मेरे एक साथी, भाई तुल्य श्री राजेन्द्र वर्मा का निधन हो गया। वे एक बेहतरीन इंसान थे। जीवन में जम कर काम किया। खूब संघर्ष भी करते रहे।
उनसे मेरे स्नेह की कड़ी थे उनके पिताश्री स्वर्गीय बाबूलाल जी वर्मा। उन्होंने सन् 1961 में वातावरण के नाम से एक साप्ताहिक शुरू किया। उस जमाने के साप्ताहिक-पाक्षिकों में उसकी गिनती बेधड़क लेखनी की वजह से अग्रणी पंक्ति में होती थी। काफी समय तक वह अखबार चला, बाद में आर्थिक कारणों से बंद हो गया। स्वर्गीय श्री वर्मा की बावड़ी पाड़ा, नगरा में खुद की पिं्रटिंग प्रेस थी। उन्होंने उस जमाने, जबकि ऑफसेट के बारे में लोग जानते तक नहीं थे, उन्होंने अपनी ट्रेडल मशीन फोर कलर प्रिंटिंग की। क्या मजाल कि एक सूत का भी फर्क आ जाए। समझ सकते हैं कि एक ही पेपर को चार बार छापना कितना कठिन काम रहा होगा। यानि के वे प्रिंटिंग के मास्टर थे।
बात सन् 1990 की है। तब मैं दैनिक न्याय में समाचार संपादक था। उनके सुपुत्र स्वर्गीय श्री राजेन्द्र वर्मा कंपोजिंग किया करते थे। कुछ समय तक कंपोजिंग का ठेका भी लिया। अत्यंत सरल व सजह होने के कारण मेरी उनसे खूब पटती थी। एक दिन उनके साथ उनके घर गया तो उनके पिताश्री से मुलाकात हुई। बात ही बात में उन्होंने वातावरण के बारे में बताया। उन्हें बड़ा मलाल था कि अखबार नियमित नहीं रह पाया। उन्होंने कहा कि यदि आप इस अखबार को फिर चलाना चाहें तो मैं ये टाइटल आपके नाम ट्रांस्फर कर दूंगा। मुझे खुशी होगी कि मेरा रोपा हुआ पौधा किसी के हाथों में सुरक्षित रूप से पल्लवित हो रहा है। मैंने उनका प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया। वातावरण उनकी ही प्रेस पर छपने लगा। आज भी वातावरण नियमित है। चूंकि वातावरण श्री राजेन्द्र वर्मा के पिताजी की निशानी थी, वे इसके नियमित प्रकाशन में विशेष रुचि लेते थे। बाद में जब ऑफसेट का जमाना आ गया तो अखबार को अन्यत्र छपवाना आरंभ किया।
स्वर्गीय श्री राजेन्द्र वर्मा से मेरी गहरी दोस्ती रही। मैने भी सदैव उन्हें छोटे भाई का प्यार दिया। पिताश्री के निधन के बाद मुझे वे गार्जियन के रूप में सम्मान देते थे। उनकी प्रेस में कई साप्ताहिक-पाक्षिक छपा करते थे। बाद में उन्होंने स्वयं भी एक पाक्षिक समाचार पत्र निकाला। हालांकि बाद में समयाभाव के कारण मिलने-जुलने का अंतराल बढ़ गया, मगर जब भी मिलते बहुत स्नेह से आपस के सुख-दुख की बातें करते। उनके परिवार से भी मेरे पारिवारिक रिश्ते रहे। उन्हें जवानी के समय से ही डायबिटीज की बीमारी थी। पूरा ख्याल रखते थे, फिर भी कई बार दिक्कत हो जाती थी। हालांकि वे मेरे छोटे थे, मगर में उनके संघर्षपूर्ण जीवन से बहुत प्रेरणा ली। ऐसे जिंदादिल व प्यारे इंसान का यूं चले जाना बहुत दुखद है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और परिवारजन को इस वज्राघात को सहने की शक्ति दें, ऐसी प्रार्थना है।
-तेजवानी गिरधर
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