मोटवानी की विरासत क्यों खो गई?

जब भी बीसलपुर पेयजल परियोजना का जिक्र आता है तो यकायक पूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय श्री किषन मोटवानी नाम स्मरण में आ जाता है। उनका चेहरा जेहन में उभर आता है। उनके प्रयासों से ही अजमेर के लिए यह परियोजना बनाई गई थी। इसे कांग्रेस के अतिरिक्त भाजपाई भी स्वीकार करते हैं। बावजूद इसके उनकी विरासत खो गई है। उनके पुत्र था नहीं, एक पुत्री व भाई हैं, मगर उनकी रूचि राजनीति में थी नहीं। यानि न तो किसी परिजन ने इस ओर ध्यान दिया और न ही उनके निकटतम नेताओं ने। न तो उनकी मूर्ति बनाई गई है और न ही उनके नाम पर किसी मार्ग, चौराहे, कॉलोनी आदि का नामकरण हुआ है। नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन षहाणी भगत उनके नाम से कॉलोनी बनाना चाहते थे, मगर कुछ करते उससे पहले ही उन्हें पद से इस्तीफा देना पड गया। वे उनके राजनीतिक षिश्य थे, मगर विरासत को ज्यादा आगे नहीं ले जा पाए।
आज हालत ये है कि जो स्वर्गीय श्री मोटवानी के कार्यकाल में उनके इर्दगिर्द रहते थे, उनमें से कुछ का निधन हो चुका है, जो जीवित हैं, वे भी उन्हें लगभग भूल चुके हैं। उनमें से कई की नई पीढी अब भाजपा में षामिल हो गई है। यही वजह है कि मोटवानी के निधन के बाद उनके समकक्ष सिंधी नेता का अभाव बना हुआ है। लोग राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ लाल थदानी में उनकी राजनीतिक विरासत के दर्षन करते थे, मगर सरकारी नौकरी में होने के कारण वे राजनीतिक रूप में सक्रिय नहीं हो पाए। पिछले कुछ वशों से सामाजिक कार्यकर्ता सोना धनवानी ने जरूर जयंती व पुण्यतिथि मनाने की पहल की है, मगर उसमें सीमित संख्या में ही लोग भाग लेते है। बेषक स्वर्गीय श्री मोटवानी की विरासत खो गई है, मगर बीसलपुर परियोजना के साथ उनका नाम अमर हो गया है।

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