एडीए में स्थानीय राजनीतिक अध्यक्ष के बिना विकास मुश्किल

एक ओर जहां कांग्रेस सरकार बनने के बाद कांग्रेसी नेता अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने का सपना संजो रहे हैं, वहीं इस आशय की चर्चा सामने आने से कि जयपुर विकास प्राधिकरण की तर्ज पर अजमेर व जोधपुर विकास प्राधिकरणों में भी स्वायत्त शासन मंत्री को ही अध्यक्ष बनाए जाने पर विचार हो रहा है, उनकी आशाओं पर तुषारापात होता दिख रहा है। इतना ही नहीं इस प्रकार की खबर से विकास की बाट जोह रही जनता भी चिंतित है, क्योंकि अगर स्वायत्त शासन मंत्री प्राधिकरण के अध्यक्ष हुए तो प्राधिकरण के स्थानीय सारे कामकाज पर अफसरशाही ही हावी रहेगी और उनकी सुनवाई ठीक से नहीं होगी। स्वायत्त शासन मंत्री केवल महत्वपूर्ण विषय के लिए ही वक्त दे पाएंगे। हर काम के लिए मंत्री महोदय का ही मुंह ताकना पड़ेगा। हमारे यहां सरकार कामकाज का ढर्ऱा कैसा होता है, सब जानते हैं। हर फाइल स्वीकृति के लिए जयपुर जाएगी तो विकास की रफ्तार कितनी धीमी होगी, कल्पना की जा सकती है।
यह सर्वविदित ही है कि पहले यूआईटी हो या अब एडीए, शहर के विकास के नए आयाम स्थानीय राजनीतिक व्यक्ति के अध्यक्ष के रहने पर स्थापित हुए हैं। जब भी प्रशासनिक अधिकारी के हाथों में कमान रही है, विकास की गति धीमी रही है। इसके अनेक उदाहरण हैं। उसकी वजह ये है कि जिला कलेक्टर या संभागीय आयुक्त के पास अध्यक्ष का भी चार्ज होने के कारण वे सीधे तौर पर कामकाज पर ध्यान नहीं दे पाते। वैसे भी उनकी कोई रुचि नहीं होती। वे तो महज औपचारिक रूप से नौकरी को अंजाम देते हैं। उनके पास अपना मूल दायित्व ही इतना महत्वपूर्ण होता है कि वे टाइम ही नहीं निकाल पाते। निचले स्तर के अधिकारी ही सारा कामकाज देखते हैं। इसके विपरीत राजनीतिक व्यक्ति के पास अध्यक्ष का कार्यभार होने पर विकास के रास्ते सहज निकल आते हैं। एक तो उसको स्थानीय जरूरतों का ठीक से ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त जनता के बीच रहने के कारण यहां की समस्याओं से भी भलीभांति परिचित होता है। वह किसी भी विकास के कार्य को बेहतर अंजाम दे पाता है। प्रशासनिक अधिकारी व जनता के प्रतिनिधि का आम जन के प्रति रवैये में कितना अंतर होता है, यह सहज ही समझा जा सकता है। राजनीतिक व्यक्ति इस वजह से भी विकास में रुचि लेता है, क्योंकि एक तो उसकी स्थानीय कामों में दिलचस्पी होती है, दूसरा उसकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती है। उनका प्रयास ये रहता है कि ऐसे काम करके जाएं ताकि लोग उन्हें वर्षों तक याद रखें और उनकी राजनीतिक कैरियर भी और उज्ज्वल हो। आपको ख्याल होगा कि राजनीतिक व्यक्तियों के अध्यक्ष रहने पर बने पृथ्वीराज स्मारक, सिंधुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक, लवकुश उद्यान, झलकारी बाई स्मारक, वैकल्पिक ऋषि घाटी मार्ग, अशोक उद्यान, गौरव पथ, महाराणा प्रताप स्मारक, सांझा छत इत्यादि आज भी सराहे जाते हैं। कुल मिला कर बेहतर यही है कि प्राधिकरण का अध्यक्ष कोई राजनीतिक व्यक्ति ही हो।

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