साफ नज़र आता है कि धर्म के ठेकेदार नहीं चाहते कि उनकी नींव हिले.. किसी शहनशाह से पुरखों को मिली ताजपोशी के ईनाम को, जन्म जन्म की विरासत मान कर स्वयंभू धर्माधिकारी बन बैठे लोग, अब धरम की दादागिरी कर रहे हैं…
कई जगह है ये तमाशा.. धर्मस्थल तो अब शक्ति प्रदर्शन के अड्डे बन कर रह गए हैं… कभी शंकराचार्य कोई टिप्पणी साईबाबा पे करके धर्म पे अपना एकाधिकार जताते हैं.. कहीं साईंभक्त अपने तर्कों कुतर्कों के आधार पर सनातन परम्पराओं को चेलेंज करते हैं… कहीं इमाम किसी गद्दी पे अपने खानदान की रजिस्ट्री करवा के बैठ जाते हैं.. अजमेर में भी कई धार्मिक स्थलों के यही हाल हैं… धर्म की सत्ता पाने के लिए एक ही धर्मस्थल से जुडी दो जमातों के लोग अधर्मियों की तरह लड़ते हैं.. मगर पीछे का सच ये है कि ये सब लोग इस लड़ाई को धर्म की लड़ाई का नाम देते ज़रूर हैं मगर झगड़ा धर्म की रक्षा से ज़्यादा चढ़ावे की रकम के लिए है जो करोड़ों में होती है….. झगड़ा उस रुतबे के लिए है जो उस धर्मस्थल की वजह से समाज में, सरकार में, सियासत में कायम है.. “”या रूतबा कायम करना चाहते हैं…” धर्म का पालन तो हो ही नहीं रहा..
जबतक ये गद्दिनशीनीं का लालच दूर नहीं होगा धर्म का पालन नहीं हो सकेगा.. मीडिया को तो मसाला चाहिए.. शंकराचार्य बनाम साईंभक्त परिचर्चाओं के माध्यम से मीडिया ने जो आग लगाईं, वो निराशाजनक था.. जो व्यक्ति जिसकी भी पूजा करना चाहता है करने दो.. किसी के पास कोई कॉपीराइट या पेटेंट तो है नहीं धर्म का कि दूसरा उनके धर्म का पालन नहीं कर सकता, या उनके बताये अनुसार ही नियमों से पूजा पाठ या सजदे करने होंगे… मुझे तो पूजा कि विधि या सजदों के आदाब नहीं पता.. बस अपने अल्लाह या भगवान् को दिल से याद करके इतना भर कह देता हूँ कि “ना नमाज़ आती है ना वजू आता है, बस सजदा कर लेता हूँ जब सामने तू आता है…” कोई भी मंदिर, दरगाह, चर्च, गुरुद्वारा, किसी पीर फ़कीर की मज़ार कुछ भी दिखाई देती है मैं सिर झुका देता हूँ.. मेरा सजदा हो जाता है… दुआ कबूल होगी या नहीं होगी इसकी नहीं सोचता… तो क्या मैं अधर्मी हूँ…?
हमने देखा है ना परिवारवाद सियासत में हावी है तो देश का क्या हाल है…. समझ जाइए की इसके मायने क्या हैं.. यानी जहां परिवारवाद है वहाँ धर्म नहीं है सिर्फ सियासत है… अब बंद होना चाहिए ये तमाशा.. सच्चे धर्म रक्षकों को ही धर्म की कमान सौंपी जानी चाहिए.. मौक़ापरस्त, मतलबपरस्त, सियासी उच्चाकांक्षा रखने वाले लोग धर्म की उच्च पदवियों से बर्खास्त होने चाहिए…. ताकि आम जनता को सही मार्गदर्शन मिले, देश समाज में धर्म का सही पालन हो सके..
अमित टंडन