बुझ गया अजमेर का सांस्कृतिक सूरज

नवीन जी नहीं रहे..! एक अविश्वसनीय समाचार। अप्रिय सत्य…!
नवीन सोगानी मेरे लिए एक नाम या रिश्ता भर नहीं थे। रिश्ते की समझ, जीने का सलीका, शरीर से इतर पूरे वजूद के कारक-कारण थे। मैं सपना देखता था, वे उसमें रंग भर देते थे। मैं विचार करता था वे उसे कर्म बना देते थे। मैं शिकन ओढ़ता, वे उसे पौंछकर तेज रख देते थे। दर्द को बिना कहे पढ़ लेते थे। खुशी को विश्वाश से भर देते थे। उनके रहते ना मैं रास्तों की दूरी नापता था और ना ही मील के पत्थरो को पढ़ता था। मेरी छोटी- बड़ी हर उपलब्धि को अपना अपना उत्सव समझते थे। उनके जाने से अनाथ शब्द के अर्थ समझ मे आये हैं। वे मित्र की शक्ल में पिता, भाई, पुत्र, सखा, सब कुछ थे।
सुर सिंगार संस्था का संगीत हो, आन्नदम के ठहाके, लिटरेचर फेस्टिवल के सत्र या गाँधी जी जिंदा है का मन्चन…..बिना नवीन जी सम्भव ही नहीं थे। क्या अब मैं कभी सपने देख पाऊंगा..?क्या उड़ने के लिए कोई आसमान खोज पाऊंगा…? आंखों में भरे आँसू सैलाब बनकर सारे सपनों को एक साथ बहा ले गए।
मैं तो उनका मन था। शहर की कोई भी सहित्यिकी- सांस्कृतिक गतिविधि के पीछे एक नाम हर चमक से ज्यादा चमकता था वह है नवीन सोगानी…। नगर का छोटा बड़ा हर कलाकार आपके दरवाजे को अपना घर समझता था…! नवीन जी तुम्हे कोई हक नहीं था..शहर को यूँ अनाथ कर देने का।
कला-संस्कृति- साहित्य ही नहीं, आप सेवा के हर प्रकल्प से जुड़े थ। लायंस क्लब, महावीर सेवा समिति, अपना घर, वृद्धाश्रम । आपको भीगी आंखों के आँसू पौछने का नशा था…।अब देखो वे सारी आंखे आंसू बहा रही है..कौन पौंछेगा..हमारे-उनके आँसू….?
नवीन मेरे प्यारे दोस्त……क्या लिखूं..? क्यों लिखूं…कौन सुनेगा…. ????? हाँ, आज महसूस हो रहा है जब सूरज रूढ़ता है तो अंधेरे आंखों में अपना बसेरा कैसे बना लेते हैं।

अलविदा दोस्त……

रासबिहारी गौड

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