कलह को शांति में बदलने के लिये परस्पर सोहार्दपूर्ण संवाद प्रारम्भ करें

डा. जे.के.गर्ग
डा. जे.के.गर्ग
आम तोर पर देखा गया है कि कुछ कार्यालयों में अधिकारीयों एवं अधीनस्थ सहकर्मीयों के बीच पारस्परिक रिश्ते बेहद तनावपूर्ण बन जाते हैं | ऑफिस में सम्बन्ध तनावपूर्ण क्यों बन जाते हैं ? इस बारे में शोधार्थियों ने कई सर्वे और शोध किये हैं | सर्वों के निष्कर्षों में यही तथ्य सामने आया कि जीवन के सभी क्षेत्रों में तनाव पूर्ण रिश्तों की मुख्य वजह संवादहिनता और परस्पर अविश्वास की भावना ही होती है |
आप लोगों से क्या बात करते हैं इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने घर, परिवार, कार्यालय अथवा दुकान के अन्दर दूसरों से कैसे और किस प्रकार बात करते हैं। वास्तविकता तो यही है कि आपके हाव भाव और आपका चेहरा आपके अन्दर छिपी हुई भावना एवं रोष की अभिव्यक्ति आसानी सेकर देता है |

एक बार किसी दफ्तर में वहां के मुखिया कमिश्नर साहिब हडबडाते हुए आये और उन्होंने अपने चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को आदेश देकर सहायक कमिश्नर को अपने चेम्बर में बुलवाया | सहायक कमिश्नर के आने पर उनसे बिना रुख मिलाये और बिना किसी अभिवादन के तडाक से पूछा महोदय ” क्या वह रिपोर्ट तैयार हुई?” कमिश्नर साहिब का सवाल बहुत मामूली ही था किन्तु वास्तिवकता में इस साधारण से दिखने वाले सवाल के पीछे हजारों बातें छिपी हुई थी। सच्चाई तो यही है कि संबंधों में जो वार्तालाप होता है उसमें से मात्र आठ प्रतिशत शब्दों के द्वारा होता है और 92 प्रतिशत निशब्द संप्रेषण (non-verbal communication /NVC) यानि निःशब्द (बिना शब्दों के यानि हावभाव) से होता है। ” क्या वह रिपोर्ट तैयार हो गई ?” सिर्फ छह शब्द…….लेकिन कमिश्नर की आंखों से झलकती सहायक कमिश्नर के प्रति अवहेलना, माथे पर पड़ी सलवटें, आवाज में अधीरता इन दोनों अधिकारियों के मध्य कई महीनों से व्याप्त अनेकों कड़वे अनुभव को साफ़ बतला रहा था | कमिश्नर के छह शब्दों में टनों बारूद भरा था जो उन दोनों के मन में फटने को तैयार था। इसी वजह से सवाल को सुनते ही सहायक कमिश्नर नाराज हो गये। वहीं सहायक कमिश्नर के हावभाव को देख कर कमिश्नर साहिब ने मन ही मन कहा कि सवाल पूछने मात्र से सहायक कमिश्नर के नाराज होने की क्या जरूरत थी ? लगता है कि सहायक कमिश्नर बड़ा ही क्रोधी और बदमिजाज भी है।’
जीवन में अक्सर ठीक ऐसा ही अधिकतर परिवारों में भी होता है। बल्कि कहीं पर भी | मनुष्यों के बीच कोई निशब्द संप्रेषण हो तो ये ही सारे चीजें काम करती हैं। निःशब्द में जो कहा जाता है, वह इतना विभत्स, विशाल और प्रभावशाली होता है कि उसके आगे शब्द और वाणी कमजोर साबित होते हैं। वास्तिवकता में अधिकांक्ष स्त्री-पुरुष सिर्फ शब्दों पर ही ध्यान देते हैं किन्तु निःशब्द संप्रेषण या अनकहे शब्दों पर नहीं। पारस्परिक कलह एवं अविश्वास बढने का यही मुख्य कारण है।
अगर कलह को शांति में बदलना हो तो कम्युनिकेशन करना सीखना होगा, पारस्परिक संवाद चालू करना ही होगा । अमेरिका के अलास्का प्रांत में एक विधि विकसित की गई है जिसे कहते हैं,” सहृदय सुनना”। यह औपचारिक सुनना नहीं है, बल्कि आप दिल खोलकर दूसरे को भी आपके भीतर प्रवेश की इजाजत दे। दूसरे का ख्याल, उनकी भाव दशा, उनकी मनःस्थिति उनकी समस्याओं को सहानुभूति से सुने ही नहीं किन्तु उन्हें समझें भी | वो जैसे भी हैं उन्हें उसी रूप में स्वीकार करें और वार्तालाप तथा संवाद में जजमेंटल नहीं बनें | निरंतर पारस्परिक संवाद करें | जीयो और दूसरों को भी जीने दो की सोच को धारण करें | ऐसा करने से कार्यालय,परिवार में अविश्वास की काली घटाएं धीमें धीमें खत्म होती जायगी, जिसके परिणाम स्वरूप कलह अपनी ही मोत मर जायेगी एवं इसके स्थान पर जीवन में स्नेह-प्यार भरें रिश्तें कायम हो जायगें | याद रक्खें कि संघर्ष दो दिमागों के बीच हो सकता है किन्तु दो दिलों में नहीं |
विभिन्न राष्ट्रों के बीच उपजी कलह और विवादों को निपटाने के भी दो ही रास्ते हो सकते हैं यथा युद्ध या पारस्परिक संवाद | हालांकि पारस्परिक संवाद के लिये दोनों पक्षों में इच्छा शक्ति का होना जरूरी है | पारस्परिक संवादों से स्थाई शांतिपूर्ण समबन्ध स्थापित होगें |
कलह को मिटाने के लिये परस्पर स्नेह पूर्ण रिश्ते बनाये | सबको सम्मान दें | संवाद के दोरान अपनी प्रतिक्रिया देने से पहिले दूसरों के विचारों को समझें | संवाद में समरसता बनायें रक्खें, समरसता से पारस्परिक संवाद प्रभावी एवं सोहार्द पूर्ण बनेगें |
प्रस्तुतिकरण—–डा. जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—-मेरी डायरी के पन्ने, ओशोमेडिटेशन, संतो के प्रवचन आदि
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