कामचोर कारिंदों पर बरसती गालियां तो शायद जनता का भला होता

संसदीय सचिव और केकड़ी विधायक की एक भा ज पा कार्यकर्ता से अभद्र भाषा मे मोबाइल चर्चा आज पूरे दिन कस्बे में चर्चित रही।इसमें कितनी सच्चाई है ये तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा।हां इतना जरूर है कि यदि नेताजी यही गालियां कामचोर अधिकारियों और कर्मचारियों पर बरसाते तो शायद जनता को जरूर लाभ मिल पाता इसमें कोई संदेह और लेकिन किंतु परंतु वाली बात होती ही नही।
जल स्वावलंबन योजना में ब्लॉक में हुए घोटाले कि जांच के नाम पर लीपा पोती करके किस तरह अधिकारियों ने एक आरोपी अधिकारी को बचाया किस प्रकार से जिला शिक्षा अधिकारी प्रारंभिक द्वारा संसदीय सचिव के निर्देशों की पालना नही की गई और एक गबन और सरकारी रिकॉर्ड गायब करने के आरोपी के संरक्षक बनकर उसको बचाते आ रहे ऐसे अधिकारियों पर ये गालियां बरसती तो शायद पीड़ितों और जन मानस को कुछ लाभ मिल पाता।इसी प्रकार अत्यावश्यक सेवाओ के कामचोर कारिंदों पर ये गालियां बरसती तो निसंदेह आम जन लाभान्वित भी हो पाता।कहावत भी है की” लातों के भूत बातों से नही मानते है” काम करवाने के लिए इस जमाने मे अंगुली तो टेढ़ी करनी ही पड़ेगी।
कैसा समय है अंगुली टेढ़ी करो तो दुख और नही करो तो जनता दुखी।

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