ग्रेटर नोएडा। फंड की समस्या से जूझ रही मुंबई दिल्ली औद्योगिक कॉरीडोर को एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने वित्तीय मदद मुहैया कराने की हामी भरी है। एडीबी देश की रेल परियोजनाओं की भी आर्थिक मदद देने को तैयार है। बैंक ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि वह ढांचागत विकास को लेकर और गंभीर प्रयास करे क्योंकि लंबी अवधि में गरीबी उन्मूलन के लिए इस क्षेत्र की प्रगति काफी अहम होगी।
एडीबी के अध्यक्ष ताकेहिको नकाओ ने यहां बैंक की गर्वनिंग बॉडी की 46वीं बैठक के अवसर पर संवाददाता सम्मेलन में इस बात के संकेत दिए कि भारत व एशियाई देशों की विकास दर चालू वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान भी बहुत ज्यादा नहीं रहेगी। ऐसे में बैंक की तरफ से दी जाने वाली आर्थिक मदद को बढ़ाने का बहुत औचित्य नहीं है। उल्टा इसमें कमी की जा सकती है। वर्ष 2012-13 में बैंक ने भारत को 2.8 अरब डॉलर की आर्थिक मदद दी थी। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके इसी स्तर पर ही बने रहने के आसार हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि भारत सरकार की तरफ से कुछ नई औद्योगिक व ढांचागत परियोजनाओं के लिए मदद मांगी जाती है तो उन पर अवश्य विचार किया जाएगा।
वैसे, पिछले वर्ष एडीबी ने 10 अरब डॉलर का कर्ज दिया था। मगर नकाओ का कहना है कि इस स्तर को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। एडीबी अध्यक्ष ने स्वीकार किया कि बैंक के राजस्व के स्रोत अब सूख रहे हैं। यूरोपीय संघ में ब्याज दरों के घटने से एडीबी के फंड का आकार कम हुआ है। यही वजह है कि एडीबी अब यह आग्रह करने लगा है कि सरकारों को ढांचागत क्षेत्र के विकास के लिए निजी कंपनियों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना चाहिए। नकाओ के मुताबिक अगले दस वर्षो में एशियाई देशों को ढांचागत विकास के लिए आठ खरब डॉलर की राशि चाहिए। इसमें से एडीबी सिर्फ 10 करोड़ डॉलर की ही व्यवस्था कर सकता है।
बहरहाल, एशियाई विकास बैंक ने यह उम्मीद जरूर जताई है कि भारत सहित तमाम विकासशील एशियाई देशों की आर्थिक विकास दर इस वर्ष पिछले वर्ष के मुकाबले बेहतर रहेगी। उभरते देशों द्वारा ब्रिक्स बैंक बनाने के प्रस्ताव पर नकाओ ने कहा कि यह इतना आसान नहीं है। बैंकिंग कारोबार काफी मुश्किल वाला होता है। इस बैंक को मदद देने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर जरूरी हुआ तो एडीबी उसकी सहायता करेगा और उससे गठजोड़ भी करेगा। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) इस संगठन के सदस्य हैं।