मास्टर माइंड कौन..?

अजमेर डिस्कॉम में महिला कार्मिक द्वारा एक करोड़ के गबन का मामला

अमित टंडन
अजमेर। बिजली विभाग की एक डेटा एंट्री ऑपरेटर , जो सहायक प्रशासनिक अधिकारी बना दी गई, और गबन के एक करोड़ के मामले अखबारों की सुर्खियां बनी हुई है ।
मगर क्या वेतन लिस्ट में फर्जी कर्मचारियों के नाम जोड़ कर हर महीने लाखों की रकम उन फर्जी कर्मचारियों के फर्जी बैंक खातों में जमा कराने के नाम पर गबन का आईडिया उसके अकेले के दिमाग की उपज होगा??
किसी ने जरूर उसे ऐसा आईडिया देकर उकसाया होगा.. शायद कोई सहकर्मी, या अधिकारी, या बाहरी व्यक्ति भी हो सकता है, जो उसके जॉब प्रोफाइल के आधार पर ये समझ गया होगा के इसकी सीट पर बैठ कर ऐसा घोटाला किया जा सकता है।
आईडिया को अमली जामा पहनाने से पहले भी काफी सोच विचार किया गया होगा। इस खेल में उसके साथ शामिल लोगों/लोग ने कई बार उससे चर्चा भी की होगी। फिर पूरी प्लानिंग के बाद खेल शुरू किया होगा। ।
सन 2012 में उसकी जॉब लगी थी परित्यक्ता कोटे में। 2016 तक कोई घोटाला नही हुआ। या हुआ होगा तो सामने नहीं आया, और संभवतया अब कोई और पुराने मामले भी सामने आ जाएं, कि पंचशील मुख्यालय में उसके कार्यकाल के 6 सालों में पहले भी कई वर्ष ऐसे घोटाले हुए..!!
पर ये जांच का विषय है।
अब कुछ एक बड़े सवाल
मसलन:-
** जैसा विभाग का कहना है कि अप्रैल 17 से मई 18 के 14 महीने के दैरान पंचशील मुख्यालय में रोकड़ शाखा में आरोपी अनपूर्णा सैन ने 43 लाख 48 हज़ार 362 रुपए का गबन किया।
*मगर सवाल ये है कि इस बीच मार्च 18 की क्लोसिंग भी हुई। विभागीय ऑडिट के बाद बाह्य ऑडिट टीम ने भी एकाउंट्स ऑडिट की। और चौंकाने वाली बात ये रही कि लगभग आधे करोड़ की राशि का गड़बड़झाला ना विभागीय ऑडिट ने पकड़ा ना, बाह्य मुख्य ऑडिट ने पकड़ा। तो क्या ऑडिट में भी गड़बड़ झाला हुआ..??*
जबकि उसके बाद नया वित्तीय वर्ष शुरू हो गया और अन्नपुर्णा सैन ने नए वित्तीय वर्ष के भी अप्रैल और मई माह में घोटाले करके और गबन किये।
*यानी उसे आश्वस्त किया गया होगा के तुझ पर आंच नही आएगी..!*
मार्च क्लोसिंग में 2018 के एकाउंट्स को हर तरह की ऑडिट से क्लीन चिट मिलना इत्तेफाक तो नही हो सकता, क्योंकि अनियमितता पांच-दस हज़ार रुपये की नही थी कि नज़र से चूक गई।
*कोई भी रकम पास होने से पहले, चैक कटने से पहले, भुगतान होने से पहले, यानी हर तरह की प्रक्रिया से पहले फ़ाइल कई हाथों से गुजरती है, जिसमें डीलिंग क्लर्क, सहायक लेखाकार, फिर लेखाकार, फिर सहायक लेखाधिकारी, फिर लेखाधकारी के हाथों से गुज़र कर फ़ाइल का एक-एक data, हर तथ्य भली प्रकार जांच कर, फिर उसकी त्रुटियां व कमियां दूर करवा कर पैसा पास किया जाता है , तथा उसके पश्चात ही भुगतान होता है।*
** *अर्थात , ये भी संभव है कि खेल में शामिल “सब” हो सकते हैं। मंशा ही नही रही होगी कि ऑडिट में घपला पकड़ना है, पहले ही सोच रखा होगा के अनियमितता को छुपा कर वित्तीय वर्ष के end में चुपचाप एकाउंट को क्लीन बता कर क्लोज कर देना है*
इसी आश्वासन ने शायद उस सहायक प्रशासनिक अधिकारी को हौसले दिए हों कि पूरा system मेरे साथ है, सबका हिस्सा उन्हें पहुंच रहा है, उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा, या वो कभी पकड़ में नही आएगी।
और पकड़ में आई भी नहीं।
** मार्च 18 के वित्तीय वर्ष क्लोसिंग के बाद भी उसने अप्रैल और मई में वहां गबन किये। वो तो बाद में उसका हाथी भाटा स्थित अजमेर वृत्त में ट्रांसफर हो गया।
*मगर सोचने वाली बात ये कि यहां भी उसका सेक्शन/जॉब प्रोफाइल नही बदला गया, और वही जिम्मदारी मिली जो मुख्यालय में उसके पास थी,, यानी वही रोकड़ शाखा, वही सेलरी बनाने का कैशियर वाला काम, और वही गबन करने के मौके*
** क्या ये इत्तेफाक था..??? क्योंकि अक्सर/अधिकतर/हर कर्मचारी व अधिकारी के साथ तो ये हुआ है कि स्थानांतरण के बाद उसे किसी अन्य सेक्शन पर अलग कार्य पर ही लगाया जाता रहा है। पर अन्नपुर्णा को वापस अजमेर वृत में भी कैशियर बना कर सेलरी का काम ही मिला और उसने यहां भी वही “खुला खेल फर्रुखाबादी” खेला। बेखौफ, बेहिचक..!
** किसने आश्वस्त कर रखा था उसे, जो उसे किसी बात का डर नही था..?
क्या वो गिरफ्तार होने के बाद नाम उजागर करेगी कि कौन कौन है इस game में शामिल उसके साथ??
** क्या वो अकेली इस game की खिलाड़ी है?
** क्या वो ही master mind है?

