आरपीएससी को एक धक्का और दे कर चले प्रो. शर्मा

शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो रहे राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो. बी. एम. शर्मा भले ही अपने 1 जुलाई 2011 से आरंभ हुए अपने कार्यकाल को बहुत सफल मानें, मगर सच ये है कि उनके इस छोटे से कार्यकाल में आयोग की प्रतिष्ठा और गिरी ही है। हालांकि उनके खाते में 20 हजार रिकार्ड भर्तियां करवाने, उत्तर कुंजी जारी करने की व्यवस्था, आयोग अध्यक्षों का सम्मेलन की उपलब्धि दर्ज है, मगर संभवत: वे पहले अध्यक्ष हैं, जिनके कार्यकाल में प्रश्नपत्रों पर सर्वाधिक आपत्तियां सामने आईं और महत्वपूर्ण परीक्षाओं के मामले कोर्ट गए।
ज्ञातव्य है कि प्रो. शर्मा के कार्यकाल में आरजेएस व एपीपी जेसी महत्वपूर्ण परीक्षा के मामले कोर्ट में गए, जो कि एक बहुत ही गंभीर बात है। जाहिर तौर पर इसमें आयोग की कहीं न कहीं लापरवाही रही होगी। इसके अतिरिक्त आरएएस, लेखाकार-कनिष्ठ लेखाकार, पीआरओ, एपीआरओ आदि की परीक्षाओं में प्रश्नपत्रों में अनेक आपत्तियां आईं। आरएएस प्री का भौतिकी विषय को प्रश्न पत्र तो आयोग को दोबारा ही करना पड़ गया। आरजेएस की 21 दिसम्बर 2011 को हुई परीक्षा में 26 प्रश्नपत्रों पर आपत्तियां थीं, जिनमें से 14 को तो आयोग ने भी माना।
अब जब कि वे सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं तो यह दुहाई दे रहे हैं कि भर्ती परीक्षाओं के प्रश्न पत्र तैयार करने के लिए आयोग की अपनी फैकल्टी नहीं है। इस दिशा में कुछ करने की बजाय यह कह कर वे अपना पिंड छुड़वा रहे हैं कि विभिन्न विश्वविद्यालय और महाविद्यालय समय-समय पर प्रश्न निर्माण संबंधित कार्यशालाएं आयोजित करें। इन कार्यशालाओं में अच्छे प्रश्न पत्र बनाने पर चर्चा हो, जिससे आयोग की भर्ती परीक्षाओं के बाद अभ्यर्थियों की ओर से आने वाली आपत्तियां कम होंगी। कैसी बेहूदा बात है। जब उनका अध्यक्ष रहते अपने आयोग पर ही नियंत्रण नहीं है, भला उनके इस सुझाव को कौन मानने वाला है। उससे भी बड़ी बात ये कि गलती भले ही केवल परीक्षक के स्तर पर ही हो रही है, मगर इससे प्रतिष्ठा तो आयोग की दाव पर लग रही है। अभ्यर्थी को भला किसी परीक्षक विशेष से क्या लेना-देना, वह तो आयोग को जानता है और आयोग ही जवाबदेह है। आयोग की बेशर्मी का आलम ये है कि आयोग ने जिस दिन अपने स्थापना दिवस का जश्न मनाया, उसी दिन अखबारों में आयोग ने एक प्रश्नपत्र के बारे में यह सफाई दी थी कि हम क्या करें परीक्षकों ने ही उत्तर कुंजी गलत दी थी।
बेरोजगारी मिटाने के लिए प्रो. शर्मा का एक बेतुका तर्क देखिए। वे कह रहे हैं कि अगर राज्य सरकार विभिन्न विभागों में वर्तमान में रिक्त पदों की समीक्षा करे और यथासमय आयोग को वेकेंसी उपलब्ध कराए तो राज्य की बेरोजगारी की समस्या को सुनिश्चित तरीके से सुलझाया जा सकेगा। सवाल ये उठता है कि आपकी जिम्मेदारी तो केवल सुझाई गई वेकेंसी के लिए योग्य अभ्यर्थी का चयन करने की है, कितनों को नौकरी दी जानी है अथवा सरकार के पास कितना संसाधन है, यह तो सरकार को सोचना है। आपका क्या, आप तो चयन करके अभ्यर्थी भेजते जाएंगे, मगर उनको जब तनख्वाह तो सरकार को ही देनी है।
प्रो. शर्मा ने अभ्यर्थियों के लिए एक संदेश भी दिया है कि वे सिस्टम पर विश्वास रखें, बाहर कई प्रकार की अफवाहें चलती हैं। सवाल ये है कि इस प्रकार की अफवाहें चलती क्यों हैं? जरूर आग सुलगती होगी, तभी धुआं उठता है। आयोग के अब तक के इतिहास में दलाली के कई मामले उजागर हो चुके हैं। हो सकता है हमारा आयोग और आयोगों की तुलना में कहीं बेहतर हो, मगर उसकी प्रतिष्ठा आज तक अजमेर में ही स्थित राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड जैसी नहीं बन पाई है।
कुल मिला कर विभिन्न आयोग अध्यक्षों व सदस्यों की लापरवाहियों की वजह से आयोग की प्रतिष्ठा ये हो चुकी है कि कई लोग यह सोचने लगे हैं कि आपने परीक्षा दी, पास हो गए, साक्षात्कार हुआ, पास हो गए हो और मेडिकल के बाद नौकरी भी लग गयी और फिर एक दिन अदालत का आदेश आये की परीक्षा गलत थी, नौकरी से निकालो, नयी मेरिट लिस्ट बनाओ।
-तेजवानी गिरधर

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