धन्य हैं बाऊसा, धन्य उनका विश्वास, धन्य अजमेर की धरती

अजमेर। संतान के सिर पर पिता का हाथ और पिता का अपने गुरु और ईश्वर में अटूट आस्था और विश्वास यह वह पूंजी है जिसके आगे दुनिया की सारी दौलत भी तुच्छ होगी। तारीख 14, माह दिसम्बर, वर्ष— 2023 मेरे जीवन का ऐतिहासिक और असामान्य सा दिन रहा। आज पूरे एक हफ्ते बाद जो मैं ये कलम लिख रहा हूं उसका मकसद आप सभी प्रबुद्ध और सुधि पाठकों को इस तिथि के ऐतिहासिक और असामान्य होने से अवगत कराना ही है। मैं समझ सकता हूं कि बात के शुरू होते ही आपके जहन में सवाल कुलबुलाने लगे होंगे। ऐसी क्या बात है? ऐसी क्या घटना घटित हो गई जो हमें खबर नहीं? सच कहूं तो ऐसा ही बहुत बड़ा बेहद धीरे से घट गया। मेरे अजमेर का मिजाज यूं आहिस्ता से बदल गया। किसी अखबार सा अमिट छप गया मेरे अन्तर्मन में, वह दिन। मित्तल मॉल लोकार्पित हो गया। मित्तल मॉल आपका हो गया। मित्तल मॉल हम सबका हो गया।
सच में ढोल—ताशे बजे ना शहनाई गूंजी। समाचार पत्रों में इस्तेहार भी नहीं छपे और शहर के जीरो माइलस्टोन आगरा गेट चौराहे पर विशालकाय आकार में बरबस आप सभी की नजरों को अपनी ओर खींचने वाला लाइफ स्टाइल लेंडमार्क मित्तल मॉल आपका हो गया, इस पीढ़ी से आने वाली नई पीढ़ी तक जन—जन को समर्पित हो गया। मेरे लिए ही नहीं हम सब अजमेरवासियों के लिए यह ऐतिहासिक और असामान्य ही तो हुआ । मेरा सौभाग्य मैं इसका साक्षी बना। मैं गवाह बना ईश्वर और गुरुवर के प्रति अटूट व असीमित विश्वास को महसूस करने वाले मेरे पिता तुल्य बाऊसा मुन्नालाल जी मित्तल के सहज, सरल स्वभाव का, उनके विचारों के निर्लिप्त भाव और भावनाओं का। धन्य हैं बाऊसा, धन्य उनका विश्वास, धन्य अजमेर की जनता। धन्य अजमेर की धरा।
तेरह मंजिला मित्तल मॉल की पार्किंग से लेकर उसकी अंतिम मंजिल निर्माण तक जब—तब भी मैं वहां गया, मॉल की जमीन पर खड़ा हुआ, जाने क्यों भीतर से मित्तल मॉल अपना सा लगा। मुझे लगा कि जैसे मैं ही उसका निर्माता हूं। मैंने मित्तल मॉल को उसकी नींव भराई से लेकर कंगूरे की अंतिम चिनाई तक अनगिनत बार निहारा है। जब तब भी उस राह से गुजरा हर बार मित्तल मॉल के जल्दी से अपने पूरे आकार में खड़ा होने की कामना की है। मन ही मन सोचा करता कि जिस दिन भी बनकर तैयार हो जाएगा और पूरे देशभर से लोग यहां आया—जाया करेंगे, मौज—मस्ती, खान—पान, मनोरंजन—विश्राम, शादी—पार्टी, खरीदारी के लिए सब एक ही छत के नीचे पाएंगे तो मेरे अजमेर की बेहबूदी को चार चांद लग जाएंगे। काम धंधे का नव सजृन होगा, अनगिनत हाथों को रोजगार मिलेगा, अजमेर की आवोहवा और जीवनशैली में निखार आ जाएगा। सबसे बड़ी बात कोई जब पूछेगा कि अजमेर में नया क्या है? तो फक्र से कह सकेंगे लाइफ स्टाइल लैंड मार्क मित्तल मॉल है।
