मुस्कराइये क्योंकि आप अजमेर में है !

हास्य-व्यंग्य

शिव शंकर गोयल
एक बार पुष्कर तीर्थ में आदरणीय मोरारी बापू ने रामायण कथा के दौरान बताया कि कानपुर मैं जगह जगह बैनर लगे है जिस पर लिखा था “मुस्कराइयें क्योंकि आप कानपुर में है.” बापू की इच्छा थी कि अजमेर-पुष्कर रेलवे स्टेशन तथा बस स्टैन्ड पर भी इसी आशय के स्थाई बैनर-बोर्ड लगायें जाय. बापू की यह इच्छा अजमेर-पुष्कर निवासियों की हंसने-हंसाने की प्रकृति से मेल भी खाती है. यहां पग पग पर हास्य बिखरा हुआ है. एक बार किसी प्रसिध्द व्यक्ति ने अजमेर का दौरा करके बताया था कि यहां ज्यादातर कर्मचारी वर्ग है. उनमें से कुछ टायर्ड और कुछ रिटायर्ड है. जब रिटायर्ड ही कुछ नही कर पा रहे है तो टायर्ड क्या करते होंगे ? हां सब मुस्कराते रहते है.
जैसे अन्य स्थानों के लोग त्यौहार-वार खुशियां मनाते है अजमेर के लोग भी मनाते थे लेकिन इन सबके अलावा, जब कई घन्टों के बाद घरों में बिजली और कई दिनों के बाद नलों में पानी आता था तब भी वह खुशियां मनाते थे यानि लोगों को extra खुशियां मनाने का मौका मिलता था.
एक समय था जब शहर के सरकारी विभागों के बाहर किसी तरह के बोर्ड आदि लगाने की भी आवश्यकता नही पडती थी. उनकी पहचान मूक संकेतों से हो जाया करती थी. मसलन कही सडक टूटी हुई हो तो समझलें कि सामने ही PWD का ऑफिस है, कूडे का बडा ढेर पडा है तो समझिये नगर परिषद, पाईप लाईन लीक कर रही है तो वाटर वर्क्स, दिन में भी बत्ती जल रही है तो बिजली बोर्ड और बेरोजगारो की लम्बी लाईन लगी हुई हो तो एम्लॉयमेंट एक्सचेंज का दफ्तर होगा. बिजली कनक्शन के फॉर्म बिजली विभाग में नही मिलते थे.गर्मियों की छुट्टियां ही क्या किसी भी छुट्टियों में कोई मेहमान नही आता था क्योंकि पानी की बहुत दिक्कत थी. मेजबान और मेहमान दोनों को कितनी बडी राहत !
एक बार यहां के रचनाकारो की संस्था, काव्य संगम, में हास्य-व्यंग्य के एक रचनाकार के यहां शिशु का आगमन होने वाला था. वह लोंगिया यानि जनाना अस्पताल के लेबर रूम के बाहर इंतजार की घडियां गिन रहे थे. थोडी देर में ही अंदर से हंसते हुए नर्स आई और उनसे कहा बधाई हो हास्य कवि ! पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है. आश्चर्य करते हुए उन्होंने जवाब दिया सिस्टर ! आपको भी बधाई हो लेकिन एक बात बताइये कि आपको कैसे मालूम हुआ कि मैं हास्य रस पर कुछ लिखता हूं तो वह बोली सरजी ! अमुमन ऐसा होता नही है लेकिन चूंकि आपका लडका हंसता हुआ पैदा हुआ है. इसलिये मैंने सोचा कि आप हास्य रस के लेखक होंगे.
एक बार हाउस टैक्स जमा कराने के लिए नगर परिषद जाना पडा. मुझें लगाये गए टैक्स के बारे में कुछ पूछना भी था. वहां दफ्तर में पूछते 2 मैं बडे बाबूजी यानि हैड साहब के पास पहुंचा और कुछ कहने लगा तो वह बोले पहले अपना हैड चैक कराओ. मैं चकराया और उन्हें कहा कि सर मैं तो रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी हूं. मेरा हैड सही नही होता तो मुझें सरकार इतने साल नौकरी पर ही क्यों रखती ? इस पर वहां खडे दूसरे बाबूजी ने बात संभालते हुए कहा कि हैड साहब का मतलब है कि पहले लेखा शाखा में जाकर इसे दिखालो कि पैसा किस मद में जायेगा फिर यह आपको बतायेंगे.
वहां से निबटकर जब मैं बाहर काउंटर पर पैसे जमा कराने गया तो देखा कि खिडकी के ऊपर एक बोर्ड टंगा है जिस पर लिखा था अजमेर स्वर्ग है, आप उसके निवासी है. मैंने जिज्ञासावश बाबूजी से पूछा कि आप यह लिखकर अजमेरवासियों को क्या संदेश देना चाहते है ? जो कुछ कहना है सीधे सीधे ही कह दो हालांकि शोक संदेश छापते समय अखबार वाले भी सबको स्वर्ग ही भेजते है लेकिन वह एक एक करके भेजते है आपने सबको एक साथ स्वर्गवासी बना दिया.
