अलमस्त मगर खांटी पत्रकार थे श्री रविन्द्र सिंह

स्व. श्री रविन्द्र सिंह
नब्बे के दषक में अजमेर के पत्रकार जगत में ऐसे अनेक पत्रकारों ने प्रवेष किया, जिनकी षैक्षिक पृश्ठभूमि अच्छी थी, वे कहीं न कहीं साहित्य से वाबस्ता थे, हिंदी पर खासी पकड थी। और सबसे बडी बात ये कि उनमें पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ नया करने का जज्बा था। कुछ ने दैनिक भास्कर से तो कुछ ने राजस्थान पत्रिका से अपनी पारी की षुरूआत की। उन्होंने समाचार लेखन व संपादन में नए प्रयोग किए। तीस साल से पहले और आज के समाचार पत्रों में जो बडे बदलाव हैं, वे ऐसे ही पत्रकारों की देन है। इन्हीं पत्रकारों में से एक थे स्वर्गीय श्री रविन्द्र सिंह। हिंदी साहित्य का विद्यार्थी होने के कारण उनका शब्द ज्ञान उत्तम था। खबर के संपादन पर उनकी जबरदस्त पकड थी। निजी तौर पर वे एक कवि हृदय इंसान थे और खुद भी अच्छी गज़लें कहते थे। अनेक मुद्दों पर उनसे विमर्श के दौरान कई नए साहित्यिक विचार निकल कर आते थे। उनकी सबसे बडी विषेशता ये थी कि वे मस्त प्रवृत्ति के थे। अलमस्त शब्द शायद ऐसे ही लोगों के लिए गढ़ा गया होगा। अपनी योग्यता के दम पर ही नौकरी करते थे, उसके लिए चाटुकारिता नहीं करते थे। सही बात के लिए संपादक से भी अड जाते थे, फिर उसका चाहे जो अंजाम निकले। संपादक अगर कहीं गलत हैं तो उसे भी कहने से नहीं चूकते थे। वे बहुत जल्द इस संसार को अलविदा कह गए। एक प्रतिभा, जिसे अभी और खिलना था, तिरोहित हो गई। कदाचित बिंदास प्रवृत्ति के चलते स्थान परिवर्तन की मानसिक यंत्रणा उन्हें भोगनी पडी। और वही उनके निधन का कारण बन गई। हम समझ सकते हैं कि अतिरिक्त योग्य व्यक्ति या तो सिस्टम पर हावी हो जाते हैं और या फिर व्यवहारगत समझौतावादी रूख न अपनाने के कारण सिस्टम से बाहर धकेल दिए जाते हैं। और उनकी जगह वे भर देते हैं, जो कम योग्य मगर समझौतावादी होते हैं। खैर, जो भी हमने एक प्रतिभा को खो दिया। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल यूट्यूब चैनल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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