नरेन्द्र मोदी से पहले भी भाजपा चौंकाती रही है

आज यह आम धारणा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने फैसलों से चौंकाते हैं। उनके निर्णयों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसके एकाधिक उदाहरण मौजूद हैं। हाल ही जिस प्रकार पहली बार विधायक बने भजनलाल षर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया, वह तो मोदी की फितरत की पराकाश्ठा है। इससे मोदी है तो मुमकिन है जुमला सटीक बैठता है। लेकिन आप जरा गहरे से विचार करेंगे और इतिहास में पीछे मुड कर देखेंगे तो पाएंगे कि इस प्रकार चौंकाने वाला मिजाज भाजपा का पहले से रहा है। आपको याद होगा कि श्रीकिषन सोनगरा को जब किषनगढ से ला कर यहां अजमेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडाया गया, तब उन्हें आम आदमी जानता तक नहीं था। इसी प्रकार जब यह जानकारी आई कि किन्हीं हरीष झामनानी को अजमेर पष्चिम से चुनाव लडाया जा रहा है, तब मीडिया अचंभित था, क्योंकि उनका नाम तब तक किसी ने सुना तक नहीं था। वे आरएसएस के स्वयंसेवक थे। अनिता भदेल का मामला भी ऐसा ही है। संघ के एक प्रकल्प के तहत अध्यापन का काम कर रही अनिता भदेल को यकायक नगर परिशद चुनाव लडाया गया और सभापति का पद अनुसूचित जाति की महिला के तहत रिजर्व था, इस कारण उन्हें सभापति भी बना दिया। इतना ही नहीं इस बीच विधानसभा चुनाव आ गए तो सभापति पद से इस्तीफा दिलवा कर अजमेर पूर्व से चुनाव मैदान में उतार दिया गया। जरा और पीछे जाएंगे तो नवलराय बच्चानी को भी इसी तरह से विधायक बनाया गया। मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी को भी जब पहली बार उदयपुर से लाकर अजमेर पष्चिम से चुनाव लडाया गया, तब उन्हें कोई भी नहीं जानता था। तब स्थानीय चार दावेदारों को नजरअंदाज कर दिया गया था। कुल जमा बात ये है कि संघ के निर्देष पर भाजपा षुरू से प्रत्याषियों का चयन अपने हिसाब से करती है, उसे यकीन होता है कि वह अपने संगठन नेटवर्क के दम पर अपने प्रत्याषी को जिता लाएगी। बस फर्क इतना है कि मोदी भाजपा की स्टाइल में एक कदम आगे हैं, कही अधिक चौंकाते हैं।

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