत करीब 47 रुपये प्रति लीटर है। इस तरह से रेलवे सहित तमाम थोक ग्राहकों के लिए डीजल अब 10 रुपये प्रति लीटर महंगा हो जाएगा। इससे आने वाले दिनों में रेल किराया व माल भाड़ा फिर बढ़ाना पड़ सकता है। हाल ही में रेल मंत्री ने यात्री किराये में वृद्धि का एलान किया था।

सीसीपीए की बैठक के बाद पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने बताया कि ग्राहकों को सितंबर, 2012 से मार्च, 2013 के बीच तीन सस्ते सिलेंडर देने के फैसले में थोड़ा बदलाव करते हुए अब पांच सिलेंडर दिए जाएंगे। उन्होंने बताया, ‘तेल कंपनियां अब डीजल की कीमत बढ़ा सकेंगी। कब बढ़ाना है, कितना बढ़ाना है इसका फैसला वे स्वयं करेंगी।’ इसे हाल के दिनों सरकार की तरफ से आर्थिक सुधार की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों की कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।

डीजल को कंपनियों के भरोसे छोड़ने पर भड़की आग

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। डीजल मूल्यवृद्धि पर तेल कंपनियों को अधिकार देने के फैसले के साथ ही सरकार की राजनीतिक घेरेबंदी शुरू हो गई है। भाजपा समेत दूसरे सभी विपक्षी दलों ने सरकार को संवेदनहीन करार देते हुए फैसला वापस लेने की मांग की। जबकि एलपीजी की सीमा छह से नौ करने के फैसले को महज ड्रामा करार दिया। वहीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी द्रमुक के कोटे से केंद्रीय मंत्री एमके. अलागिरी को घेरते हुए पूछा कि इस बैठक में उन्होंने विरोध किया या नहीं?

‘सरकार गरीबों और आम आदमी के प्रति पूरी तरह संवेदनहीन है। इसके पास कोई नीति नहीं है, डीजल मूल्यवृद्धि को कंपनियों पर छोड़ने का फैसला तत्काल वापस लेना चाहिए।’ राजनाथ सिंह

‘तेल कंपनियों को खुली छूट देकर सरकार ने गरीबों को उनकी दया पर छोड़ दिया है।’ सुखबीर सिंह बादल

‘तेल कंपनियों को मिली छूट से हर क्षेत्र में महंगाई बढ़ेगी।’ प्रकाश करात

‘सरकार के पास कोई नीति नहीं है। वह देश को बेच देना चाहती है।’ गुरुदास दासगुप्ता

‘महंगाई पर लगाम के लिए डीजल मूल्यवृद्धि का अधिकार सरकार के पास होना चाहिए, लेकिन संप्रग ने वह जिम्मेदारी छोड़ दी।’ जयललिता

‘सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या छह के बदले नौ करना महज ड्रामा है। जिसको जितनी जरूरत हो उतनी मिलनी चाहिए।’ प्रकाश जावडे़कर

कई तरह से असर डालेगा यह फैसला

नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। सरकार ने भले ही तेल कंपनियों को डीजल कीमत तय करने में अभी आंशिक अनुमति ही दी हो, लेकिन इस फैसले के दूरगामी असर पड़ना तय है। जानकार इसे पेट्रोलियम क्षेत्र के सबसे अहम फैसले के तौर पर देख रहे हैं, जो आने वाले दिनों में ऑटोमोबाइल उद्योग, खेती-बाड़ी, रेलवे, ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्रों को भी प्रभावित करेगा। यह सरकार की अन्य आर्थिक नीतियों पर भी गहरा असर डालने वाला साबित होगा। डीजल के दाम बढ़ते हैं तो चीजें और सेवाएं महंगी होंगी। इससे ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों को पलीता लगेगा। यानी होम और ऑटो लोन महंगे बने रहेंगे। उद्योगों की लागत बढ़ेगी। नतीजतन निर्यात बढ़ाने के मंसूबों पर भी पानी फिरेगा।

