” चूँ पंचू की गली “अजमेर में दरगाह बाजार से नला बाजार होकर आते समय रास्ते में एक गली से डिग्गी बाजार जाने का रास्ते का नाम है। इस गली में मुहाने पर पतंग और लट्टू बेचने वालों की दुकानें हैं और सबसे बड़े अचरज की बात है कि इस गली का नाम ” चूँ पंचू की गली ” जैसा अजीबोगरीब क्यों है? यह तो पता नहीं चला लेकिन मुझे लगता है कि यकीनन किसी मकसद से रखा गया होगा। अजमेर के पुराने मोहल्लों में गलियों और रास्तों के ऐसे अजीबोगरीब पचासों नाम मिलेंगे।
मैं आठवीं में पढ़ने के दौरान चूँ पंचू की गली के मुहाने पर स्थित दुकान से पतंग, चरखी मांजा और लट्टू खरीद कर लाता था। जहां पतंग व लट्टू, कंचे मिलते हैं वह घसेटी बाजार कहलाता है। बंसी पतंग वाले की बहुत पुरानी दुकान थी। चून पचान गली भंडारा गली से नला बाजार को उतरते हैं वहां कुऐं के पास है।
स्कूल और फिर कालेज में पढ़ने के दौरान अजमेर के कई-कई मोहल्लों की गलियाँ घूमने का ढाई दिन के झौंपड़े के पास इन्दरकोट के मौहल्ले की कुछ गलियों में मकानों के बीच की गलियां इतनी तंग है कि दूसरी-तीसरी मंजिल वाले चाहें तो एक-दूसरे से हाथ मिला सकते हैं।
मदारगेट, दिल्ली गेट, आगरा गेट,ऊसरी गेट, ञिपोलिया गेट, दरगाह बाजार, लंगरखाना गली इंदर कोट, भाटागवाडी, गोधागवाडी,रगत्या भैरुजी, चौधर मोहल्ला,नला बाजार, मूंदड़ी मोहल्ला, डिग्गी बाजार, खारी कुई, नया बाजार, कड़क्का चौक, कायस्थ मोहल्ला, कटरा, चूड़ी बाजार, धान मंडी, पड़ाव, पुरानी मंडी, घी मंडी, उतारघसीटी, सरावगी मोहल्ला, कुम्हार मौहल्ला (शनि मंदिर के पास) कमला बावड़ी, लौंगिया हास्पिटल, गंज, पहाड़गंज, केसरगंज, भजनगंज, क्रिश्चियन गंज, रामगंज, आशा गंज,भगवान गंज, कवंडसपुरा,आर्दश नगर,अलवर गेट, नगरा, गुलाब बाड़ी, कचहरी रोड, हाथी भाटा, ब्रह्मपुरी जैसे कई मोहल्लों और कालोनियों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। अनेक कालोनियों का नवनिर्माण हुआ है जैसे वैशाली नगर, पंचशील आदि।
अजमेर में बहुत कुछ बदलाव आये हैं और आ रहे हैं लेकिन पुरानी आबादी के मौहल्लों में पीढ़ियों से रहने वाले बाशिंदों क रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा और रीति-रिवाजों में कोई फर्क नहीं आया है। वहां पर पुराना अजमेर आज भी जिंदा है। कोई धर्म और मजहब का कोई भेदभाव नहीं है। सभी आपसी समन्वय और एक-दूसरे की सहायता के साथ रहते हैं। यही पुराने अजमेर की खासियत है। मैं अजमेर से दूर रहता हूँ और मुझे अजमेर बहुत याद आता है। सबसे ज्यादा वो चेहरे जो मेरी जिंदगी से जुड़े रहे हैं।
डिग्गी बाजार में कपड़े की होलसेल दुकानों पर कपड़ा तराजू में तोलकर देते हैं।
