बहुत पुराना है सज्जादानशीन का विवाद

dargah diwaan 01महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह से जुड़ा सज्जादानशीन का विवाद, जो एक बार फिर उभरा है, वह कोई नया नहीं है, काफी पुराना है। जब-जब भी दरगाह के खुद्दाम साहेबान अपने आपको सज्जादानशीन बताते हैं, दरगाह दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान उस पर ऐतराज करते रहे हैं। असल में उनका दावा है कि ख्वाजा साहेब के सज्जादानशीन तो वे हैं। इसकी पुष्टि के लिए वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी देते हैं। उनका कहना होता है कि खादिम तो ख्वाजा साहेब की दरगाह के खिदमत करने वाले हैं, उनका अपने आप को ख्वाजा साहेब का सज्जादानशीन कहना बिलकुल गैर वाजिब है।
ज्ञातव्य है कि हाल ही मुस्लिमों का एक प्रतिनिधिमंडल जब दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिला तो उसमें अजमेर के सैयद सुल्तान उल हसन भी शामिल थे। उन्होंने खुद को सज्जादानशीन बताया या नहीं, ये तो पता नहीं, मगर खबरों में जब उन्हें सज्जादानशीन बताया गया तो दरगाह दीवान ने उस पर कड़ा ऐतराज किया। उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति प्रधानमंत्री से अजमेर के सज्जदानशीन के रूप में मिला है, वह अजमेर का सज्जदानशीन नहीं है। खुद सज्जादानशीन दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान सोमवार को अजमेर में ही थे, उनके नाम या पद का इस्तेमाल करके कोई व्यक्ति अगर प्रधानमंत्री से मिला है तो उसने न सिर्फ प्रधानमंत्री को धोखे में रखा है, बल्कि देश की सर्वोच्च सुरक्षा एजेंसी में सेंध लगा कर प्रधानमंत्री की सुरक्षा कवच को भी भेद दिया है। समझा जा सकता है कि इस मसले पर दीवान कितने तलख हैं।
असल में यदि सज्जादानशीन शब्द पर गौर करें तो इसका मतलब औलाद व वश्ंाज से होता है। और जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से दीवान ख्वाजा साहब के निकटतम उत्तराधिकारी घोषित किए जा चुके हैं तो जाहिर है जब भी कोई अपने आपको ख्वाजा साहब का सज्जादानशीन बताने की कोशिश करेगा तो उस पर दरगाह दीवान का ऐतराज आएगा ही।
हां, बेशक दरगाह के खुद्दाम साहेबान भी सज्जादानशीन हैं, मगर वे अपने पुरखों के हैं, जो कि वंशानुगत रूप से दरगाह शरीफ में खिदमत करते हैं। अनेक खादिम अपने विजिटिंग कार्ड और नेम प्लेट पर सज्जादानशीन लिखते हैं। उनका ऐसा लिखना जायज है, चूंकि वे वंश परंपरा के अनुसार खादिम ही हैं। मगर इससे कई बार भ्रम होता है। कुछ लोग ऐसा समझ लेते हैं कि खुद्दाम साहेबान भी ख्वाजा साहेब के सज्जादानशीन हैं। दिक्कत सिर्फ ये है कि इस बारीक बात को कोई समझ नहीं पाता, इस कारण विवाद उत्पन्न होता है। अफसोस कि आज तक दोनों पक्षों ने इस पर कभी सुलह का रास्ता नहीं तलाशा है।
-तेजवानी गिरधर

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