शब्द कम पड़ जाते हैं जेएलएन की हालत बयां करते

 -रूपेन्द्र शर्मा-
अजमेर। संभाग के सबसे बड़े सरकार अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय की हालत इतनी खस्ता है कि उसे शब्दों में तो बयां किया ही नहीं जा सकता है। कितना भी खुलासा करो, मगर शब्द बौने पड़ जाते हैं। अब तक जितने भी नेता अस्पताल में आये, वे हालात सुधारने के आश्वासन का झुनझुना थमा कर चले गये। राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता से इस विशाल हॉस्पिटल की अधिकतर व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं। बात चाहे चिकित्सा व्यवस्था की की जाए या फिर आंतरिक व्यवस्थाओं की, अव्यवस्थाएं हर जगह पैर पसारे नजर आती है। बदहाली के इस आलम में अस्पताल प्रबंधन खुद अपने आपको असहाय महसूस कर रहा है।
वस्तुत: इस अस्पताल पर अजमेर के साथ ही आस-पास के जिलों के मरीजों का भी भार है। हर रोज हजारों मरीज अपने दर्द की दवा लेने के लिए इस अस्पताल की चौखट पर आते हैं। यह अलग बात है कि पिछले लम्बे समय से इस अस्पताल को खुद बदहाली के दर्द की दवा का इन्तजार है। बात यदि चिकित्सा व्यवस्था की की जाए तो इस अस्पताल में चिकित्सा कर्मियों के 250 पद रिक्त पड़े हैं, जिनमे से 100 पद तो केवल चिकित्सकों के ही हैं। नियमानुसार इस अस्पताल में चिकित्सकों के 225 पद हैं, लेकिन नियुक्त यहां केवल 100 चिकित्सक ही हैं। यही हाल नर्सिंग कर्मियों का भी है। 400 पदों के विपरीत यहां केवल 275 नर्सिंग कर्मचारी ही कार्यरत हैं। 25 तकनिकी कर्मचारियों की कमी का खामियाजा भी इस अस्पताल में आने वाले मरीजों को उठाना पड़ रहा है। कहने को सरकार ने इस अस्पताल में ट्रोमा सेन्टर भी शुरू कर दिया, लेकिन उसमें भी चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ  की नियुक्ति नहीं की गई है। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बीमार अस्पताल में मरीजों का इलाज किस तरह होता है।
मरीज के दर्द को बढाने का काम यहां फैली अन्य अव्यवस्थाएं करती हैं। मरीज यहां से बीमारियों के इलाज के स्थान पर संक्रमण लेकर जा रहा है। इस बात को खुद अस्पताल अधीक्षक डॉ. अशोक चौधरी भी स्वीकार करते हैं। चौधरी के अनुसार अस्पताल का सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम दम तोड़ चुका है। पीडब्लूडी की लापरवाही की वजह से शौचालयों का गंदा पानी वार्ड और ऑपरेशन थियेटर में संक्रमण के खतरे को आमंत्रित कर रहा है।
पोस्ट ऑपरेटिव वार्ड में मरीजों को लाने और ले जाने के साथ ही गंभीर मरीजों की सुविधा के लिये इस अस्पताल में कहने को चार लिफ्ट लगाई गई हैं, लेकिन इनकी दशा भी हाथी के दिखाने वाले दांतों की तरह ही है। इन्हें जाम हुए सालों गुजर गए। यही हाल इस पूरे अस्पताल को एक साथ जोड़े रखने वाले एपीबीएक्स सिस्टम का भी है, जिसे खराब हुए दो साल से ज्यादा का समय गुजर गया। कहने को एपीबीएक्स सुविधा को वापस शुरू करने के लिए अस्पताल प्रशासन ने पिछले साल ही 7 लाख रुपये खर्च किये है, लेकिन बात यदि नतीजे की की जाए तो ढ़ाक के तीन पात वाले ही हैं। ऐसे में जब अस्पताल अधीक्षक बात इंटरनेट के वाई फाई सिस्टम की करते हैं, तो लगता है कोई दर्द देकर हंसने का काम करा रहा हो।
अस्पताल की इस दशा के लिए सीधे तौर पर सरकार तो जिम्मेदार है ही, साथ ही अजमेर जिले के वे राजनेता भी जिम्मेदार हैं, जिन्हें प्रभावशाली माना जाता है। लोकसभा में अजमेर का प्रतिनिधित्व प्रभावशाली केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट करते हैं। राज्यसभा में सांसद कांग्रेस की प्रभा ठाकुर और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद भूपेन्द्र यादव का ताल्लुक भी अजमेर से ही है। प्रदेश की शिक्षा राज्यमंत्री नसीम अख्तर अजमेर की पुष्कर विधानसभा सीट से विधायक हैं, तो सरकारी मुख्य सचेतक रघु शर्मा अजमेर जिले के केकड़ी से विधायक हैं। संसदीय सचिव ब्रह्मदेव कुमावत भी जिले के मसूदा से विधायक है। इतने भारी भरकम नेताओं के अजमेर से ताल्लुक होने के बावजूद इस अस्पताल की ओर किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता, यह सवाल राजनेताओं के लिए शायद उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना बीमारी से परेशान मरीजों और उनके परिजनों के लिए है।
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