देवनानी को लोकसभा चुनाव लड़ाने का निर्णय

v devnani 11काफी माथापच्ची के बाद भाजपा हाईकमान ने अजमेर उत्तर के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी को अजमेर से लोकसभा का चुनाव लड़ाने का निर्णय किया है। बताते हैं कि भले ही ऊपर से देवनानी ने अपने चहेते नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत को टिकट देने की पैरवी की, मगर अंदर ही अंदर वे खुद के टिकट के लिए ही प्रयासरत थे।
असल में देवनानी चाहते तो नहीं थे कि लोकसभा चुनाव में रुचि लें, मगर ताजा राजनीतिक हालात के चलते उन्हें बेहतर यही लगा कि मात्र विधायक रहने की बजाय सांसद बन लिया जाए। सबको पता है कि इस बार विधानसभा चुनाव में तीन सिंधी विधायक बने हैं, ऐसे में देवनानी का मंत्री बनना मुश्किल है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पहली पसंद श्रीचंद कृपलानी हैं। हालांकि संघ अब भी देवनानी के लिए ही अड़ा हुआ है, मगर भाजपा के स्थानीय स्तर के कई नेता यही चाहते हैं कि देवनानी से किसी भी तरह से पिंड छूट जाए। बताने की जरूरत नहीं है कि भाजपा का बड़ा धड़ा उन्हें टिकट देने के ही पक्ष में नहीं था। कटवाने के पूरे जतन भी किए गए, मगर देवनानी शातिर निकले। टिकट ले आए तो इस धड़े ने उन्हें हराने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा दिया, मगर कांग्रेस विरोधी लहर पर सवार हो कर देवनानी जीत गए। जीते भी इतने तगड़े वोटों से, जितने की उम्मीद खुद देवनानी को भी नहीं थी। जाहिर है ऐसे में देवनानी अपने विरोधी धड़े की जान को जर्मन हो गए हैं। वह जानता है कि अगर देवनानी मंत्री बन गए तो उनके लिए एक बड़ी परेशानी बन जाएंगे। सो यही कोशिश कर रहे हैं कि येन-केन-प्रकारेण देवनानी से मुक्ति मिल जाए। वरिष्ठ भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत के राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने के बाद इस धड़े के हौसले बुलंद हैं। उधर देवनानी को भी लग रहा है कि शायद इस बार मंत्री पद न मिले। ऐसे में कोरा विधायक रहने से बेहतर यही है कि लोकसभा सदस्य बना जाए। सो आखिरकार देवनानी ने लोकसभा का चुनाव लडऩा स्वीकार कर लिया है।
बुरा न मानो होली है

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