रासासिंह को टिकट चाहिए तो पद छोडऩा होगा

प्रो. रासासिंह रावत

हालांकि राजस्थान भाजपा में भावी मुख्यमंत्री के रूप में श्रीमती वसुंधरा राजे को प्रोजेक्ट करने अथवा न करने की जद्दोजहद थमी नहीं है, लेकिन इस बीच चुनावी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। एक ओर जहां प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी अपने स्तर सर्वे करवा रहे हैं, वहीं वसुंधरा ने भी फीड बैक लेना शुरू कर दिया है। जयपुर में चल रही इस सरगरमी के बीच खबर आई है कि अजमेर शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत ने पुष्कर से चुनाव लडऩे की इच्छा जताई है। इस पर उन्हें कहा गया बताया कि अगर टिकट चाहिए तो आपको पद छोडऩा होगा। वजह ये कि जो दावेदार टिकट की भागदौड़ करेगा तो अपने पद की जिम्मेदारी कर ठीक से निर्वहन नहीं कर पाएगा। यह फार्मूला अन्य शहर व देहात जिला अध्यक्षों पर भी लागू किए जाने की जानकारी मिली है।
जहां तक रासासिंह की टिकट का सवाल है, उसमें अड़चन ये है कि परिसीमन के बाद रावत बहुल बनी ब्यावर सीट पर पहले से ही भाजपा के शंकरसिंह रावत काबिज हैं। उनका टिकट कटने की संभावना कम है। ऐसे में जिले से रावतों को दो टिकट देना कुछ कठिन है। विशेष परिस्थिति में दी भी जा सकती है।
इसी बीच रावत के उत्तराधिकारी की चर्चा भी आरंभ हो गई है। यूं तो इसके लिए एक बार फिर पूर्णाशंकर दशोरा, शिवशंकर हेडा, धर्मेश जैन, धर्मेन्द्र गहलोत, हरीश झामनानी, श्रीकिशन सोनगरा आदि के नाम उभर कर आ रहे हैं, मगर मौजूदा जिला सदस्यता अभियान प्रभारी प्रो. बी. पी. सारस्वत का नाम पुन: प्रमुखता से सामने आ रहा है। पिछली बार भी जब शहर भाजपा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी की खींचतान मची हुई थी तो आखिर तक प्रो. सारस्वत ही नंबर वन चल रहे थे, मगर विधायकद्वय प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल ने प्रो. रावत के नाम पर सहमति दी थी। अब जब कि प्रो. रावत के पद से हटने की बात आ रही है तो फिर से प्रो. सारस्वत का नाम सामने आ गया है। इस बार उनका नाम और दमदार तरीके से सामने आया है। एक तो उस वक्त सहमति न देने वाले अब सहमति देने को आतुर दिखाई देते हैं। दूसरा सदस्यता अभियान के कुशल संचालन की वजह से उनका पाया और मजबूत हो गया है कि उनमें बेहतर संगठन क्षमता है, जिसका उपयोग पार्टी हित में किया जाना चाहिए। बेशक प्रो. सारस्वत के लिए यह अच्छी स्थिति है, मगर ऐसे में उनकी पिछले पंद्रह साल से ब्यावर से टिकट हासिल करने की इच्छा का क्या होगा? क्या वे इस इच्छा की तिलांजलि दे देंगे?

प्रो. बी. पी. सारस्वत

राजनीति के जानकार बताते हैं कि कोई भी नेता संगठन की अहम जिम्मेदारी की बजाय जनप्रतिनिधि बनना ज्यादा पसंद करता है। कारण ये है कि जनप्रतिनिधि के ठाठ कुछ अलग ही होते हैं। संगठन में तो केवल घिसाई होती है, प्रतिष्ठा भले ही हो। उसमें भी यदि सरकार अपनी पार्टी की हो तो ठीक है, विरोधी पार्टी की सरकार है तो घिसाई कुछ ज्यादा ही होती है। गांठ का पैसा भी पूरा होता है। इसके अतिरिक्त एक बार जिसमें मन में चुनावी राजनीति करने की इच्छा जागृत हो जाती है तो वह छूटती नहीं है। प्रो. सारस्वत की छूटी या नहीं, पता नहीं। एक पहलु ये भी है कि वे जिस ब्यावर सीट से चुनाव लडऩा चाह रहे थे, वह अब रावत बहुल हो गई है। वर्तमान में भी रावत विधायक ही है। जिले की अन्य सीटों की दावेदारियां पहले से ही अन्य जातियों के लिए पुख्ता मान ली जाएं तो उनके लिए मसूदा सीट ही बचती है। वह उनको कितना मुफीद रहेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। बहरहाल, अजमेर में चुनावी सरगरमी शुरू हो गई है और नित नई चर्चाएं होती रहेंगी।
-तेजवानी गिरधर

1 thought on “रासासिंह को टिकट चाहिए तो पद छोडऩा होगा”

Comments are closed.

error: Content is protected !!