बढ़ सकता है किराया-भाड़ा

इस फैसले की वजह से बहुत जल्द ही पूरे देश में यातायात महंगा हो सकता है। डीजल महंगा होने से बस भाड़ा, ऑटो भाड़ा में वृद्धि को ज्यादा दिनों तक नहीं टाला जा सकता। रेलवे, सेना जैसे बड़े थोक खरीददार देश में कुल डीजल खपत का लगभग 22 फीसद करते हैं। इन्हें अब यह खरीद बाजार भाव पर करनी होगी, यानी मौजूदा कीमत से करीब दस रुपये ज्यादा पर। इसके चलते उनकी लागत बढ़ जाएगी। डीजल में एक रुपये की वृद्धि रेलवे पर 240 करोड़ रुपये सालाना का बोझ डालती है। यदि रेल बजट से पहले डीजल के दाम बढ़े तो रेल भाड़ा और बढ़ाया जा सकता है। डीजल महंगा होने से किसानों के लिए खेती की लागत भी बढ़ जाएगी।

फलों-सब्जियों की ढुलाई बढ़ने से इनकी खुदरा कीमतों में इजाफे का बोझ भी आम जनता को उठाना होगा। ट्रकों के भाड़े और बसों के किराये भी बढ़ने तय दिख रहे हैं।

फिर खुलेंगे निजी पेट्रोल पंप

इस खबर का एक अहम असर यह होगा कि आने वाले दिनों में फिर से रिलायंस, शेल जैसी निजी कंपनियों के पेट्रोल पंप खुलने शुरू हो जाएंगे। एस्सार ऑयल के पेट्रोल पंप तो पहले से ही खुले हैं। वह इनकी संख्या बढ़ा सकती है। वर्ष 2002 में केंद्र ने निजी कंपनियों को लगभग 10,000 पेट्रोल पंप खोलने की अनुमति दी थी। तब निजी कंपनियों की ओर से लगभग तीन हजार पेट्रोल पंप खोले गए, लेकिन उनके पेट्रोल और डीजल सरकारी के मुकाबले काफी महंगे थे। नतीजतन धीरे-धीरे उनके अधिकांश पेट्रोप पंप बंद हो गए। अब पेट्रोल के बाद डीजल की कीमत भी बाजार देख कर तय होंगी तो निजी कंपनियां फिर से पेट्रोप पंप खोलना शुरू कर सकती हैं।

ऑटो कंपनियां की बदलेंगी रणनीति

ताजा फैसले के बाद आने वाले दिनों में डीजल और पेट्रोल की कीमतों के बीच का अंतर कम हो जाएगा। अभी यह अंतर 20 रुपये प्रति लीटर का है। इस वजह से हाल के महीनों में डीजल वाहनों की बिक्री में 58 फीसद की वृद्धि हुई थी, जबकि पेट्रोल गाड़ियों की बिक्री लगातार घट रही है। टोयोटा, महिंद्रा एंड महिंद्रा, मारुति सुजुकी सहित कई वाहन कंपनियों ने डीजल प्लांट पर ज्यादा निवेश करना शुरू कर दिया था। माना जा रहा है कि कीमत में अंतर कम होने से पेट्रोल वाहनों की बिक्री फिर बढ़ेगी। मारुति और हुंडई को ज्यादा फायदा होगा। सरकार की तरफ से नीति स्पष्ट करने का इंतजार कर रही ऑटोमोबाइल कंपनियां अब नई निवेश योजना बना सकेंगी।

नियंत्रित होगा घाटा, सुधरेगी देश की साख

आम आदमी पर भले ही काफी बोझ पड़े, मगर सरकार के लिए राजकोषीय घाटे को काबू में रखना आसान हो जाएगा। लागत से कम कीमत पर बेचने की वजह से तेल कंपनियों को इस वर्ष में डीजल पर 94 हजार करोड़ रुपये का घाटा होने के आसार हैं। इसके लगभग आधे हिस्से की भरपाई सरकार को अपने खजाने से बतौर सब्सिडी करनी पड़ती है। तेल कंपनियां डीजल में एक रुपये प्रति लीटर की भी वृद्धि करती हैं तो घाटे में 10,000 करोड़ रुपये की कमी आएगी। इससे भारत की साख घटाने की धमकी दे रही विदेशी रेटिंग एजेंसियों के सामने अपना पक्ष रखने में भी सरकार को मदद मिलेगी।

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