महान सूफी संत के दर से फूटा आक्रोश

पांच साल पहले हुए समझौता एक्सप्रेस बम ब्लास्ट के आरोपी दशरथ सिंह को एनआईए और दिल्ली-नागदा पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद जो प्रतिक्रिया पूरे विश्व में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दर से आई, वह अजमेरवासियों के लिए चिंता का विषय है। ज्ञातव्य है कि अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व अध्यक्ष सैयद गुलाम किबरिया चिश्ती व पूर्व सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने दशरथ को कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने की मांग करते हुए दरगाह शरीफ के गेट पर जोरदार प्रदर्शन किया। अगर दशरथ दोषी है तो उसे वही सजा मिलेगी, जो कि कानून के मुताबिक संबंधित न्यायालय देगा और देना भी चाहिए, मगर जिस प्रकार उसकी तुलना कसाब प्रकरण से की गई और बेहद तल्ख भाषा का इस्तेमाल किया गया, वह अजमेर के शांत माहौल के लिए कत्तई ठीक नहीं माना जा सकता।
यूं इन दोनों खादिम नेताओं की ओर से निजी तौर पर की गई प्रतिक्रिया को अंजुमन या पूरी खादिम कौम की प्रतिक्रिया नहीं माना जा सकता, मगर जिस प्रकार सार्वजनिक रूप से गरमागरम बयानबाजी हुई, उसे अगर दरगाह शरीफ के पाक और कदीमी मुकाम से जोड़ कर देखा जाए तो वह काफी गंभीर है। बेशक दरगाह शरीफ सभी धर्मावलंबियों की आस्था का केन्द्र है और उस पर अगर हमला किया जाता है तो वह सभी की आस्था पर हमला है, अकेले किसी एक जमात पर नहीं। अगर ऐसा होता तो अकेली एक ही जमात यहां सुकून पाने को आती। दरगाह में पूर्व में हुए बम विस्फोट पर सभी जमातों को उतना ही गुस्सा आया, जितना एक जमात को आया। किसी भी जमात ने उसकी तरफदारी नहीं की। अगर चंद लोग उस हमले के पीछे थे, जो कि साबित होना बाकी है, तो उन्हें पूरी कौम या संगठन से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता। जनाब किबरिया साहब ने जरूर कुछ संयत भाषा का इस्तेमाल किया, मगर जनाब सरवर साहब तो भावावेश में आ गए। उन्होंने साफ तौर पर बम विस्फोट करने की मंशा रखने वाले तत्वों को चुनौती दे कर उन्हें उत्तेजित करने का ही काम किया है। उनकी भावना को समझा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है, मगर जिन शब्दों का इस्तेमाल उन्होंने किया, जिन्हें कि यहां लिखना उचित नहीं है, वे कम से कम उन जैसे जिम्मेदार शख्स को शोभा नहीं देते।
उल्लेखनीय है कि करीब एक माह पहले भी उन्होंने एक विवादास्पद बयान दिया था, जिस पर मंगलूर शहर की पांडेश्वर पुलिस ने मामला दर्ज किया। उन्होंने कहा था कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो कोई ताज्जुब नहीं कि सारे मुसलमान आतंकवादी बन जाएं। गत दो नवंबर को पॉपूलर फ्रंट ऑफ इंडिया की सार्वजनिक बैठक में दिए गए इस बयान पर वहां के नागरिक सुनील कुमार ने शिकायत दर्ज करवाई है कि यह भड़काऊ भाषण लोंगों को दंगे उकसाने प्रयास है। तब भी चिश्ती को निजी तौर पर जानने वालों को अचरज हुआ था कि एक प्रगतिशील खादिम और खादिमों में नई सोच लाने की की कोशिश करने वाला ऐसा कैसे कह सकता है। वैसे कुछ लोगों का मानना है कि वे अंजुमन पर दुबारा काबिज होने के लिए इस प्रकार की बयानबाजी कर रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर

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