गंज में मोढा (आरामदेह कुर्सी) और स्टूल जैसा बनाने का काम चलता है। गंज से देहली गेट तक भैंसे पालकर दूध बेचने वाले मुसलमान घोषियों के बड़े-बड़े बाड़े थे। दिन को इन भैंसों को नहलाने के लिए आना सागर ले जाते थे जो श्री दयानन्द सरस्वती जी के निर्वाण स्थल वाले मंदिर बगीचे के पास है। भैंस तैरती है लेकिन अपने ऊपर बैठने वाले को डुबो देती है अगर वह तैरना नहीं जानता। पानी में भैंस की पूंछ पकड़ लो तो पानी में गोता लगायेगी जब तक आप उसकी पूंछ छोड़ नहीं देते।
पुरानी मंडी में स्कूल कालेज की किताबें मिलती है तो तस्वीर फ्रेमवर्क के साथ साड़ी और कपड़े की दुकानों के अलावा चाट और पतंग की दुकानें भी स्थित है। चूर्ण, टाफियां, सुपारी,सुपाच्य हींग, हरड़े की गोलियां मिल जाती हैं।
घी मंडी में देशी घी के साथ, पंसारी का सामान, मिर्च मसाला और मेहंदी की दुकानें मिलती है।
रंग-बिरंगी कांच की चूड़ियां, कंगन के लिए नगर परिषद के पास चूड़ी बाजार उपलब्ध है।
नला बाजार से मदारगेट, घंटाघर मार्केट से मांट्रडियल ब्रिज तक फिर केसरगंज से धान मंडी के पड़ाव तक की दुकानें शोरूम घरेलू सामान उत्पाद से भरी पूरी है।
यहां हर चीज मिल जाती है और इन स्थानों पर, यहाँ पर ठेलेवालों की अलग भरमार रहती है।
जनरल पोस्ट आफिस के बाहर फुटपाथ पर दुकानें खुली रहती हैं।
मदारगेट में लगभग हर तरह का सूती या ऊनी कपड़ा, साड़ी मिल जाती है तो ड्राई फ्रूट्स,मिठाई, दूध से लेकर अचार, शरबत, ताजे फल फ्रूट्स मिल जाते हैं।
मदारगेट व स्टेशन रोड को जोङती फालूदा आइसक्रीम वाली गली। जहां बचपन में एक बङी हनुमान जी की छाती चीर श्रीराम – सीता वाली तस्वीर लगी थी।
अब इस गली में ताजा – पनीर व मावा भी उपलब्ध है।
बचपन में मदार गेट के केन्द्र में मोगरा की वेणियों व गुलाब की मालायों के टोकरों से सजी दुकानें थीं जिनकी महक से पूरा क्षेत्र सुवासित रहता था।
अजमेर में पान की दुकानें कभी बहुत मशहूर थी। मुख्य बाजारों के रास्तों पर कांच आईनों से सुसज्जित पान-सिगरेट की दुकानों पर हर समय भीड़ लगी रहती थी।
अजमेर की कड़ी वाली कचौड़ी, समोसा, पकौड़े सभी जगहों पर मिलते हैं लेकिन कुछ दुकानों की प्रसिद्धि ज्यादा है। रेल्वे बिसेट के सामने शाम को केबिनों ठेलों पर मंचूरियन, इडलीडोसा, पावभाजी, पानीपूरी, पिज्जा आदि मिलता है। वहां शाम को चाट के शौकीन लोगों की बहुत भीड़ रहती है।
कबाड़ी बाजार में नये-पुराने कलपुर्जों और पुरानी चीजों की भरमार रहती थी,अब वहां पुरानी कम और नई सामग्री की पक्की दुकानें खुल गई हैं।
मदारगेट पर जूता पालिश और मरम्मत की दुकानें एक शैड में मिलती है।
मदार गेट के बिल्कुल पास एक भवन में जिया बैंड का आफिस है जहां गाने की धुन रिहर्सल होती है तो बढ़ते हुए कदम रूक जाते हैं।
