बचे रह गए राजनेताओं में से किसकी नब्ज़ों में सांवरलाल जाट जैसी झंकार बची रह गई है?

त्रिभुवन
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सांवरलाल जाट नहीं रहे। वे अच्छे और स्पष्टवादी इनसान थे। उन्हें काबे से ज़्यादा सनमख़ाना पसंद था। वे मस्त-मौला और शहाना अंदाज़ वाले राजनेता थे। पत्रकारों से कन्नी नहीं काटते थे और उनके काम आया करते थे। काम इस सेंस में कि आप जब चाहें तब उनसे एक अच्छी बाइट ले सकते हैं और आप कई दिन तक अपनी नौकरी बचा सकते हैं।
मैंने राजधानी में रहते हुए जिन लोगों को पत्रकारिता के लिए बहुत अच्छा पाया, उनमें सांवरलाल चोटी के लोगों में थे। आपने उनके सामने अगर कुफ़्र का सामान रख दिया तो फिर वे काफ़िर बनने में देर नहीं लगाते थे। आप प्रश्न करते जाइए और वे ऐसे उत्तर देंगे कि आप लीड के बिना नहीं निकल सकते। शर्त बस बात इतनी सी थी कि आप पहले अपने सवालों की घनेरी ज़ुल्फ़ से उन्हें एक बार परीशां कर दें तो वे आपके सामने सब कुछ इस तरह रख देते थे, जो आम तौर पर राजनेताओं के बस की बात नहीं होती।
मैंने पीएचईडी के पाइपलाइनों में बहते भ्रष्टाचार की एक स्टोरी की तो पीएचईडी मंत्री के नाते उनसे प्रश्न करने की ज़रूरत पड़ी। वे बोले, देखो : मेरे समझ से बाहर की बात है। आप चाहते क्या हो? मैंने कहा : प्रश्न बहुत हैं और उनके उत्तर ज़रूरी हैं। मामसा सारा टेक्निकल है और देखो संपादक जरा टेढ़ा आदमी है और वह कहता है : जाइए, सारे प्रश्नों के उत्तर लाइए। कोई और मंत्री होता तो कन्नी काट जाता, लेकिन वे बोले : चिंता मत करो। हो जाएगा। उत्तर मैं दूंगा। वे कई दिन टालते रहे। मुझे लगा टरका रहे हैं, लेकिन उनके अंदाज़ से भरोसा टपक रहा था।
एक दिन उनका कॉल आया अचानक। बोले : आ जाओ। प्रश्नों के उत्तर ले लो। मैं हैरान। उन्होंने सेक्रेटरी से लेकर बाबू तक की पूरी मीटिंग बुलवा ली और सबके सामने मेरी प्रश्नावली रख दी। एक-एक से उत्तर पूछा और मुझे बोले : मेरे नाम से लिखते जाओ। कमाल साहस था बंदे में।
सांवरलाल जानते थे कि ये प्रश्न नक़ाब उलट वाले हैं और पशीमानी सामने खड़ी है, लेकिन बोले : आप तो छापो। बाकी मैं देख लूंगा।
वे राजनीतिज्ञ थे, लेकिन सियासत के लिए ज़रूरी माने जाने वाले अल्फ़ाज़ का लिहाज़ नहीं रखते थे। मैं, भवानी और गिरिराज अग्रवाल गए और दूषित पेयजल को लेकर प्रश्न शुरू कर दिए। वे जवाब देते गए। गिरिराज ज़रा शरारती है और वह क़लम का उलटे भी इस्तेमाल करने से बाज़ नहीं आता। गिरिराज ने पूछ लिया : दूषित पानी पीकर लोग मर रहे हैं। सांवरलाल पहले से ही इस मामले को लेकर परेशान थे और विभाग की बदनामी से उनका दिल इस क़दर दर्द में डूबा था कि बयां नहीं हो पा रहा था। लेकिन फिर भी वे सवालों की लज़्ज़त में थे और बोले : जो आया है, जाएगा। यहां थोड़ा रहेगा। उनका यह जवाब बहुत दिन तक अख़बारों की सुर्खियों में रहा और पूरे चुनाव में भी चर्चा का विषय बना कि जो आया है, वह जाएगा। वे खु़द भी और उनकी सरकार भी जैसे आई थी, वैसे चली गई।
दरअसल वे बहुत साफ़गो इनसान थे। किसान थे और ज़मीन से जुड़े थे। उन्हें बेईमान राजनेताओं जैसी चालाक भाषा नहीं आती थी। हुस्न देखकर बेताब हो जाना फ़ितरत में था फिर वह हुस्न भले किसी जटिल और फंसा देने वाले प्रश्न का ही क्यों न हो!
वे फिर चुनाव जीते और मंत्री बने। लेकिन उनका मंत्रिपद तब छिन गया जब उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़वाया गया। उनकी सत्ता की चांदनी बहुत बेनूर हो गई, भले वे सचिन पायलट जैसे युवतर नेता को हराकर लोकसभा पहुंचे। वे केंद्र में भी मंत्री बने। मैं राजस्थान हाउस में उनसे मिला तो उनका स्वास्थ्य बहुत गिरा हुआ था। कदम लड़खड़ा रहे थे। दो आदमी बमुश्किल उन्हें कमरे तक लाए। इसके बाद वे कभी गिर और कभी संभले। लेकिन उनकी सियासत का ताब जाता रहा, जो उनकी पहचान था।
वाकई में नूर का तड़का लगा हुआ हो तो धीमी हो चलती चांदनी भी ज़ीनत बन जाती है, लेकिन ज़माना इतना चालाक और मसरूफ़ है कि वह कमज़ोर राजनेता से मुंह मोड़ लेता है। सांवरलाल आखिरी समय तक लड़ते रहे। वे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे, लेकिन एक किसान की तरह जिए और ऐसे ही राजनीति की। वे कभी चबा-चबाकर नहीं बोले। उनकी शादमानी इसी में थी कि उन्होंने जीने की ठान रखी थी।
सांवरलाल चले गए हैं। मेरे भीतर का पत्रकार उनके राजनेता को बहुत मिस करेगा। एक वे ही थे जो हर तरह के हंगामों को दिल में ग़र्क कर सकते थे। भले ही वह सन्नाटे में क्याें न बदल जाए। लेकिन उनकी वह ख़ास अंदाज़ वाली आवाज़ हमारे चारों तरफ नहीं है। एक ख़रखराता सा सच और एक खुरदरा सा चौंका देने वाला बयान। सांवरलाल ने समय की ख़ामोशियों को वक्फ़ ए मातम करके रख दिया है। अब के राजनेताओं की नब्ज़ों में वह झंकार नहीं है! भाजपा में रहकर उन्होंने कांटों की तिज़ारत की और फूलों की दूकान सज़ाई थी। यह अलग बात है कि उनके इन फूलों से कंठहार गूंथकर काेई और पहन गया।
प्रणाम, सांवरलाल जी!

वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिभुवन जी की फेसबुक वाल से साभार

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