स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल पर कितनी विह्वल होगी स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा की आत्मा

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019, आज से ठीक चार साल पहले अजमेर के एक ऐसे लाल को काल के क्रूर हाथों ने हमसे छीन लिया, जिसने स्मार्ट सिटी बनने वाले अजमेर को एक सपना दिया था। वह सपना कितना कीमती था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनको उस सपने के लिए बाकायदा पुरस्कृत किया गया।
आपको याद होगा कि मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में अमेरिका यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मिल कर अजमेर सहित दो शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की थी। इसी सिलसिले में 2 अक्टूबर 2015 को अजमेर नगर निगम ने ऑन लाइन सुझाव मांगे थे। तब शहर के जाने-माने वकील व पत्रकार स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा ने दस पेज का एक सुझाव सौंपा था कि कैसे इस पुरानी बसावट वाले शहर को स्मार्ट किया जा सकता है। उनके सुझाव को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए निगम ने 29 नवंबर 2015 को उन्हें एक समारोह में प्रमाण पत्र के साथ पंद्रह हजार रुपए का नकद पुरस्कार दिया, जिसमें तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत व आयुक्त एच. गुईटे मौजूद थे। समझा जा सकता है कि उन्होंने कितने महत्वपूर्ण सुझाव दिए होंगे। आज जब हम स्मार्ट सिटी की कछुआ चाल को देखते हैं तो स्वर्गीय श्री हाड़ा की पांचवीं पुण्यतिथी पर बरबस उनकी याद आ जाती है। अगर वे हयात होते तो अपनी आंखों से देखते कि उन्होंने जो सपना नगर निगम को सौंपा था, उसका हश्र क्या हो रहा है? बेशक उनकी आत्मा विह्वल होगी कि उन्होंने जो सुझाव दिए, जिन्हें कि सराहा भी गया, उस पर अमल में कितनी कोताही बरती जा रही है।

किसी समारोह में पति के साथ श्रीमती चांदनी हाडा
प्रसंगवश बता दें कि स्वर्गीय श्री राजेन्द्र हाड़ा पेशे से मूलत: वकील थे, मगर पत्रकारिता में भी उनको महारत हासिल थी। लंबे समय तक दैनिक नवज्योति में कोर्ट की रिपोर्टिंग की। बाद में दैनिक भास्कर से जुड़े, जहां उनके भीतर का पत्रकार व लेखक पूरी तरह से पुष्पित-पल्लवित हुआ। उन्होंने पत्रकारिता में आए नए युवक-युवतियों को तराश कर परफैक्ट पत्रकार बनाया। वे एक संपूर्ण संपादक थे, जिनमें भाषा का पूर्ण ज्ञान था, समाचार व पत्रकारिता के सभी अंगों की गहरी समझ थी। अजयमेरू प्रेस क्लब का संविधान बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। उनकी अंत्येष्टि के समय पार्थिव शरीर से उठती लपटों ने मेरे जेहन में यह सवाल गहरे घोंप दिया कि क्या कोई कड़ी मेहनत व लगन से किसी क्षेत्र में इसलिए पारंगत होता है कि वह एक दिन इसी प्रकार आग की लपटों के साथ अनंत में विलीन हो जाएगा? खुदा से यही शिकवा कि यह कैसा निजाम है, आदमी द्वारा हासिल इल्म और अहसास उसी के साथ चले जाते हैं। वे अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर मुझ सहित अनेक लोगों के जेहन में जिंदा हैं। चलो, वे बहुत सारा अर्जित ज्ञान अपने साथ ले गए, लेकिन संतोष है कि नगर निगम को अपना सपना जरूर सौंप गए। मगर साथ ही अफसोस भी है कि उस सपने को पूरा होने पर नौ दिन चले, अढ़ाई कोस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
स्वर्गीय श्री हाड़ा की पुण्यतिथी पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चांदनी हाड़ा के अहसासात को जानने की कोशिश की तो उन्होंने कुछ इस तरह अपना अनुभव बांटा:- उन्होंने पुरस्कार स्वरूप मिली राशि से अपने पिता, बहिन, पत्नी, पुत्र व छोटे भाई के दोनों बच्चों को रणथंभोर की यात्रा करवाई। उन्होंने करीब आठ सौ सीढिय़ां चढ़ कर गणेश जी की प्रतिमा से क्या कुछ मांगा था, समझ में नहीं आया। मगर उसका परिणाम ये हुआ कि पिताश्री का गणेश जी पर से विश्वास उठ गया। आज वे कहते हैं कि मैं गणेश जी को नहीं मानता। स्वाभाविक है कि जिस पिता ने वृद्धावस्था में अपने जवान बेटे खोया होगा, उसकी आस्था तो टूटेगी ही। मेरे व परिवार के सपने तो विधाता ने छीन लिए मगर मेरे पति को असली श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके सपने को हम अजमेर वासी साकार होता हुआ देखें।
-तेजवानी गिरधर
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