अजमेर में एक प्रायवेट अस्पताल के कॉरीडॉर में जगह जगह तख्तियां टंगी है जिन पर लिखा है जेबकतरों से सावधान. इतनी ज्यादा तख्तियां उन्होंने क्यों टांग रखी है, यह बात तो वही बता सकते है.
मेरे एक दुकानदार मित्र को अपनी दुकान के लिए किसी कर्मचारी की भर्ती करनी थी. उनकी शर्त थी कि उम्मीदवार शादीशुदा ही होना चाहिए. मेरे द्वारा जिज्ञासा प्रकट करने पर उन्होंने बताया कि शादीशुदा आदमी डांट आसानी से खा लेता है और पलटकर जवाब भी नही देता.
अजमेर में लोकसेवा आयोग के काम का ही प्रभाव है कि एक बार जब यहां का एक कर्मचारी कार्यालय में ही अपने काम के साथ साथ अपनी लडकी का वैवाहिक विज्ञापन भी तैयार कर रहा था तो रोजमर्रा की आदत के अनुसार उसने इस विज्ञापन में भी अनुभव का कॉलम बना डाला और उसमें लिख दिया वर को कम से कम दो वर्ष का अनुभव आवश्यक है.
इसी आयोग में एक इन्टरव्यू के दौरान चयन कर्ताओं ने उम्मीदवार से पूछा कि बताओ गांव वाले और शहरवालें में क्या फर्क होता है तो उसने जवाब दिया कि जब गांववाले को नाक साफ करनी पडती है तो वह उसे साफ करके बाहर फेंक देता है जबकि शहर वाला उसे रूमाल में समेटकर जेब में रख लेता है.
कई लोगों ने अपनी 2 दुकान-मकान के बाहर ऐसे 2 बोर्ड लगाये हुए है कि बरबस आपकी निगाह वहां जाती है. उदाहऱणार्थ केसरगंज मे एक किरयाने वाले ने अपनी दुकान पर बोर्ड लगाया हुआ है चोर बनियां, नलाबाजार में जूतोंवाले ने बोर्ड टांग रखा है अनाडी जूतेवाला, अलवरगेट पर भूतिया हलवाई तो किसी और जगह एक हलवाई ने सूगल्या-गंदा- हलवाई, घी वाले ने धूत घीवाला, वकील ने लालची वकील तो नाई ने गेल्या-आधा पागल- नाई. सरे आम कहना सच सच कहना अजमेरवालों की हिम्मत की बात है.
वर्षों पूर्व दिल्लीगेट से चमारघाटी जानेवाली सडक पर एक पुराने टूटे-फूटे मकान की सीढियों पर टाट लटकाकर रखें एक शख्स ने अपने मकान का नामकरण किया हुआ था बादशाही बिल्डिंग.
नेम प्लेट की एक घटना और, हमारे पडौसी रामस्वरूपजी शर्मा हिन्दी में एम ए थे. कॉलेज में पढाते थे. बादमें उन्होंने सूर,तुलसी,केशव आदि के भक्ति साहित्य पर पीएचडी करली और अपने घर के बाहर नेम प्लेट टांगली डा. रामस्वरूप शर्मा. जैसे ही गली-मोहल्ले में सबको पता लगा लोगों ने आना शुरू कर दिया. अब सुबह देखे न शाम, हर कोई सर्दी-जुखाम. सिरदर्द, पेटदर्द की दवा लेने आ रहा है. डाक्टर साहब किस किस को समझायें ? हार-थक कर उन्होंने नेम प्लेट ही उतारली.
केसरगंज-पडाव में खाने के तेल की थोक दुकान पर एक ग्राहक गया तो वहां तेल की एक ब्रांड पर लिखा था केलोस्ट्रोल फ्री. खैर उसने पूरे टिन का भाव पूछकर पेमेंट कर दिया और चलते वक्त टिन के साथ 2 केलोस्ट्रोल भी मांगा तो दुकानदार से उसे समझाया कि यह अलग से फ्री में देने की कोई चीज नही है. ग्राहक बडबडाता हुआ चला गया कि लोगों को धोखा देते है.
पुष्कर मेले में तो एक बार बहुत मजेदार घटना हुई. उन दिनों वहां पशु बिकने आते है. एक ग्रामीण ने बिकनेवाले अपने ऊंट के साथ एक बकरी फ्री का ऑफर दिया हुआ था. बकरी के गले में फ्री की तख्ती लगी थी. एक ग्रामीण आया. उसने समझा बकरी फ्री में मिल रही है वह खोलकर उसे लेजाने लगा. किसी तरह उसे समझाया गया कि ऊंट खरीदने पर बकरी फ्री है, वैसे फ्री नही है. क्या करें ? यह अजमेर-पुष्कर की धरती है. यहां पग पग पर हंसी बिखरी हुई है.
अजमेर की ही यह खूबी है कि यहां हर साल गर्मियों में होटलों एवं रेस्टोरेन्टस में तख्तियां लग जाती थी जिस पर लिखा होता था ‘कृपया पानी मांगकर शर्मिन्दा न करें. कही कही लिखा होता था ‘दो कप चाय के साथ एक गिलास पानी फ्री. खराब हैन्डपम्प पर लिखा होता था ‘आज नही कल.

क्रमश
शिव शंकर गोयल

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