16 साल लग गए पुष्कर को रोपवे की सौगात मिलने में

स्थानीय नेताओ से नाराज होकर 2 बार रोपवे प्रोजेक्ट बंद करने की ठान ली थी कंपनी के मालिक ने
सबसे ज्यादा मंजू कुर्डिया के कार्यकाल में गति मिली और अब जाकर तैयार हुआ रोपवे

राकेश भट्ट
राकेश भट्ट
धार्मिक नगरी पुष्कर को कल मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हाथो रोपवे की सौगात मिलने जा रही है । लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा की इस रोपवे को आवेदन से लेकर क्रियान्वित होने में 16 साल से ज्यादा का समय लग गया ।
जी हाँ पूरे 16 साल का समय ।
इससे आधे समय में तो भारतीय वैज्ञानिकों ने मंगल पर जाने का मिशन पूरा कर लिया था । लेकिन हमारे पुष्कर के लापरवाह जनप्रतिनिधियो के ढीले रवैय्ये के चलते दो साल में ख़त्म होने वाले काम में 16 साल लग गए ।

रोपवे की शुरुआत से लेकर अभी तक के सफ़र की कहानी कुछ यूँ है दोस्तों •••

सबसे पहले 23 फरवरी साल 2000 को पहली बार कलकत्ता की दामोदर रोपवे एन्ड कंस्ट्रक्शन कंपनी प्रा. ली. ने नगर पालिका में रोपवे लगाए जाने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया । जिसके बाद साल 2001 में तत्कालीन पालिका बोर्ड की बैठक में पार्षदों द्वारा रोपवे की आय का 25℅ हिस्सा पालिका को देने की शर्त रखी । जिसे कंपनी प्रतिनिधियों ने ख़ारिज कर दिया ।

इसके बाद लगभग 6 सालो तक यह प्रोजेक्ट यूँ ही लटका रहा और इसकी फाइले पालिका कार्यालय में धुल खाती रही । इसके बाद 27 – 10 – 2006 को भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के लखनऊ कार्यालय से इसको शुरू किये जाने का अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया , और एक बार फिर इसे शुरू किये जाने की प्रक्रिया शुरू हुई ।

लेकिन साल 2006 में केंद्र सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र आने के बाद फिर मामला खटाई में पड़ गया और 3 सालो का समय निकल गया । आवेदन को 9 साल बीत जाने के बाद कंपनी के मालिक सी. एल. चामरियां भी हताश हो गए और उन्होंने इस प्रोजेक्ट को बंद करने का निर्णय ले लिया ।

इसके बाद 26-11-2009 को मंजू कुर्डिया ने पालिकाध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया और 2 महीनो के भीतर ही धुल फांक रही इसकी पत्रावलियों को निकालकर इसे फिर से गति देने के प्रयास शुरू किये । और फिर 24-10- 2011 को आहूत पालिका बोर्ड की बैठक में इसे शुरू करने का प्रस्ताव रखा । इस बार पार्षदों ने रोपवे की आय का 5 से 10 ℅ हिस्सा पालिका को देने का प्रस्ताव पास किया । लेकिन इस प्रस्ताव को भी कंपनी ने ठुकरा दिया । और एक बार फिर इस प्रोजेक्ट को बंद करने का निर्णय ले लिया गया ।

लेकिन मंजू कुर्डिया ने हार नहीं मानी और अपने स्तर पर तत्कालीन जिला कलेक्टर मंजू राजपाल से निवेदन कर उनकी मध्यस्थता में 15 फरवरी 2012 को अजमेर में मीटिंग आहूत करवाई । जिसमे जिला कलेक्टर , अति. कलेक्टर , पालिकाध्यक्ष , अधिशाषी अधिकारी और कंपनी के प्रोजेक्ट मेनेजर वी. के. गर्ग शामिल हुए ।

इस मीटिंग में ही रोपवे को पुनः शुरू करने का निर्णय लिया गया । प्रशासन ने कंपनी को 30 सालो तक इसका संचालन करने , हर 10 साल में लाइसेंस का नवीनीकरण करवाने , किराया दर 50 से 80 रुपये के बीच रखने , हर साल पालिका को 1 लाख रुपये देने और यात्रा करने वाले व्यक्ति का दो लालह रुपये दुर्घटना बीमा करवाने के शर्तों के साथ प्रोजेक्ट शुरू करने की सहमति प्रदान की । साथ ही एक साल में इसे शुरू करने की शर्त भी रखी ।

कलेक्टर के आदेशो के बाद पुनः 19-6-13 को पालिका बोर्ड की बैठक आयोजित हुई जिसमे कंपनी को एनओसी दी गई । इसके बाद रोपवे के निर्माण ने गति पकड़ी और कुछ ही महीनो में पचास फीसदी से ज्यादा काम पूरा भी हो गया । पालिका ने मुसाफिरों के लिए लिंक रोड का निर्माण सहित वहां पर पार्किंग स्थल बनाने के भी प्रयास किये । लेकिन फिर इसके निर्माण में रोड़े आ गए ।

और साल 2000 में शुरू की गई प्रक्रिया को अमली जामा पहनने में 2016 आ गया । कल पूरे 16 साल बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हाथो इसका लोकार्पण होने जा रहा है । लेकिन क्या यह सोचने का विषय नहीं है की जिस काम को दो साल भी नहीं लगने थे उसे हमारे लापरवाह जनप्रतिनिधियों के कारण 16 साल लग गए । आज हर कोई इसके लिए अपनी पीठ थपथपा कर शाबाशी दे रहा है लेकिन उन्हें सजा कौन देगा जिन्होंने अपने निजी स्वार्थो के लिए इतने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को बंद करने की कगार तक ले जाने में भी संकोच नहीं किया ••••

अगर ऐसे ही अपने निजी स्वार्थो के चलते बड़े प्रोजेक्ट को लटकाने का काम जारी रहा तो कैसे प्रधानमंत्री मोदी का सपना पूरा होगा , कैसे देश आगे बढ़ेगा और कैसे दुनिया को दियाहै देगा । चिंतन जरूर कीजियेगा •••••

राकेश भट्ट
प्रधान संपादक
पॉवर ऑफ़ नेशन
9828171060
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