खामोश चुनाव जारी हैं

राजेंद्र हाड़ा
राजेंद्र हाड़ा
नगर निगम चुनावों में माइक, भौंपू, ढोल ढमाकों का शोर जोरों पर है परंतु मतदाता खामोश है। कोई भी राजनीतिक दल अपनी हवा का दावा नहीं कर सकता। साठ वार्डों से नुमांदगी की कतार मेें लगे राजनीतिक और निर्दलीय कैसे भी प्रत्याशी हों, कितने भी उंचे रसूखात का दावा करते हों, कितनी भी ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठ और जनसेवा का दम भरते हों परंतु सीना ठोक कर अपनी जीत का दावा करने की हालत में नहीं है। हर तरह का तौल-मौल कर उसने अपने लिए चुनावी वार्ड तय किया हो परंतु अभी उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई है। रातों को नींद नहीं आ रही है। नींद एक और बात से उड़ी हुई है। वे किसी को मनाने-पुचकारने-फुसलाने-चेताने के लिए जो फोन कर रहे हैं अब उनकी रिकार्डिंग भी जनता में वायरल होने लगी है। दूसरों को धमकाने से ज्यादा चेताने-फुसलाने का जो अंदाज और भाषा है, उसमें वह उसे तो नहीं खुद को ही गालियां बक रहे हैं। मेरे साथ यह कर ले, वह कर ले, मेरी यह कर दे, वह कर दे के अर्थों से सिमटी इन ऑडियो फोन रिकार्डिंग को सार्वजनिक तौर पर सुना नहीं जा सकता। बात दो के बीच हो रही है फिर भी सार्वजनिक हो रही है। डरे हुए इतने हैं कि कई दफा अपने फोन से बात नहीं कर रहे। उनका डियर-नियर फोन लगाकर बात करवा रहा है परंतु छोटे से इस शहर में उनींदा आदमी भी आवाज पहचान लेता है। यह हमारे भावी पार्षदों का चेहरा जरूर जाहिर करती हैं। मतदाता इतना सयाना हो चला है कि वह अपने मन में छिपे फैसले को जाहिर नहीं कर रहा। उसे अंदाज हो जाता है कि आप क्या सुनना चाहते हैं, इसलिए आपके मुंह पर आप जैसी बात ही कर रहा है। वह बाद में भी कोई टार्गेट नहीं बनना चाहता। पहली दफा थोक मालियान, थोक तेलियान में बंटी अजमेर की धरती अपने तेवर दिखा रही है। अब तक सिंधी, वैश्य और अन्य ही अपने एकता अंदाज दिखाते थे परंतु इस अंदाज ने हर जाति समाज को सक्रिय कर दिया हैै। नेताओं की झिड़कियां अब उसे याद आ रही है। अपने वार्ड की स्थानीयता भी उसे याद आ रही है और दिलाई भी जा रही र्है। सरकारी कर्मचारियों के इस शहर मे तबादला एक बड़ा परंतु खामोश मुद्दा उभर रहा है। तबादला उद्योग में चली नोटों की फड़फड़ाहट भी अब कर्मचारियों के एक वर्ग को खासी याद आ रही है। और बड़े अंदाज से कानों कान याद दिलाई भी जा रही है। उन्हें यह भी याद दिलाया जा रहा है कि जो लोग आज वार्ड बदल कर आए हैं वो जीतने के बाद यहां काम क्यों कराने लगे। अगली दफा तो फिर आरक्षण के आधार पर उन्हें अपना चुनावी वार्ड तय करना है। उन्हें तो फिर अपनी चांडाल चौकड़ी से घिरे रहना है और गिनती के अपने उन पांच सात साथियों को ही ऑबलाइज करना है जिन्हें अब तक करते आए हैं। उपर से नीचे तक एक-दूसरे को नीचा दिखाने का खेल जारी है। शह-मात कितनी किसके हिस्से आनी है, सब सामने आ जाएगा।
-राजेन्द्र हाड़ा

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