राजयोग से निर्दलीय पार्षद लेखराज बन गए सभापति

photo-सुमित सारस्वत- ब्यावर नगर परिषद सभापति पद पर पार्षद लेखराज कंवरिया ने पदभार ग्रहण कर लिया है। एक दिन पूर्व भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वाले निर्दलीय पार्षद लेखराज को राज्य सरकार ने सभापति नियुक्त किया है। निकाय विभाग के उप शासन सचिव सी.एस. बेनीवाल ने राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 50 सपठित धारा 61 वर्णित प्रावधानों के तहत आदेश जारी कर 60 दिवस के लिए सभापति अधिकृत किया है। गुरुवार को एसडीएम भगवती प्रसाद कलाल ने उन्हें पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके बाद लेखराज ने कार्यभार ग्रहण किया। नवनियुक्त सभापति को कांग्रेस व भाजपा कार्यकर्ताओं व जनप्रतिनिधियों ने शुभकामनाएं दी। गौरतलब है कि पद का दुरुपयोग करने के आरोप में राज्य सरकार ने सभापति डॉ.मुकेश मौर्य को निलंबित कर दिया था। मौर्य के खिलाफ लगातार मिल रही दर्जनों शिकायतों को गंभीर मानते हुए आचार संहिता हटते ही सरकार ने निलंबन की कार्यवाही की।

एक दिन पहले ही भाजपा में हुए शामिल : ब्यावर नगर परिषद सभापति का पद अनुसूचित जाति वर्ग पुरूष के लिए आरक्षित था। सभापति का निलंबन होने के बाद भाजपा इस पद पर अपनी पार्टी का सभापति नियुक्त करना चाहती थी, मगर अल्पमत वाले भाजपा पार्षद दल में इस वर्ग से कोई पुरूष पार्षद नहीं था। ऐसे में पार्टी पदाधिकारियों ने निर्दलीय पार्षद लेखराज को पार्टी में आने का न्यौता दिया। सभापति बनने की ख्वाहिश में एक दिन पूर्व ही लेखराज ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और सभापति बन गए। इससे पूर्व वे बीते साढ़े चार साल के कार्यकाल में कांग्रेस को समर्थन दे रहे थे।

किस्मत में था राजयोग : किस्मत में राजयोग लिखा हो तो किस्मत बदलते देर नहीं लगती। ऐसा ही कुछ लेखराज के साथ भी हुआ। वर्ष 2009 में संपन्न हुए निकाय चुनाव में लेखराज ने वार्ड संख्या 23 से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था। मतगणना के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी भूपेंद्र पंवार और लेखराज को बराबर मत मिले। जीत का निर्णय करने के लिए पर्ची निकाली गई। जिसमें लेखराज विजयी हुए और पार्षद बने। विधि का विधान ऐसा रहा कि पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले कांग्रेस सभापति निलंबित हो गए। सभापति पद पर ताजपोशी के लिए भाजपा के पास कोई विकल्प नहीं था। ऐसे में लेखराज को पार्टी में शामिल होने का न्यौता मिला। अच्छे दिन आने की उम्मीद में उन्होंने प्रस्ताव को तत्काल स्वीकार कर लिया। अब 60 दिन के लिए ही सही वे सभापति बन गए। कार्यकाल पूरा होने के बाद भी ताउम्र नाम के साथ पूर्व सभापति लिखा जाएगा।

सुमित सारस्वत
सुमित सारस्वत

कांग्रेसी भी दिखे साथ : नगर परिषद में बीते साढ़े चार साल का कार्यकाल दुर्भाग्यपूर्ण रहा। कांग्रेस बोर्ड होने के बावजूद तत्कालीन सभापति मुकेश मौर्य अपनी ही पार्टी के पार्षदों से घिरे रहे। उपसभापति व मुख्य सचेतक जैसे पार्टी के दिग्गज नेताओं ने भी सभापति की जमकर खिलाफत की। इतना ही नहीं, सभापति की सबसे ज्यादा शिकायतें भी उन्हीं की पार्टी के पार्षदों ने की। संभवत: पहले राज्य में कांग्रेस सरकार होने की वजह से उन पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी। इधर, चाणक्य नीति में माहिर मौर्य चहेतों को रेवडिय़ां बांटकर अपना उल्लू सीधा करते रहे। अब परिषद को नया सभापति मिला तो पूर्व सभापति के विरोधी पार्षद भी साथ दिखे। भाजपा से सभापति बने लेखराज को कांग्रेस से उपसभापति भंवरलाल ओस्तवाल, मुख्य सचेतक सुरेंद्र यादव, पार्षद राजेश शर्मा, रामचंद्र टेलर सहित कई जनप्रतिनिधियों ने शुभकामनाएं दी।

निलंबन की ये भी एक वजह : राजस्थान के लोकायुक्त सज्जन सिंह कोठारी गत 7 मई को एक दिवसीय दौरे पर ब्यावर आए थे। यहां जनसुनवाई के दौरान उन्हें 20 शिकायतें प्राप्त हुई थी। इनमें अधिकांश शिकायतें नगर परिषद से संबंधित थी। माना जा रहा है कि मुकेश मौर्य के निलंबन में लोकायुक्त को मिली गंभीर शिकायतें भी मुख्य वजह रही।

error: Content is protected !!