शहर भाजपा में अपरिहार्य हैं देवनानी व अनिता

लगातार चार बार विधानसभा चुनाव जीत कर अंगद के पांव की तरह जमे वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल कांग्रेस के लिए तो बहुत बड़ी परेशानी बने हुए हैं ही, भाजपा के अनेक समकक्ष व दूसरे दर्जे के नेताओं के लिए भी ऐसी गलफांस हैं, जिनसे मुक्ति नितांत असंभव सी प्रतीत होती है। ऐसा नहीं कि भाजपा के अन्य नेताओं ने इन दोनों के वर्चस्व को तोडऩे की कोशिश नहीं की, मगर उन्हें कभी कामयाबी नहीं मिली। यहां तक कि शहर जिला भाजपा के अध्यक्ष पद पर काबिज रहे शिव शंकर हेड़ा, प्रो. रासासिंह रावत व अरविंद यादव भी उनकी आभा को कम नहीं कर पाए। हेड़ा अपने दूसरे कार्यकाल में जरूर पहले की तुलना में अधिक मुखर हैं, मगर देवनानी व अनिता का तोड़ नहीं निकाल पाए हैं।
असल में लगातार तीन बार विधायक रहने और देवनानी के दो बार शिक्षा राज्य मंत्री व श्रीमती भदेल के एक बार मंत्री बनने के कारण भाजपा के अनेक कार्यकर्ता उनसे उपकृत हुए हैं। वे उनका अहसान कभी नहीं भुला सकते। और यही वजह है कि संगठन से इतर दोनों की अपनी-अपनी टीम है, जो उन्हें जितवाने का काम करती है। जनप्रतिनिधि के रूप में लगातार पंद्रह साल काम करने के कारण उन्हें गहरा अनुभव हो चुका है कि किसकी क्या औकात है और उसी के अनुरूप वे उनसे व्यवहार करते हैं। श्रीमती भदेल तो फिर भी ज्यादा विवाद में नहीं रहीं, मगर देवनानी के खिलाफ पूरा संगठन खड़ा हो गया, लेकिन न तो वह उनका टिकट कटवा पाया और न ही जीतने से रोक पाया। दोनों की जीत में जहां उनकी निजी टीम की भूमिका है, वहीं दोनों विधानसभा सीटों का जातीय ढ़ांचा ही ऐसा है कि उन्हें जीतने में कोई दिक्कत नहीं होती। हालांकि भाजपा के अनेक कार्यकर्ता श्रीमती भदेल के व्यवहार से दुखी हैं, मगर वे उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते, चूंकि सिंधी व माली वोट बैंक के अतिरिक्त निजी प्रयासों से अनुसूचित जाति के वोटों के दम पर वे हर बार जीत जाती हैं। इसी प्रकार सिंधियों के एक मुश्त वोटों के साथ भाजपा मानसिकता के बनिये हर बार देवनानी की नैया पार लगा देते हैं। बेशक संगठन का अपना ढ़ांचा है, मगर अधिसंख्य नेता व कार्यकर्ता देवनानी व अनिता के शिकंजे में हैं। लंबे समय तक अजमेर की भाजपा बाकायदा दो धड़ों में विभाजित रही है। प्रदेश हाईकमान भी उनके झगड़े को खत्म नहीं कर पाया। सच तो ये है कि प्रदेश स्तर पर जारी गुटबाजी से ही उनको संबल मिलता है। जहां संघ देवनानी पर वरदहस्त रखे हुए है, वहीं अनिता भदेल पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की विशेष कृपा से देवनानी के टक्कर में मंत्री बन बैठीं। पिछले विधानसभा चुनाव में जब नए चेहरे लाने की चर्चा आई तो अनिता पूरी तरह से आश्वस्त थीं कि अगर देवनानी का टिकट नहीं कटा तो उनका भी नहीं कटेगा। और कटता भी क्यों, आखिर दोनों लगातार तीन बार जीत चुके थे।
ताजा जानकारी अनुसार एडीए का चेयरमेन रह चुकने के बाद शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा कुछ मजबूत हुए हैं, मगर वे दोनों के वर्चस्व को खत्म नहीं कर पाए हैं। बताया जाता है कि तीसरी लॉबी के विकसित होने की आशंका के बीच देवनानी व भदेल ने अंडर द टेबल हाथ मिला लिया है। जिन के झगड़े पब्लिक डोमेन में आम थे, जिनके बीच सदा छत्तीस का आंकड़ा था, उनके बीच तरेसठ का आंकड़ा बनता दिखाई दे रहा है। स्वाभाविक रूप से उन कार्यकर्ताओं को भारी दिक्कत हो रही है, जो इनके झगड़े के कारण आइडेंटिफाई हो गए थे।
इस बीच कानाफूसी ये है कि हेड़ा प्रदेश हाईकमान के कान भरने में कामयाब हो गए हैं कि इन दोनों की वजह से संगठन का सत्यानाश हुआ है, लिहाजा दोनों को संगठन चुनाव में दखन न देने दिया जाए। हालांकि उनके पास इस बात का जवाब नहीं होगा कि यदि यह सच है तो फिर दोनों चौथी बार कैसे जीत गए?
यदि प्रदेश भाजपा की यह रणनीति है कि पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा से मुक्ति पा ली जाए, तो कदाचित वह थोड़ा बहुत कामयाब हो जाए, मगर अजमेर में यह नीति कामयाब होती नहीं दिखाई देती। यदि संगठन में देवनानी व भदेल के कुछ विरोधी काबिज हो भी गए तो भी अधिसंख्य वे ही संगठन में स्थान पा जाएंगे, जो इन दोनों से निजी तौर पर जुड़े हुए हैं।
रहा सवाल कभी अजमेर भाजपा के भीष्म पितामह रहे औंकार सिंह लखावत की तो वे इन दिनों इतिहास लेखन में व्यस्त बताए जाते हैं। स्थानीय स्तर पर भले ही उनकी जाजम सिमट चुकी हो, मगर उनका कद प्रदेश स्तर पर इतना बड़ा हो गया है कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। देवनानी के तो वे शुरू से धुर विरोधी थे, मगर बताते हैं कि अब उनके अनिता से भी पहले जैसे संबंध नहीं रहे।
कुल जमा बात ये है कि इस बार संगठन के चुनावों पर आगामी नगर निगम चुनाव की छाया रहेगी। सारा तानाबाना उसी के आधार पर बुना जाएगा। चुनाव लडऩे के इच्छुक घूम फिर कर देवनानी व अनिता से ही अपने तार जोड़ेंगे। हां, इतना जरूर है कि इस बार हेड़ा के इर्दगिर्द जमा हुई लॉबी भी बंदरबांट में अपना हिस्सा ले पड़ेगी। वैसे भी इस बार अस्सी वार्डों के लिए प्रत्याशी तलाशे जाएंगे, इस कारण अधिसंख्य दावेदार स्थान पा ही जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर
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