** *एक सवाल और*
हाथी भाटा स्थित डिस्कॉम के भवन में चल रहे अजमेर वृत कार्यायल में उसके द्वारा किये जा रहे गबन का भंडा फोड़ चार माह में ही हो गया,
पर उसके मुख्यालय में पदस्थापित रहते हुए किए गए 14 माह के घोटाले को वहां के लोग क्यों नही पकड़ पाए..?*
*कहीं ऐसा तो नही कि शायद उन्हें घोटाला पकड़ना ही नही था।*

अर्थात- यहां ACC में मात्र चार माह में किया गया करीब 43 लाख का घोटाला यदि पकड़ में नही आता, तो मुख्यालय में हुए गबन का तो कभी पता ही नही चलता, क्योंकि वहां तो हर स्तर की ऑडिट ने एकाउंट्स साफ सफाई से क्लोज करके फाइलें बांध कर रखवा दी थी।
*इस हिसाब से मुख्यालय में उसके गबन के खेल की पारी सिर्फ मार्च 2017 से मई 2018 तक ही नही चली..!! हो सकता है के वो वहां कई साल से ये अनियमितता कर रही हो, क्योंकि वो वहां 2012 से पदस्थापित थी।*
पांच दस हज़ार रुपये की अनियमितता तो चलो इस रूप में ली जा सकती थी कि गलतीं से आंकड़ा/फिगर कम ज्यादा लिख देने से राशि ज्यादा भुगतान कर दी गई होगी, उस गलती को तो रिकवरी के माध्यम से सुधारा जा सकता है।
*पर क्या कारण रहा के मुख्यालय में डेलिब्रेटली साल दर साल/महीने दर महीने लगातार आराम से फर्जी वेतन उठाए जाते रहे और आरोपी कैशियर की करतूत किसी के पकड़ में ही नही आई?*
अब ये भी जांच का विषय है कि जब हाथी भाटा स्थित ACC कार्यालय ने 3-4 महीने में ही गड़बड़ पकड़ कर घोटाला उजागर करने का सराहनीय कार्य कर दिखाया तो, वहां मुख्यालय में जहां एक साल/ या सालों से खेल चल रहा था, उनकी पकड़ में क्यों नही आया.!?!?
*प्रसंगवश:-* ये पहला मामला नहीं है डिस्कॉम में कि कोई लाखों की चपत लगा गया। वर्ष 2003 में भी उदयपुर में बिल कलेक्शन करने वाली एक निजी ठेकेदार फर्म का मुखिया प्रकाश सैन। उस वक़्त डिस्कॉम के 52 लाख रुपये लेकर भाग गया था। जो आज तक फरार है औऱ कहीं ऐश की ज़िंदगी बसर कर रहा होगा।
*वो केस मैंने ही उजागर किया था, जिस पर मुझे बेस्ट स्मार्ट स्टोरी का अवार्ड भी मिला था।*
तब नरेंद्र धुन्ना FA and CAO हुआ करते थे। उस वक़्त पूरी case फ़ाइल, तथ्य व समस्त जानकारियां मैंने जांच में सहयोग के लिहाज़ से उन्हें उपलब्ध कराई थीं, मगर आज 15 साल बाद भी उस केस में ना विभाग कुछ कर पाया, ना पुलिस।
*मजेदार बात ये कि तब 2003 में डिकॉम को चूना लगाने वाला भी “सैन” ही था यानी कुंदर नगर, अजमेर निवासी प्रकाश सैन… और अब 2018 में डिस्कॉम को चूना लगाने वाली कर्मचारी भी “सैन” है , अन्नपूर्णा सैन।
है ना अजब इत्तेफाक?
(हालांकि तब इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट लिखते समय मैंने अपने सूत्रों की खबर के हवाले से डिस्कॉम और पुलिस दोनों को प्रकाश सैन के दिल्ली में छुपे होने की जानकारी भी दी थी, पर तब भी नतीजा ढाक के तीन पात निकला था, उसके बाद मेरा तबादला हुआ, और वो केस भूली बिसरी बात बन कर रह गया। मगर आज भी 15 साल पुराना डिस्कॉम का 52 लाख रुपया ब्याज सहित वसूला जाना बाकी है, आरोपी का पकड़ा जाना बाकी है)
फिलहाल जांच के दायरे को बढ़ा कर विभाग औऱ पुलिस देखें , तो डिस्कॉम की शायद काफी गंदगी साफ हो जाए। ।
-अमित टंडन।

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