मैजिस्टिक टाकीज (अब मालुम पड़ा है कि मैजेस्टिक टाकीज का भवन बिक चुका है लेकिन जुबां से यह नाम जाने में वक्त लगेगा।) के पास मांस-मछली बाजार है जहां नान वेजिटेरियन लोगों की हर ख्वाहिश पूरी हो जाती है। यहां मछली के बने पकौड़े,सींक कबाब रोड के किनारे मिलते हैं।
वैसे अजमेर के सबसे पुराने सरताज होटल के सामने वेजिटेरियन लोगों के लिए सब्जी मंडी भी लगती है। जहां पर ताजा सब्जियों की बिक्री होती है।
मैजिस्टिक और प्लाजा टाकीज के सामने सबसे बड़ी धान मंडी है जहां खाधान्न,शक्कर, गुड़, दालों का भंडार ठेलों पर बिकता है और होलसेलर्स की दुकानें देखने को मिलती है।
मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि अजमेर का हर मोहल्ला अपने अंदर इतिहास समेटे हुए है। यहां एक से एक नामी-गिरामी हस्तियों ने जन्म लिया और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने बलबूते परिश्रम कर देश-विदेश में नाम कमाया है।
सभी के बारे में लिखने के लिए जगह चाहिए इसलिए थोड़ा लिखा ज्यादा समझें सिर्फ एक बात कि अजमेर और अजमेर के लोगों का कोई मुकाबला नहीं है।
अब तो अजमेर का बाहरी ईलाका नई व्यवस्थित योजनाबद्ध कालोनियों और मार्केटिंग शो रूम के तरीके से परिपूर्ण हो गया है लेकिन शहर के भीतरी इलाके में आज भी गली-गली में पुराने रंग-ढंग की दुकानें और कई मंजिला मकानों की भरमार है जहां बिल्कुल तंग पतली गलियों में भी दुकानदार मौजूद हैं।
किसी भी गली से निकलो और चलते-फिरते आगे चलकर वह किसी न किसी बड़े बाजार में जाकर मिल जायेगी। पुराने जमाने में मकानों के बीच ऐसी पतली गली बनाने का मकसद बाहरी आक्रमण से बचाव करने या चोरी से बचाव करना हो सकता है।
सभी गलियाँ अपने नाम से मशहूर है और गली-मोहल्ले में रहने वाले को खुले आसमान के नीचे की आधुनिक तकनीक की आधुनिक आवासीय कॉलोनी पसंद नहीं आयेगी क्योंकि गली-मोहल्ले में रहने का अनुभव और आनंद अलग ही अनूठा है। किसी से भी पूछेंगे तो संबंधित व्यक्ति का मकान चलकर बता देंगे। क्योंकि सभी एक-दूसरे को जानते हैं। आते-जाते लोगों में अभिवादन करने का सिलसिला बना रहता है। मुहल्ले में बुर्जुगों की मदद करने में आगे रहते हैं।
नई आवासीय कालोनियों में जान-पहचान कम रखते हैं और तटस्थ भाव से रहते हैं। आप जानों और आपका काम।
पुरानी आबादी से निकल कर जो भी व्यक्ति परिवार बढ़ने या सामर्थ्यवान बनने या संयुक्त परिवार बिखरने के बाद की परिस्थितियों में नई बसी आवासीय कालोनियों में रहने के लिए आये तो यह सभी शहरों में हुआ है। परिवर्तन समय की मांग है और उसी के हिसाब से चलना चाहिए।
गली-मोहल्ले में रहने वाले लोगों का आपसी भाईचारा, आत्मीयता और एक-दूसरे की मदद करने की भावना जुड़ी रहती है। सिर्फ अजमेर में ही नहीं बल्कि पूरे देश में यह भारतीय सनातन संस्कृति है जो सभी को एक साथ लेकर चलती है। इसका किसी धर्म, जाति और भाषा से कोई मतलब नहीं है।
*तुलसी सोनी ड्डलानी*