शहर भाजपा अध्यक्ष पद के लिए गहलोत सबसे ज्यादा उपयुक्त

अजमेर शहर भाजपा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी में खींचतान चल रही है। एक तरफ मौजूदा शहर भाजपा अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा का गुट है तो दूसरी ओर तकरीबन 15 साल तक स्थानीय भाजपाइयों को दो फाड़ करके रखने वाले पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व पूर्व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की एकजुटता है। उनकी एकजुटता की वजह साफ है। भले ही उन्होंने शहर भाजपा को दो हिस्सों में बांट कर रखा, मगर पावरफुल होने के कारण पूरी भाजपा उनके ही कब्जे में थी। जैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की कृपा से शिव शंकर हेड़ा अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने, देवनानी व भदेल की दादागिरी से त्रस्त एक नया गुट डॅवलप हो गया। संयोग से अजमेर विकास प्राधिकरण से निवृत्त होने के बाद भी हेड़ा को ही शहर भाजपा की कमान सौंपी गई, इस कारण उनका गुट कुछ और मजबूत हो गया। हालांकि वे पूर्व में भी अध्यक्ष रह चुके हैं, मगर तब वे इतने पावरफुल नहीं थे। हालत ये थी कि अजमेर नगर परिषद के चुनाव में अपने एक भी चेले को टिकट नही दिलवा पाए। सारी सीटें देवनानी व भदेल के बीच ही बंटी। चाहे प्रो. रासासिंह रावत का अध्यक्षीय कार्यकाल हो या अरविंद यादव, चलती देवनानी व भदेल की ही थी। ऐसा होना स्वाभाविक भी था। दोनों के पास सत्ता की ताकत रही, इस कारण जिन-जिन के भी उन्होंने काम करवाए, वे उनके भक्त हो गए। अध्यक्ष तो संगठन प्रमुख के रूप में नाम मात्र का था। कहा भले ही ये जाए कि मजबूत संगठन की वजह से ही लगातार चार बार विधानसभा चुनावों में अजमेर की दोनों सीटें जीती गईं, मगर सच्चाई ये है कि ऐसा देवनानी व भदेल के व्यक्तिगत दमखम और जातीय समीकरण की वजह से हुआ।
खैर, अब जब कि ये समझा जाता है कि नए प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया गुटबाजी खत्म करना चाहते हैं, ताकि शहर अध्यक्ष पावरफुल हो और आम कार्यकर्ता की सुनवाई हो, तो देवनानी व भदेल से त्रस्त कार्यकर्ता व छोटे नेता हेड़ा के इर्दगिर्द और अधिक लामबंद हो रहे हैं। भला यह देवनानी व भदेल को कैसे मंजूर हो सकता है कि उनका भाजपा पर से कब्जा छूट जाए, लिहाजा अपना अस्तित्व बचाने की खातिर दोनों एक दूसरे के नजदीक आ गए हैं। उन्होंने संगठन चुनाव में अपने चहेतों को मैदान में उतारने के लिए कमर कस ली है। नगर निगम चुनाव में मात्र आठ माह बचे हैं। वे जानते हैं कि यदि उनकी पसंद के पदाधिकारी न बने तो चुनाव में दिक्कत आएगी।
बात अगर शहर अध्यक्ष पद की करें तो ऐसा समझा जाता है कि संघ व भाजपा, दोनों ऐसे चेहरे की तलाश में हैं, जो मुखर हो, अनुभवी हो और सभी को साथ लेकर चल सके। फिलवक्त एक भी ऐसा चेहरा सामने नहीं आया है। आनंद सिंह राजावत जरूर दमखम रखते हैं और संगठन को ठीक से चला सकते हैं, लेकिन उन पर आमराय बनना संभव नहीं लगती। नए चेहरों में नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत, मौजूदा डिप्टी मेयर संपत सांखला और पार्षद जे. के. शर्मा व नीरज जैन हैं। चांस सभी गुटों को साथ ले कर चलने का माद्दा रखने वाले नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर सोमरत्न आर्य को भी मिल सकता था, मगर फिलहाल यौन शोषण के एक मामले में फंसने या फंसाए जाने के कारण उनका नाम बर्फ में लग गया है। इन सब के अतिरिक्त एक और दमदार नाम है मौजूदा मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का। उनका रुझान निकाय चुनाव में ही था, लेकिन अब जबकि मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित हो गया है, उनकी चुनावी मंशा पर लाइन फिर गई है। मेयर पद से हटने के बाद उनके पास वकालत करने के लिए अलावा कोई काम नहीं रहेगा। ऐसे में समझा जाता है कि वे इस पद में रुचि दिखाएं। यह उनके राजनीतिक केरियर के लिए तो अच्छा है ही, भाजपा संगठन के लिए भी सूटेबल है। अध्यक्ष पद के जितने भी दावेदार हैं, उनमें से वे सर्वाधिक उपयुक्त हैं। निचले स्तर पर संगठन पर पकड़ के अतिरिक्त प्रशासनिक कामकाज का भी अच्छा खासा अनुभव है। वे अजमेर नगर परिषद के भूतपूर्व सभापति स्वर्गीय वीर कुमार की शैली के एक मात्र जुझारू नेता हैं। देवनानी के तो करीबी रहे ही हैं, हो सकता है कि अनिता भदेल भी हाथ रख दे। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि देवनानी से उनके पहले जैसे संबंध नहीं रहे, मगर राजनीति में कुछ भी संभव है।
-तेजवानी गिरधर
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