मुझे अपने जीवन में जिन चंद सज्जनों का सान्निध्य हासिल हुआ है, उनमें से एक हैं श्री सत्येष्वर प्रसाद षर्मा (बिजलवाण)। जब भी हम इंसानियत की बात करते हैं, तो उसके मूल में जिस इंसान की मौजूदगी है, उसकी प्रतिमूर्ति थे श्री षर्मा। सीधे, सज्जन, सरल, मृदुभाशी, दयालु। आम तौर पर पैदल ही आया-जाया करते थे। आज के जमाने में ऐसे विरले ही होते हैं। अगर ये कहा जाए कि आज ऐसे प्राणी दुर्लभ हैं, तो अतिषयोक्ति नहीं होगी।
वे चिकित्सा व स्वास्थ्य विभाग में काम करते थे। जब कस्तूरबा अस्पताल में थे, तो हर आगंतुक मरीज व परिजन के साथ पूरी सहृदयता के साथ पेष आते और उसकी समस्या का समाधान करने में जुट जाते। विषेश रूप से गरीब व जरूरतमंद के लिए तो सदैव तत्पर रहते थे। उनकी सहयोगी सीनियर नर्स श्रीमती लीला षर्मा भी उनकी ही तरह बहुत मिलनसार थीं, कर्मठ थीं, जिन्हें सर्वाधिक नसबंदी केस पूर्ण करने पर जिला स्तर पर भी सम्मानित किया गया था। उन दोनों का जो कार्यकाल था, वैसा कस्तूरबा अस्पताल में फिर कभी नहीं रहा। यह वह दौर था, जब सुप्रसिद्ध नेत्र रोग विषेशज्ञ डॉक्टर एल एन चंडक वहां सेवाएं देते थे, जिन्होंने रिकॉर्ड नेत्र ऑपरेषन किए।
श्री षर्मा राज्य कर्मचारी संघ के षीर्श नेताओं में रहे। उनके दौर में कर्मचारियों के लिए अनेक कामयाब आंदोलन हुए।
1998 में सेवा निवृत्ति के बाद कांग्रेस नेता व सामाजिक कार्यकर्ता पति-पत्नी स्वर्गीय श्री चंद्रभान षर्मा और श्रीमती मंजू षर्मा की एनजीओ के साथ मिल कर एड्स जागरूकता कार्यक्रम में डट कर काम किया। उनकी पत्रकारिता में भी रूचि थी। अस्सी के दषक में आधुनिक राजस्थान में हमने साथ काम किया। उन दिनों हमारी एक मित्र मंडली हुआ करती थी, जो लंबे समय तक कायम रही। चूंकि वे हम सबमें उम्र में बडे थे, इस कारण सदैव साथियों का मार्गदर्षन किया करते थे। ऐसे मित्रवत रहते थे कि कभी लगा ही नहीं कि वे हमसे उम्र में बडे हैं। वरिश्ठ पत्रकार राजेन्द्र याज्ञिक, प्रेम आनंदकर, निर्मल मिश्रा व कांग्रेस नेता कैलाष झालीवाल इसके गवाह हैं।
वे एक प्रखर बुद्धिजीवी थे और स्थानीय के साथ राज्य व केन्द्र के ज्वलंत विशयों पर गहरी पकड रखते थे। सदैव निश्पक्ष राय रखते थे। वे अजमेर से जुडे कई पुराने किस्से हमें सुनाया करते थे।
उन्होंने अपने दोनों पुत्रों की ठीक से परिवरिष की। एक दैनिक राजस्थान पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा हैं। दूसरे दैनिक भास्कर जयपुर प्रोडक्शन विभाग के डिप्टी मैनेजर विवेक शर्मा हैं श्री रमेष षर्मा ने मेरे साथ दैनिक न्याय में भी काम किया।
82 वर्षीय श्री शर्मा पिछले लंबे समय से बीमार थे, इस कारण धीरे-धीरे उनके संपर्क कम हो गए। कोरोना काल तो बहुत बुरा गुजरा। गत 20 मई को पूर्वान्ह 11 बजे उनका निधन हो गया।
जो आया है, जाएगा, वो ठीक है, मगर अफसोस उनके जीवन के आखिरी सालों में उनसे संपर्क नहीं हो पाया, वरना बहुत कुछ सीखने को मिलता।
उनको अश्रुपूरित श्रद्धांजलि के साथ भगवान से प्रार्थना है कि ऐसे सच्चे इंसान और भेजे, ताकि नई पीढी को समझ में आए कि इंसानियत होती क्या है।
-तेजवानी गिरधर