किशनगढ़ एयरपोर्ट का श्रेय किसके खाते में?

kishangarh airport 1यह एक अत्यंत सुखद बात है कि अजमेर जिले के वासियों की वर्षों पुरानी एयरपोर्ट की मांग आखिरकार पूरी हो गई, मगर इसके श्रेय को लेकर जो राजनीतिक विवाद हुआ, उसने मानो रंग में भंग सा कर दिया।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि किशनगढ़ में एयरपोर्ट के लिए आरंभिक कवायद के साथ समस्त बाधाओं को दूर करने में कांग्रेस की तत्कालीन केन्द्र व राज्य सरकारों के साथ विशेष रूप से अजमेर के पूर्व सांसद व तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट की अहम भूमिका है। इसे कोई झुठला नहीं सकता। बेशक पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते पायलट हार गए, मगर अजमेर जिले की आम जनता के जेहन में यह तथ्य बैठ चुका है कि पायलट की बदोलत ही जिले में एयरपोर्ट का मार्ग प्रशस्त हुआ है। जनता के मन यह बात भी स्थापित है कि जो काम पांच बार सांसद रहने पर प्रो. रासासिंह रावत ने नहीं किया, वह मात्र पांच साल में ही सचिन ने कर दिखाया। जानकार लोगों को पता है कि एयरपोर्ट को लेकर आ रही तकनीकी व कानूनी बाधाओं को दूर करने में पायलट ने अपने प्रभाव का किस प्रकार इस्तेमाल किया। केवल कांग्रेसी ही नहीं, बल्कि भाजपाई भी इस बात को स्वीकार करते रहे हैं कि एयरपोर्ट पायलट की देन है। अगर कोई सिर्फ दावे पर यकीन करता है तो उसके लिए यह तनिक विचारणीय है कि क्या बिना नक्शा पास हुए व वित्तीय स्वीकृतियों के बगैर कोई निर्माण हवा में करना संभव है?
बहरहाल, साथ ही यह धरातलीय सच्चाई भी नहीं नकारी जा सकती कि एयरपोर्ट की योजना भाजपा के शासनकाल में पूरी हुई है, मगर जब इसका पूरा का पूरा श्रेय मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने लेने की कोशिश की तो विवाद होना ही था। मुख्यमंत्री जैसे गरिमापूर्ण पद पर होने के बावजूद उदारतापूर्वक पायलट के योगदान को स्वीकार करने की बजाय कांग्रेस पर हमला बोला कि वह तो केवल शिलान्यास के पत्थर ही रखती है, विकास तो भाजपा कराती है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं का पलटवार करना स्वाभाविक था। वे चाहतीं तो एयरपोर्ट का काम पूरा करवाने में अपनी सरकार की उपलब्धि का हवाला देते हुए पायटल की भूमिका का भी जिक्र कर सकती थीं, जिससे उनका बड़प्पन झलकता, मगर वह अवसर उन्होंने खो दिया। राजनीति में वह सदाशयता अब बची भी कहां है।
वस्तुत: यह सपाट सत्य है कि विकास की योजनाएं बनती हैं और पूरी होती हैं, इस दरम्यान सरकारें बदल जाती हैं। ऐसे में जिस सरकार के कार्यकाल में वे पूरी होती हैं, वह इसका श्रेय लेने की कोशिश करती है, मगर जनता सब जानती है। दावा चाहे कोई भी करे, मगर जन-जन में जो तथ्य बैठ चुका है, उसे कोई दावा साफ नहीं कर सकता। किशनगढ़ एयरपोर्ट के मामले में भी यही हुआ। जनता तो समझ ही रही थी कि यह पायलट की ही देन है, यहां तक कि वसुंधरा राजे भी जानती थी कि जनमानस में यह बैठा हुआ है कि एयरपोर्ट पायलट की मेहनत का परिणाम है, बावजूद इसके उन्होंने पूरा श्रेय लेने की कोशिश की। श्रेय लेने की इच्छा का सबसे बड़ा सूबत ये है कि नियमित उड़ानें शुरू होने में अभी भी समय है, मगर आचार संहिता लागू हो जाने के डर से जल्दबाजी में इसका उद्घाटन कर दिया गया। समझा जा सकता है कि लोकसभा उपचुनाव में वे इसका लाभ लेना चाहती हैं।
जाहिर सी बात है कि जैसे ही दावे-प्रतिदावे हुए तो मीडिया भी उसमें कूद पड़ा। अमूमन कांग्रेस के खिलाफ लिखने वाले कलमकारों भी स्वीकार किया कि वसुंधरा ने राजनीतिक चतुराई का इस्तेमाल किया है। वे भी इस तथ्य को सहज भाव से स्वीकार कर रहे हैं कि पायलट की महत्वपूर्ण भूमिका है। एक वरिष्ठ एवं स्वतंत्र लेखक ने तो लिखा है कि सबसे पहले पायलट ने ही किशनगढ़ के पास हवाई अड्डा होने का सपना देखा था।
खैर, राजनीति में दावेबाजी चलती रहती है, उसे रोका भी नहीं जा सकता, मगर किसका दावा स्वीकार करना है, यह तो जनता ही तय करेगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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