ट्विटर, फेसबुक की ताकत से बेखबर भारतीय नेता

गुजरात के मुख्यमंत्री सोशल मीडिया साइट गूगल प्लस पर ‘हैंगआउट’ करने वाले संभवत पहले भारतीय राजनेता हैं लेकिन भारत में बहुत कम राजनेता ऐसे हैं जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर पा रहे हैं.

वैसे कहने को ट्विटर पर करीब दो दर्ज़न से अधिक राजनेताओं के हैंडल्स हैं लेकिन लगातार ट्विट करने वाले नेताओं में उमर अब्दुल्ला, नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज़ और विजय माल्या के बाद शायद ही किसी का नाम याद आता हो.

भारतीय संसद की लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर करीब सात सौ सांसद से अधिक ही होंगे लेकिन ट्विटर पर 50 से अधिक नेताओं के नाम भी नहीं मिल सकेंगे और फेसबुक पर भी अत्यंत कम नेता हैं.

जाने माने पत्रकार राजदीप सरदेसाई कहते हैं, ‘‘मुझे लगता है कि जो बुजुर्ग नेता हैं उन्हें सोशल मीडिया की ताकत नहीं समझ में आई है लेकिन नए नेताओं में शशि थरूर हैं, जय पांडा हैं ये लोग एक्टिव हैं लेकिन आप देखिए राहुल गांधी युवाओं के नेता होने का दावा करते हैं. उनके पास ट्विटर अकाउंट नहीं हैं. शायद वो ट्विटर को गंभीरता से नहीं लेते हैं. वो समझते हैं कि ये नई चीज़ है और इसमें दम नहीं है लेकिन उन्हें समझना होगा कि ये नया माध्यम है लोगों से कम्युनिकेशन करना होगा उन्हें.’’

लेकिन फिर नेता सोशल मीडिया के नियमन या प्रतिबंध की बात क्यों करते हैं. राजदीप कहते हैं, ” जो चीज नियंत्रण में नहीं है उस पर प्रतिबंध लगा दो. ये रुख रहा है नेताओं का. देखिए गड़बड़ी तो होती है सोशल मीडिया पर हेट कैंपेन है. उसका नियमन हो लेकिन बैन करना तो किसी बात का समाधान नहीं है.”

सोशल मीडिया पर आना ही होगा

ट्विटर पर अत्यंत सक्रिय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी  कहते हैं कि ट्विटर एक अलग तरह का माध्यम है और वो इसका खूब इस्तेमाल करते हैं.

वो बताते हैं, ‘‘ मैं सुबह चार बजे उठता हूं. ट्विटर देखता हूं. मैं कोई सिनेमा स्टार नहीं हूं. मेरे साथ लोग बात करते हैं. मैं मूल्यों की बात करता हूं. सूचना देता हूं. 2 जी मामले में लोगों ने मेरा काम पसंद किया. मैं केस लड़ रहा था तो लोगों ने मुझे बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां दीं. ये क्लासरुम जैसा है.’’

स्वामी का कहना है कि जब मुख्यधारा की मीडिया ने 2 जी पर रिपोर्टिंग नहीं की तब उनके ट्विट्स फॉलो करने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ी.

वो बताते हैं कि चिदंबरम के बेटे कल्कि चिदंबरम की 12 कंपनियों के बारे में उन्हें ट्विटर पर ही किसी ने जानकारी दी थी.

वो कहते हैं, ‘‘ भारत के राजनेता में कम ही ऐसे हैं जो खुद ट्विट करते हैं. उनके सेक्रेटरी करते हैं. वो बात नहीं करना चाहते हैं. नेता लोगों को कुछ बुरा लगता है तो वो उसको ब्लॉक कर देते हैं. नेताओं को समझना होगा कि बातचीत ज़रुरी है ट्विटर या किसी सोशल मीडिया पर इंटरेक्शन करना होगा.मुझे गालियां मिलती हैं लेकिन मैं किसी को ब्लॉक नहीं करता. बातचीत होती है.’’

सुब्रहमण्यम स्वामी बताते हैं कि वो ट्विटर कांफ्रेंस भी कर चुके हैं और आने वाले दिनों में ऑल इंडिया ट्विटर कांफ्रेंस करने वाले हैं.

उधर गुजरात के नरेंद्र मोदी तो पहली बार गूगल पर हैंगआउट कर रहे हैं. ये छवि बनाने की एक बड़ी कवायद है और इसमें कुछ गलत भी नहीं.

ट्विटर सेलिब्रिटी के रुप में जाने जाने वाले सुहेल सेठ कहते हैं कि मोदी ने सोशल मीडिया को सही इस्तेमाल किया है.

वो कहते हैं, ‘‘ इसमें गलत क्या है. मोदी स्मार्ट हैं. वो ट्विटर पर भी हैं. फेसबुक पर भी उनके फैन्स हैं. अच्छा कर रहे हैं. उनमें बात है नई चीज़ों को पहचानने की. अगर गुजरात वाला मामला नहीं होता तो वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार होते. बहुत सारे नेताओं को ट्विटर या सोशल मीडिया के बारे में पता ही नहीं है. क्या कहूं बहुत सारे राजनेता तो अनपढ़ हैं. उन्हें समझ नहीं आता कि ये क्या है.’’

सुहेल सेठ ट्विटर पर लड़ भी चुके हैं. झगड़े भी कर चुके हैं. शायद ट्विटर या किसी अन्य सोशल मीडिया की यही खूबी होती है कि आप प्रतिक्रिया देते हैं.

लेकिन क्या वाकई इससे राजनेताओं को फायदा होता है. छवि बनाने वाली कंपनी परफेक्ट रिलेशन्स के दिलीप चेरियन कहते हैं कि फर्क तो पड़ता है.

वो कहते हैं, ‘‘बहुत फायदा होता है. अपनी बात पहुंचाने के लिए. मीडिया को प्रभावित करता है मीडिया. आप देखिए उमर अब्दुल्ला ने कई मुद्दे उठाए हैं. देखिए अभी 2012 में भले ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल न हो लेकिन इसके बाद के चुनाव में आप देखिएगा कि सोशल मीडिया का कितना इस्तेमाल होता है. ये बहुत ही महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका है. अभी भले ही कम नेता हों लेकिन आने वाले दिनों में नेताओं को इस पर आना ही पड़ेगा. ’’

दिलीप कहते हैं कि भारत के राजनेता अभी तक सोशल मीडिया को समझ नहीं पाए हैं. उनके अनुसार भारत के अधिकतर राजनेताओं को लगता है कि उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता.

ये बात एक हद तक सही है कि ट्विटर और फेसबुक शायद राजनेताओं के काम का अभी नहीं लग रहा हो लेकिन पिछले कुछ समय में इंटरनेट का व्यापक प्रसार हुआ है. गांवों में भी लोग फेसबुक देख पा रहे हैं उसका इस्तेमाल कर रहे हैं.

ऐसे में आने वाले दिनों में राजनेता सोशल मीडिया को नज़रअंदाज़ तो नहीं ही कर सकेंगे.

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