चुनावी सियासत में शह और मात का खेल शुरू

स्वर्ण समाज की नाराजगी कांग्रेस के लिए फायदा और भाजपाके लिए बनी हुई है परेशानी

प्रियांक शर्मा
प्रियांक शर्मा
चुनाव कोई भी हो रूठना और मनाने का रिवाज हर राजनैतिक पार्टियां निभाती है। ऐसी जरूरत कही ना कही राजनैतिक दलों के बोए हुए वो बीज होते है जो चुनाव के वक़्त उन्हें शूल की तरह चुभते है। अजमेर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा ने जातिगत राजनीति की शुरूआत की। सत्तासिन पार्टी की मुखिया ने विभिन्न जातियों के लोगो से मुलाकात की। मगर इससे कई जातियां संतुष्ठ नही हो पाई। मसलन स्वर्ण जाति की नाराजगी अभी तक बरकरार है। इनमे ब्राह्मण और राजपूत प्रमुख है। दोनों जातियों की नाराजगी ने भाजपा की नींदे उड़ा रखी है वही कांग्रेस को इस मौके का फायदा उठाने की ताक में है। अजमेर सांसदीय सीट सामान्य है। भाजपा ने ओबीसी वर्ग और पूर्व सांसद सावर लाल जाट के बेटे को मैदान में उतारा। यानी जनरल सीट को भाजपा ने जनरल से छीन ओबीसी वर्ग को दे दिया। ऐसा पहली बार नही हुआ है। नगर निगम के मेयर पद की सीट सामान्य वर्ग की होने के बावजूद उसे ओबीसी की झोली में डाला गया। चलिए अब ब्राह्मणों की नाराजगी भी बताते है। सरकार के मंत्री मंडल में महज एक ब्राह्मण को जगह मिलना। सरकार के शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी का ब्राह्मणों के खिलाफ टिपण्णी करने से उपजा विवाद। वही संगठन में ब्राह्मणों की अनदेखी और सामान्य जाति के आरक्षण पर सरकार की चुप्पी नाराजगी की वजह है। जबकि ब्राह्मण समाज राजपूत समाज की तरह अधिकांशतः भाजपा का ही वोट रहा है। मगर दो समाजो की हालत घर की मुर्गी दाल बराबर जैसी हो गई है। वही राजपूत समाज की नाराजगी किसी से छुपी नही है। समाज उचित प्रतिनिधित्व नही मिलने से नाराज है। आनंदपाल एन्काउन्टर मामले में समाज का गुस्सा सबने देखा। वही रही सही कसर फ़िल्म पद्मावती ने पूरी कर दी। यानी 50 वर्षो से भाजपा का बड़ा वोट बैंक अब सरक कर नए विकल्प के तौर पर कांग्रेस को समर्थन कर रहा है। दोनों ही जातियों को मनाने के हरसंभव प्रयास किये जा रहे है। राज्य मंत्री ब्राह्मण समाज से खेद प्रकट कर रहे है तो भाजपा के माहिर राजपूत समाज के पार्टी के बड़े नेता समाज की नाराजगी को दूर करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे है। वैश्य समाज के लोगो मे वह ठीस आज भी है जब भाजपा के टिकट पर किरण माहेश्वरी ने अजमेर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। माहेश्वरी ने किस वजह से हार का सामना किया वह किसी से छुपा हुआ नही है। इधर कमजोर संगठन के बावजूद कांग्रेस भाजपा को चुनोती दे रही है। सत्ता विरोधी लहर पर सवार कांग्रेस महंगाई, भ्रष्टाचार और किसानों की हिमायती बन सत्ता विरोधी लहर से चिंगारी को और हवा देने का काम कर रही है। राजपूत और ब्राह्मण एकता कांग्रेस के मंसूबो को मजबूत बना रही है। इस बार अजमेर लोकसभा चुनाव में भाजपा से रामस्वरुप लांबा और कांग्रेस से डॉ रघु शर्मा है। मगर असलियत में यहां चुनावी भिड़ंत सरकार और विपक्ष के बीच हो रहा है। सीएम अजमेरमे पहले कई दौरे कर चुकी है। वही अब उन कमजोरी को मजबूत करने में जुटी है जो सरकार कार्यशैली से उत्पन्न हुई है। यही वजह है कि अजमेर के रण में सत्ता संगठन के साथ पुत्र और पुत्र वधु को भी इस समर में उन्होंने उतार दिया है। जहीर है सत्ता का यह सेमीफाइनल भविष्य के लिए जनता के मूड और सरकार के रिपोर्ट कार्ड को प्रदर्शित करेगा। कांग्रेस विपक्ष में काफी कमजोर है। मगर अजमेर रण में इस बार पूरी तैयारी के साथ उतरी है। पीसीसी चीफ सचिन पायलट दो बार यहां से चुनाव लड़ चुके है। मगर इस बार पायलट की रुचि केंद्र की राजनीति की बजाय राज्य की राजनीति में ज्यादा नजर आ रही है। उनके सीट छोड़ देने के पीछे उनकी मंशा भी स्पष्ठ प्रतीत हो रही कि उनका लक्ष्य क्या है। यह चुनाव सीएम वसुधरा राजे के लिए जितना महत्व पूर्ण है उतना सचिन पायलट के लिए भी। पायलट की प्रतिष्ठा ही नही राजनीति भविष्य भी यहां दांव पर लगा है। सीट जितने पर उनका कद प्रदेश की राजनीति में उच्चा होगा। वही हारने पर संगठन में उनके विरोधियों को उन्हें पस्त करने का मौका मिल जाएगा। इसलिए पायलट भी जुझरू होकर चुनावी रण में पार्टी प्रत्याक्षी के सारथी बनकर लोगो से वोट मांग रहे है। चुनावी रण में अब वो समय आ गया है जब शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। दोनों ही पार्टियां पूरी ताकत से अपने अपने घोड़े दौड़ा रही है। कांग्रेस इस रण में शह पर शह दे रही है और भाजपा अपने परंपरागत वोट बैंक के सरकने से रोकने की कवायद कर मात से बचने की जुगत में लगी है।

प्रियांक शर्मा
अजमेर
[email protected]
9251472738
9649345641

error: Content is protected !!