जहां तक अजमेर दक्षिण को अनारक्षित करने का सवाल है, तो असल में उसके पीछे एक दर्द है। अजमेर उत्तर अघोशित रूप से सिंधियों के लिए आरक्षित है तो अजमेर दक्षिण लंबे समय से आरक्षित है। ऐसे में षहर में राजनीति करने वाले गैर सिंधी सामान्य या ओबीसी जाति के नेताओं के लिए चुनावी राजनीति में करने को कुछ नहीं। वे षहर के लिए कितना भी कर लें, विधायक कभी नहीं बन सकते। वाकई यह पीडा वाजिब है। इसी के चलते माली समाज की खातिर कांग्रेस नेता महेष चौहान ने अनारक्षण की मांग कर डाली।
ऐसा तो हो नहीं सकता कि उनको इतनी भी समझ न हो कि उनकी मांग पर फिलवक्त कुछ नहीं हो सकता। बावजूद इसके भावी राजनीति के चलते उन्होंने यह मुद्दा खडा कर दिया। ताकि नए परिसीमन के दौरान सनद रहे। समाज की राजनीति के चलते उन्हें यही लगा होगा कि उन्होंने बॉल छक्के लिए उछाल दी है, मगर कांग्रेस के उभरते नेता सौरभ यादव ने उसे लपक लिया। जाहिर तौर पर उन्होंने भी मौका देख कर अनुसूचित समाज की पैरवी कर दी। अपने अपने समाज की वकालत करने में कोई बुराई नहीं है, मगर लोग हक्के बक्के रह गए कि बेबात ही बात का बतंगढ क्यों हो रहा है। इस विमर्ष का नतीजा षून्य ही होना था। लेकिन इस बहाने दोनों को चमकने का मौका जरूर मिल गया।