आज मैं साठ बरस का हो रहा हूं अजमेर में ही जन्मा, पला, पढ़ा —बढ़ा भी हो गया पर मैंने विगत चालीस सालों में कभी अजमेरवासियों के लिए इतने उम्दा आगे की सोच के साथ किसी को अपनी श्रम शक्ति—धन सम्पदा का इस्तेमाल करते नहीं देखा। मित्तल मॉल के प्रमोटर्स के मन में जाने किस घड़ी किन की प्रेरणा से इस जगतपिता ब्रहमा और ख्वाजा गरीब नवाज की नगरी अजमेर को स्वथ्य एवं स्वच्छ जीवन शैली के साथ आर्थिक प्रवाहशीलता और रोजगारोन्मुख योजनाएं देने की प्रेरणा जागृत हुई? यह सवाल मेरे मन में अबूझ पहेली सा अटका ही रहा।
उस दिन जब पूजा पाठ, हवन कथा पूर्णाहूति के बाद मित्तल मॉल के प्रमोटर एवं मेरे बॉस मनोज मित्तल जी अपने पिताश्री आदरणीय बाऊसा मुन्नालाल जी मित्तल और माताश्री विमला देवी जी मित्तल को साथ लेकर मित्तल मॉल का अवलोकन कराने उसकी प्रत्येक मंजिल पर घूम रहे थे तब मॉल के दूसरे तल पर मेरी भी मुलाकात हो गई। मैंने मॉ—बाऊसा के चरण छूकर आशीर्वाद लिया। बाऊसा यूं तो मुझे पहचानते थे फिर भी मनोज सर ने मेरा नाम लेकर मॉ—बाऊसा को मेरे नाम का स्मरण कराया।
मित्तल परिवार से अपनेपन ने वास्तव में मुझमें मित्तल मॉल मेरा ही होने की भावना को बुलंदियां दे दी। मेरे भीतर की खुशी नीले सागर में हिलोरे मारती ऊंची—ऊंची लहरों सी उठने लगी। मेरी प्रसन्नता सातवें आसमान पर हवाओं से बतियाती किसी पतंग सी फनफना रही थी। परिवारजनों और मित्रों को मित्तल मॉल के भीतर की रोशनी से जगमग, स्वचालित एस्केलेटर पर चढ़ते —उतरते पहली तस्वीरें भेज कर मैं फूला नहीं समा रहा था। उन्हें बता रहा था कि मित्तल मॉल भीतर से ऐसा लगता है जैसे किसी खूबसूरत नारी के गले में हीरे का नेकलेस दिखता है। रोज गोल्ड के पिलर और एस्केलेटर से जुड़ी आरोह—अवरोह सी दिखती प्रत्येक मंजिल। हवा और रोशनी से भरपूर सुरक्षा के सभी साधन—संशाधनों व उपकरणों से सुसज्ज वहां खुल रहे नेशनल—इंटरनेशनल शोरूमों की रोशनी में खड़ा में फोटो खिंचवा रहा था। उस दिन मुझ में कुछ ऐसा हुआ जैसे साठ की उम्र में मेरे भीतर का बचपन और जवानी दोनों एक साथ जाग्रत हो गईं हों। ऐसा उत्साह, उमंग, अभिमान मित्तल मॉल के लोकार्पित होने को लेकर मुझ में था मैं वैसा ही अभिमान मित्तल मॉल के प्रमोटरर्स में तलाशने लगा।

सन्तोष गुप्ता
मैं ढूंढ़ रहा था मित्तल मॉल के प्रमोटर्स की आंखों में मित्तल मॉल के लोकार्पित होने पर स्वभाविक मानवीय दम्भ से दमकती रोशनी, मैं पढ़ना चाह रहा था उनके चेहरे पर अभिमान की वो लिखावट कि मित्त्ल मॉल का निर्माण उन्होने कराया है, मैं सुनना चाह रहा था गर्व और फक्र की वह इबादत कि मित्तल मॉल के बनने से लोगों के जीवन शैली को ऊंचा उठाने की दिशा में अजमेर को उन्होंने एक नई सौगात दी है। पर सच कहता हूं किसी भी प्रोमोटर्स में मुझे तनिक भी अभिमान नहीं दिखा।
