अजमेर की आशा मनवानी को भले ही अजमेर की जनता ने न ठीक से पहचाना हो और न ही कभी कोई सम्मान दिया हो, मगर उनकी बिंदास पर्सनल्टी की महक चंडीगढ़ पहुंच गई और उन्हें वहां नीरजा भनोट अवार्ड से नवाजा गया है।
जरा अपनी स्मृति में टटोलिए। ये आशा मनवानी वही महिला हैं, जो अमूमन अजमेर में महिलाओं के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यक्रमों में नजर आती रही हैं। इकहरे बदल व नाटे कद की इस महिला को समाजसेवा के क्षेत्र में काम करने वाले लोग उन्हें भलीभांति पहचानते हैं। महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ लडऩे वाले यह लड़ाकू महिला दिखने में तो सामान्य सी लगती है, इसी कारण उनके व्यक्तित्व पर किसी ने गौर नहीं किया। मगर इस महिला की प्रतिभा को चंडीगढ़ में न केवल पहचाना गया, अपितु नवाजा भी गया।
चंडीगढ़ के यूटी गेस्ट हाउस में उनको नीरजा भनोट अवार्ड से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह अवार्ड पूर्व थलसेना अध्यक्ष रिटायर्ड जनरल वी पी मलिक के हाथों दिलवाया गया। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर दैनिक भास्कर के सिटी लाइफ ने उनका विशेष कवरेज दिया है। आइये, देखते हैं कि उसमें क्या लिखा है:-
पत्नी को सताने वाले को थप्पड़ मारने से नहीं कतराती ये महिला
चंडीगढ़। अजमेर में लोग इन्हें लड़ाकू के नाम से जानते हैं। हो भी क्यों न। पत्नी को सताने वाले हर पति को यह थप्पड़ मारने से कभी भी नहीं कतरातीं। जरूरत पड़े तो पुलिस की तरह भी पेश आती हैं। यह हैं अजमेर की 55 वर्षीय आशा मनवानी। आशा ने सिटी लाइफ से शेयर किया लड़ाकू बनने का सफर।
किसी ने सच ही कहा कि हालात इंसान को मजबूत बना देते हैं। आशा के साथ भी ऐसा ही हुआ। वह मजबूत बनीं। खुद के लिए भी और अपने जैसी दूसरी औरतों के लिए भी। इसके पीछे उनकी जिंदगी की दर्दनाक दास्तान है। आशा ने बताया कि छोटे कद के कारण उनके पति ने उन्हें शादी के बाद से कोसना शुरू किया। उन्हें अलसर की बीमारी हुई तो उन्हें इलाज के लिए माइके जाने को कहा और पीछे से दूसरी शादी कर ली। इस लाचार बेटी का साथ माइके वालों ने भी दिया। पर आशा ने हार नहीं मानी और हालातों के साथ लड़ती चली गईं। एक फैक्ट्री में काम मिला तो खुद का और बच्चों का गुजारा किया।
हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था, हमारी कश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था। यह कहावत बोलने के बाद आशा ने दो किस्से सुनाए, जिन्हें सुन कर किसी की आंख में भी आंसू आ जाएं। आशा ने बताया कि फैमिली कोर्ट के आदेश के बावजूद उनके व्यापारी पति ने मुआवजा नहीं दिया। फैसला हुआ भी तो मुआवजे के रूप में उन्हें महीने के मात्र 1000 रुपये मिलते थे, जो बढ़ कर अब 2200 हो गए हैं। यह राशि भी उन्हें कोर्ट के कई चक्कर लगाने के बाद मिलती हैं। अपनी 32 साल की बेटी की शादी के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। दहेज न देना भी बेटी की शादी न होने का कारण है। इस पर आशा ने कहा कि बुजुर्गों और रीति-रिवाजों के नाम पर आज भी लड़की के पेरेंट्स से ससुराल वाले बहुत कुछ वसूलते हैं। इसलिए बेटी की शादी में पेरेंट्स को सिर्फ बेटी के नाम की एफडी, गोल्ड और प्लॉट देना चाहिए ताकि जरूरत के समय पर वह किसी की मोहताज न हों। दूसरा किस्सा सुनाते हुए आशा ने कहा कि पाई-पाई जोड़ कर जो मकान बनाया, उसकी रजिस्ट्री भी भाईयों ने धोखे से अपने नाम करा ली। मगर अवॉर्ड में मिलने वाले डेढ़ लाख रुपये पाकर वह बेहद खुश हैं।
सब कानून मालूम हैं
मनवानी छठी क्लास तक पढ़ी हैं, मगर अब सभी कानूनी कार्यवाइयों से भलीभांति अवगत हो चुकी हंै । वे असहाय महिलाओं की मदद करती हैं। महिलाओं को स्त्रीधन, कोर्ट के बाहर परिवारों को मिलाने, महिलाओं को तलाक ओर महिलाओं व उनके बच्चों को आश्रय दिलाने में मदद की है। फैमली कोर्ट अब कई मामलों में उनकी मदद लेता है। आशा महिलाओं के अधिकारों के लिए लडने वाली लक्षता महिला संस्थान की सचिव हैं।
1 thought on “अजमेर की आशा ने पाया चंडीगढ़ में सम्मान”
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Tej bhai very good work we are out of india and only thru this newspaper we know that what happened in ajmer and other cities.really very good work.keep it up..God Bless you.
Regards
Kamal Kumar Balchandani.