उर्स में अग्निकांड हो जाता तो

IMG-20150426-WA0189dअजमेर में इन दिनों ख्वाजा साहब का 803वां सालाना उर्स चल रहा है। उर्स का समापन 26 अप्रैल को कुल की रस्म के साथ होगा। माना जाता है कि छह दिवसीय उर्स के आखिरी दो-तीन दिनों में दरगाह के आसपास कई लाख जायरीन का जमावड़ा रहता है। दरगाह के आसपास की सकड़ी गलियों में पैदल निकलना मुश्किल होता है। दरगाह के चारों तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें बन गई है जिनमें गेस्ट हाऊस चल रहे है। उर्स के दौरान ऐसे सभी गेस्ट हाऊस जायरीन से खचाखच भरे रहते हैं। इन गेस्ट हाऊसों में चल रही दुकानों का अस्थाई अतिक्रमण भी मुख्य सड़क पर हो जाता है। जायरीन की भीड़ को देखते हुए ही वीआईपी व्यक्तियों के वाहन भी दरगाह से आधा किलोमीटर दूर ही रोक दिए जाते है। ऐसे माहौल में ही 25 अप्रैल को दरगाह के निकट बने ऐतिहासिक ढाई दिन के झोंपड़े के सामने बने एक मकान में आग लग गई। मकान में रह रहे एक बाबा ने स्वयं पर ही केरोसिन डाल लिया और आग लगा ली। आग की वजह से मकान की पट्टियां टूट गई। आग की वजह से संपूर्ण दरगाह क्षेत्र में एक बार तो दहशत का माहौल हो गया। यह तो अच्छा हुआ कि ढाई दिन के झोंपड़े पर आने वाली सम्पर्क सड़क पर अग्निशमन दल की छोटी गाड़ी खड़ी थी। पानी से भरी यह गाड़ी मौके पर पहुंची और आग पर काबू पा लिया। इससे कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ लेकिन सवाल उठता है कि उर्स के दौरान अग्निकांड बड़ा हो जाता तो कौन जिम्मेदार होता? दरगाह के आसपास अवैध रूप से बनी इमारतों को लेकर नगर निगम ने नोटिस तो दिए है लेकिन नगर निगम के अधिकारियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे किसी अवैध इमारत को तोड़ सके। हालात इतनी खराब है कि यदि अग्निकांड बड़ा हो जाए तो फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां मौके पर पहुंच भी नहीं सकती है। 25 अप्रैल की घटना के समय भी आग बुझाने के लिए बड़ी गाड़ी को नहीं भेजा गया। असल में फायर ब्रिगेड की बड़ी गाड़ी उर्स के दौरान अंदरकोट के इलाके में जा ही नहीं सकती। यह तो अच्छा हुआ कि 25 अप्रैल को बड़ा अग्निकांड नहीं हुआ लेकिन इस छोटे अग्निकांड से भी दरगाह से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधियों और जिला व पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को सबक लेना चाहिए। यदि दरगाह के आसपास के क्षेत्रों के रास्तों को सुगम नहीं बनाया गया तो कभी भी भीषण हादसा हो सकता है।
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