मैंने बाऊसा के श्री चरणों को छूकर जब उनके मन के भीतर का उत्साह खोजना चाहा तो मुझे निराश ही होना पड़ा। उस दिन मुझे बाऊसा किसी शीतल, निर्मल, शांत गहरी झील से लगे। बाऊसा भीतर भी धीर, गंभीर, शांत, निश्चिंत और सोम्य हैं इसका मुझे उस दिन एहसास हुआ। जितने सहज, सरल सामान्य और मिलनसार, खुश मिजाज व्यक्तित्व उनका बाहर से दिखता है वे अपने बच्चों के मार्गदर्शन के लिए गुरुवर और ईश्वर के प्रति उससे कई गुना अधिक आस्था और विश्वास अपने अंदर धारण किए हैं। गुरुवर में विश्वास की प्रगाढ़ता को मैंने उस दिन प्रत्यक्ष देखा।
काफी हिम्मत जुटा कर मैंने मेरे मन में अटका वह सवाल आखिर बाऊसा से उनके जन्मदिन की बधाई देते हुए पूछ ही लिया। मैंने कहा बाउसा मित्तल मॉल लोकार्पित हो गया है! आपको कैसा लग रहा है? मॉल कैसा लगा? आपके विचार जानने हैं हमें, आप मॉल के प्रमोटरर्स के पिता हैं, यह आपके बच्चों ने ही बनाया है?
जानना चाहेंगे बाउसा ने क्या कहा! बोले बच्चों ने तो सिर्फ अपने—अपने हिस्से का काम किया है, इसमें उनका या मेरा कुछ नहीं! मित्तल मॉल वैसा ही है जैसा गुरुवर की चाह है। मित्तल मॉल बनने में उनकी ही रजामंदी होगी। उनकी ही कृपा है।
बाऊसा ने बताया कि जब मित्तल चैम्बर्स बना था तब विचार आया था कि उसी के पास कुछ जमीन और लेकर एक अस्पताल बनाए, किन्तु मालिक को कुछ अलग ही मंजूर था। जमीन के सौदे में सिर्फ सौ रुपए के मौल—भाव की बात थी वहां जमीन का सौदा नहीं पका। ऐसा इसलिए हुआ कि मालिक को स्वीकार नहीं था। बाद में जहां मित्तल हॉस्पिटल बना आज आपके सामने है वह जन—जन के स्वास्थ्य संरक्षक के रूप में सेवाएं दे रहा है।
इत्तेफाक देखिए……..
मित्तल मॉल के निर्माण से जुड़े तकनीकी अधिकारियों में से एक शांति जी से मैं जिज्ञासावश जब कभी भी पूछ लिया करता था कि कितना बना ? कहा तक पहुंचे? कब खुल रहा है मॉल? तो उनका एक ही जवाब होता था कि खबरची आप हो! आपको ज्यादा मालूम! हमें तो अखबार से ही खबर पढ़ने को मिलेगी कि मॉल कब खुल रहा है? और हम ठहाका लगाकर हंस दिया करते थे। सच में ऐसा ही हुआ। वह दिन आ गया। मित्तल मॉल लोकार्पित हो गया। मॉल खुलने की सूचना मीडिया ने ही सबको दी।
अफसोस रहेगा……..
मित्तल मॉल के नींव से लेकर पूरी तेरह मंजिलों के निर्माण के वक्त चौबीस घंटे सातों दिन चिंता और चिन्तन जुटे रहने वाले मित्तल ग्रुप के वाइस प्रेसीडेंट श्याम सोमानी उसदिन अपरिहार्य कारणों से अजमेर से बाहर होने के कारण उपलब्ध नहीं हो सके जिस दिन मॉल का लोकार्पण के लिए कथा—पूजा—हवन पूर्णाहूति दी जा रही थी। श्याम जी के साथ उस दिन यादगार फोटो नहीं बन पाई। अफसोस रहेगा।
सन्तोष गुप्ता-

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