वाजपेयी जी के प्रबल समर्थक थे मन्नान राही चिश्ती साहब

बुजुर्ग शायर डॉण् सैयद अब्दुल मन्नान राही चिश्ती इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए। उन्होने मौलाई शायरी की बदौलत अजमेर को देषभर में पहचान दिलााई। पन्नी गरान चौक में रहने वाले मन्नान साहब से मेरी मुलाकात वरिश्ठ पत्रकार मुजफ्फर अली के जरिए हुई। कई बार गुफ्तगू हुई। अजमेर के जाने माने व्यंग्य कवि रास बिहारी गौडए वरिश्ठ पत्रकार सुरेन्द्र चतुर्वेदी व दैनिक भास्कर के वरिश्ठ पत्रकार आरिफ कुरैषी ने उनके बारे में काफी विस्तार से लिखा है। मैं आपको उनके उस पहलु के बारे में बताना चाहता हूंए जिस पर मेरा अधिक फोकस था। देष के राजनीतिक मसलों पर उनकी गहरी पकड थी। अपनी बात कहने का उनका अंदाज निराला था। एक अहम बात ये थी कि सदैव धार्मिक कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाई। धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे। दिलचस्प बात ये थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रबल संमर्थक थे। विषेश रूप से स्वर्गीय वाजपेयी के पाकिस्तान के प्रति अपनाए जा रहे रूख की बहुत तारीफ करते थेए दूसरा कष्मीर में षांति के लिए किए जा रहे उपायों की सराहना किया करते थे। इस लिहाज से वे भाजपा के समर्थक माने जाते थे। वे इस बात की परवाह नहीं किया करते थेए उनकी कौम का उनके प्रति नजरिया क्या है। उनसे कई मर्तबा बहस हुई। वे वाजपेयी जी के बारे में अपने नजरिये को लेकर मुतमईन थे। उस दौर में कुछ और मुस्लिम भी थेए जो भाजपा के साथ जुडे हुए थेए जिनमें अब्दुल बारी चिष्तीए पीर सैयद गुलाम रसूल चिष्तीए षेखजादा जुल्फिकार चिष्ती आदि षामिल थे। ये सब षहर भाजपा के तत्कालीन भीश्म पितामह श्री औंकार सिंह लखावत की टीम में षामिल थे। एक बार केसरगंज में भाजपा के दिग्गज नेता श्री लाल कृश्ण आडवानी की सभा में लखावत जी ने षेखजादा जुल्फिकार को मंच पर खडा कर संक्षिप्त भाशण करवा कर यह जताया था कि देखो मुसलमान भी हमारे साथ हैं। हालांकि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद स्थानीय दबाव के चलते अनेक ने भाजपा से नाता तोड लिया या दूरी बना ली।
बात अगर षायरी की करें तो उनके जैसे षायर पूरे देष में विरले ही होंगेए कम से कम अजमेर में तो उनका कोई सानी नहीं। कवि रास बिहारी गौड की एक पंक्ति में उनके व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जा सकता हैए वो ये कि अजमेर को शायरी लिखने और सुनने का सलीका राही साहब ने सिखाया। बहरहालए अजमेर ने एक बहुत उम्दा बद्धिजीवी और षायर खो दिया हैए जिसकी भरपाई नामुमकिन है। कलम के दमदार हस्ताक्षर को मेरा सलाम।

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