*डा. वीणा प्रधान* शिक्षा जगत से भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित। खुद के ब्यावर की बेटी होने का गर्व हे। किसी भी विषय पर अपना पक्ष रखने में दक्ष। बेबाक बोल। ias-ips भाषण कला में आमतौर पर निपुण नही होते। अपने काम के महारथी होते हे। अपने शुरूआती पेशे की बदौलत वीणा इन दोनों ही कलाओं में पारंगत हो गई। इस प्रकार ये वक्ता और कर्ता दोनों ही जगह सफल रही। ब्यावर में पढ़ी-लिखी। बड़ी हुई। इसीलिए ब्यावर व ब्यावर वासियों से ख़ासा लगाव हे। ब्यावर के किसी प्रोग्राम में बुलाने पर अपनी सुविधानुसार पहुंचने का प्रयास रहता हे।
ब्यावर में हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शांतक्रान्ति जैन श्रावक संघ व युवा संघ ने हाल ही में एक सम्मेलन आयोजित किया। उसमे ips प्रसन्नचन्द खमेसरा भी सम्मिलित हुए। इनको युवा संघ संरक्षक प्रकाश जैन ने न्योता। वीणा प्रधान ने यहाँ भी अपनी बात खूब बेबाकी से रखी। मूलत: शैक्षणिक जगत से जुड़ी होने से उन्होंने इसी पर ध्यान फोकस किया। शिक्षा दान को सर्व श्रेष्ठ बताया। बोली कि यो भी जैन समाज शुरू से ही दान में विश्वास करता आया हे। भारत में यह तबका ही ऐसा हे जो सर्वाधिक दान देता हे। क्यों नही हम हमारे जीवन में शिक्षा दान को महत्व पूर्ण स्थान दे।
वीणा प्रधान की सोंच थी कि इसके लिए समाज के लोग मिल कर ऐसा कोष बनावे।जिससे गरीब प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को गोद लेकर उनकी पूरे डिग्री कोर्स तक की जिम्मेदारी का निर्वहन किया जाए। उन्होंने कहा कि वे पोजेटिव मानसिकता लेकर चलने वाली महिला अधिकारी हे। इसी से किसी का भला सम्भव हो सकेगा। शिक्षा के खातिर गोद लिए बच्चे जब कुछ बन जायेंगे। वे भी अपने जीवन में वैसी ही सोच लेकर आगे बढ़ेंगे। ऐसे हम सब मिलकर कड़ी से कड़ी जोड़ कर चेन बनाने का प्रयास करे। देखिएगा किस तरह समाज आगे बढ़ता हे।
वीणा प्रधान वास्तव में ब्यावर की बेटी बनकर ही जीवन शैली अपनाए हुए हे। यह विधायक शंकरसिंह रावत की बात से भी सिद्ध होती हे। रावत के अनुसार वे अपने पिछले कार्यकाल में कोई प्रकरण लेकर वीणा के पास पहुंचे। तब इनका कोई परिचय नही था। बस… ब्यावर के विधायक जानकर ही हाथोंहाथ काम कर दिया। साथ ही यह भी कहा कि ब्यावर का आम आदमी भी होता। उनकी यही मंशा होती कि उसे निराश होकर नही जाना पड़े।
भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हो जाने के बाद यह पहला ही मौका था। उनके साथ कुछ समय बिताने का। ias चोले से एकदम दूर…! वे कही भी ऐसा आभास नही होने देती कि वे आज क्या हे? ठेठ वो ही ब्यावरी लहजे में बात-चीत का अंदाज। ब्यावर के प्रचलित मुहावरों के बीच अपनी बात रखने का अपना ही अंदाज…! इस अवसर पर मुझे प्रधानमन्त्री मोदी की बात का स्मरण होता हे। जो उन्होंने इन्ही सिविल अधिकारियों के सम्मेलन में कही थी। उन्होंने कहा था कि कभी कभार वे अपने इस अफसरी चोले से बाहर निकल कर भी जीना सीखे। जीवन में कई सप्तरंगी रंग बिखरते नजर आयेंगे। वीणा प्रधान ने पहले से ही इसे जीवन में अंगीकार कर लिया दिखता हे। सही माने में इनने ऐसा ही बनने का भरसक प्रयास किया हे। बतौर ब्यावर की बेटी बनकर। IAS नही।
*सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राज)*
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