अजमेर और गिनती

शिव शंकर गोयल
कहते है कि अजमेर में गिनती का बहुत महत्व है. मसलन,
यहां के पुष्कर तीर्थ में विश्व का एक मात्र ब्रह्माजी का मंदिर है.
इसमें कोई दो राय नही है कि यहां दोराई नामक गांव भी है जहां चारभुजा नाथ का प्रसिध्द मंदिर है जहां प्रतिवर्ष भादवा की पूनम को मेला लगता है. आजकल इस गांव के रेलवे स्टेशन का नाम भले ही तबीजी कर दिया है लेकिन स्थानीय लोग इसे कहते अब भी दोराई ही है. यह अजमेर-अहमदाबाद रेलवे लाईन पर अजमेर से पहला स्टेशन है.
अजमेर की एक और खूबी है कि यहां अढाई की संख्या का भी बहुत महत्व है. यहां अढाई दिन का झोंपडा नामक पुरातत्व महत्व का प्रसिध्द ऐतिहासिक स्थल है. जिस पर भिन्न 2 इतिहासकारों की अलग 2 राय है. कुछ ईतिहासकार कहते है कि इस ईमारत को मराठों ने अढाई दिन में बनवाया था. जबकि कुछ की राय है कि मराठों ने जब चढाई की थी तो उनका घेरा अढाई दिन तक चला तो कुछ की राय है कि उन्होंने इसको अढाई दिन में जीता था. कुछ लोगों का यह भी मत है कि यह पहले संस्कृत विद्यालय था. मोहम्मद गौरी ने इसे तुडवा दिया और सन 1192 में इस ईमारत को अढाई दिन में बनवाया. बाद मे कुतुबुध्दीन ऐबक ने इसे मस्जिद में बदला. तारागढ की दूसरी तरफ चश्मेशाही है. कहते है कि शाहजंहा की नजरबंदी के दौरान, मुगल सल्तनत के वारिस बनने हेतु, यहां दारा शिकोह और औरंगजेब, हालांकि दोनों भाई थे, के बीच अढाई दिन तक युध्द चला था.
कहते है कि अकबर बादशाह एक बार औलाद की मुराद-चाह- में अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी से ख्वाजा मोइनुध्दीन चिश्ती की दरगाह में सजदा करने हेतु चलकर यहां आया था. तभी यह मुहावरा बना बताते है जिसमें कहा गया है कि “नौ दिन चले अढाई कोस.” एक और कहावत यहां बडी मशहूर है जिसमें कहा गया है “पोथी पढ पढ मुआ भया, पंडित भया न कोय. ढाई आखर प्रेम के, पढे जो पंडित होय.” पुराने समय में पाठशालाओं में ढाई का पहाडा रटाया जाता था, एक ढायो ढैया, दो ढायो पांच……. कहते है कि आधुनिक पीढी तो अढाई के विषय में बहुत कम जानती है.
आपको सबको पता है कि अजमेर में तीन की बडी महिमा है. अजमेर के आनासागर की पाल पर खामेंखां के तीन दरवाजे इन सबका प्रतीक है.
अजमेर के बीचोबीच नया बाजार के पास कडक्का चौक है. चौपड के खेल में काम आने वाली चारों भुजाओं की तरह यहां चारों तरफ सडकें है. एक आगरा गेट जाने वाली, दूसरी गोल प्याऊ की तरफ, तीसरी घी मंडी और चौथी भुजा कडक्का चौक की तरफ जाती है. उधर कचहरी रोड के चौराहें से कौन अपरिचित है ? जगह जगह चौराहें है, जाने वाला चाहिए.
आगरा गेट पर स्थित शिवसागर मंदिर में पंच मुखी हनुमान के दर्शन है, यहां की छवि देखते ही बनती है. कार्तिक की देवउठनी ग्यारस से कार्तिक पूर्णिमा तक पुष्कर मे पंचतीर्थ का मेला भरता है. पास ही पंचकुन्ड स्थल है जो पांडवों के वनवास काल से जुडा हुआ है.
प्रतिवर्ष ख्वाजा मोइनुध्दीन चिश्ती की दरगाह पर छ: दिनों का उर्स का मेला भरता है जिसमें देश के ही नही विदेशों तक से जियारती आते है. इस मेले का इंतजार, हिन्दू दुकानदार और मुसलमान जियारती दोनों, अपने 2 कारणों से करते रहते है.
यहां घसेटी मोहल्लें में सतभैयों की पोल, कायस्थ मोहल्ले में माई सप्तमी चौंक आदि भी है. पुराने समय से ही यहां तारागढ से इंदरकोट होते हुए नलाबाजार में तेजी के साथ आने वाले बरसात के पानी के साथ बह कर आने वाले बढे 2 पत्थरों को रोकने हेतु सात बावढियां मसलन भाटाबाव, भांगबाव, कातनबाव आदि बनाई गई थी जो कालांतर में मलवे से भर गई है.
यहां आनासागर की पाल पर बारहदरी है तो पुष्कर में वराह भगवान का मंदिर है और पास ही पुष्कर का वराहघाट है लेकिन अपभ्रंश के रूप में दोनों को क्रमश: बारह भगवान का मंदिर और बारहघाट के नामों से ही जाना जाता है. कहते है कि वराह मंदिर के पास औरंगजेब और जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह के बीच युध्द हुआ था. पुरातत्व विभाग ने इस आशय का बोर्ड भी यहां लगाया हुआ है.
यहां शहर के मध्य होलीदडा क्षेत्र को सौलह थम्बा के नाम से भी जाना जाता है वही दरगाह के पीछे झालरा के पास भी सौलह थम्बा है.
अजमेर को बसाने वालों और यहां के वाशिन्दों की खासियत है कि बात ही बात में लोग एक, दो, तीन गिनते 2 एक दम लाखों तक पहुंच जाते है. एक उदाहरण ही काफी है
दरगाह बाजार के पास लाखों की कोठडी है जिसे लाखन कोठडी के नाम से जाना जाता है.

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